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बुलंदशहर के करोड़ों के भूमि मुआवजा घोटाले की जांच हाईकोर्ट ने की सीबीआई के हवाले
एक बार मुआवजा भुगतान करने के बाद उसी जमीन पर अतिक्रमण कर अवैध रूप से रह रहे लोगों को करोड़ों का मुआवजा दोबारा कैसे दे दिया गया? यहीं से उठा था यह सवाल...
जेपी सिंह की टिप्पणी
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बुलंदशहर भूमि मुआवजा घोटाले की जांच सीबीआई को सौंप दी है। इसके साथ ही 11 मई को जांच की प्रगति रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है। हाईकोर्ट ने कल 10 फरवरी को हुई सुनवाई के दौरान कहा कि सीबीआई घोटाले की एफआईआर दर्ज कर विवेचना करे। यह आदेश जस्टिस सुधीर अग्रवाल तथा जस्टिस सौरभ श्याम शमशेरी की खंडपीठ ने किसान कमल सिंह और अन्य की याचिकाओं पर दिया है।
गौरतलब है कि किसानों को विशेष भूमि अधिग्रहण अधिकारी ने 1993 में 2 करोड़ 87 लाख,14 हजार 996.53 रुपये का अवॉर्ड घोषित किया, जिसे कोर्ट ने बढ़ाकर 7 करोड़ 13 लाख 37 हजार 504 रुपये कर दिया। अधिकांश किसानों ने मुआवजा भुगतान ले लिया। जमीन का अधिग्रहण राज्य सरकार ने 1991 में यूपी राज्य औद्योगिक विकास निगम के औद्योगिक ग्रोथ सेंटर के लिए किया था, लेकिन निगम ने कोई कार्य नहीं किया। किसान खेती करते रहे हैं।
वर्ष 2013 में यही जमीन टेहरी हाइड्रो पॉवर डवलपमेंट कॉर्पोरेशन इंडिया लिमिटेड को 1320 मेगावाट सुपर थर्मल पॉवर प्रॉजेक्ट बनाने के लिए देने का फैसला लिया गया और दोनों निगमों के अधिकारियों ने जमीन का अतिक्रमण कर कब्जा जमाए लोगों को 387 करोड़ 17 लाख से अधिक का मुआवजा दिला दिया गया।
लगभग 400 करोड़ का मुआवजा अधिकारियों की मिलीभगत से दुबारा दिलाए जाने का खुलासा हुआ तो कोर्ट ने छानबीन शुरू की। कोर्ट ने कहा कि जब किसानों को मुआवजे का भुगतान यूपीएसआईडीसी ने कर दिया था तो फिर दोबारा उन्हीं लोगों को मुआवजा दिए जाने की सिफारिश अधिकारियों ने क्यों की? मुआवजा ले चुके किसान मुआवजे के लिए कोर्ट भी आ रहे हैं। कोर्ट ने कहा कि कमल सिंह को मुआवजे के भुगतान की प्रक्रिया मे अवरोध नहीं है, लेकिन यह याचिका के निर्णय पर तय होगा।
अधिग्रहण की वैधता को चुनौती देने वाली अन्य याचिकाओं पर कोर्ट ने हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने घोटाले की एफआईआर दर्ज कर सीबीआई को विवेचना करने और रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है। याचिका पर अगली सुनवाई 11 मई को होगी।
इसके पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बुलंदशहर की खुर्जा तहसील में यूपी एसआईडीसी के ग्रोथ सेंटर के लिए अधिग्रहीत जमीन पर अवैध कब्जेदारों को करोड़ों रुपये का मुआवजा देने के मामले में कड़ा रुख अपनाते अधिग्रहीत भूमि और मुआवजा वितरण आदि की मूल पत्रावली तलब कर ली थी । कोर्ट ने यूपीएसआईडीसी को 20 दिसंबर को मूल पत्रावली पेश करने का आदेश दिया था, ताकि इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई की जा सके।
कोर्ट ने प्रदेश के महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह से पूछा था कि एक बार मुआवजा भुगतान करने के बाद उसी जमीन पर अतिक्रमण कर अवैध रूप से रह रहे लोगों को करोड़ों का मुआवजा दोबारा कैसे दे दिया गया? इस घोटाले के लिए कौन-कौन अधिकारी जिम्मेदार हैं? उनका नाम बताएं। महाधिवक्ता ने कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर तमाम अधिकारियों के नामों की जानकारी दी थी और कहा था कि इसमें निगम के इंजीनियर जिम्मेदार हैं। जिन्होंने जमीन हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट के लिए दी और दोबारा मुआवजे के भुगतान का प्रस्ताव किया।
कोर्ट के निर्देश पर यूपीएसआईडीसी ने मूल पत्रापली पेश की और कहा कि किसानों व अधिकारियों के बीच समझौते में बनी सहमति के आधार पर मुआवजा भुगतान का प्रस्ताव किया गया। किसानों का कहना है कि वे अतिक्रमणकारी नहीं है। अर्जेंसी क्लाज में अधिग्रहीत भूमि का कब्जा किसानों के पास है। वे खेती करते चले आ रहे हैं। मुआवजा तय करने में दो साल की मियाद का पालन नहीं करने के कारण अधिग्रहण प्रभावी नहीं रह गया। किसानों के पक्ष में कोर्ट का स्थगनादेश भी है।
गौरतलब है कि बुलंदशहर की खुर्जा तहसील के चार गांवों दशहरा खेरली, रूकनपुर, जहानपुर और नायफल उर्फ ऊंचागांव के 1725 किसानों की 969 एकड़ जमीन का अधिग्रहण यूपी सरकार ने 1991 किया था। सरकार ने अधिग्रहण के बाद यह जमीन यूपीएसआईडीसी को ग्रोथ सेंटर बनाने के लिए दे दी थी। अधिग्रहण के बदले किसानों को करीब 93 लाख रुपये का मुआवजा दे दिया गया था और ज्यादातर किसानों ने मुआवजा ले लिया था।
जमीन अधिग्रहण के बावजूद यूपीएसआईडीसी ने यहां कोई प्रोजेक्ट शुरू नहीं किया। इसकी वजह से अधिग्रहीत जमीन पर किसानों और अवैध कब्जाधारकों का कब्जा बना रहा। साल 2011 में थर्मल पावर प्रोजेक्ट के लिए यह जमीन टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कार्पोरेशन इंडिया को देने का फैसला किया गया।
उस वक्त इस योजना से जुड़े अफसरों ने यूपीएसआईडीसी को मिली अधिग्रहीत जमीन पर कब्जा पाने के लिए उन्हें फिर से मुआवजा दिए जाने का फैसला किया। अफसरों ने तय किया कि कब्जा धारकों को 721 रुपये प्रति स्क्वायर मीटर की दर से मुआवजा दिया जाएगा।
इस जमीन पर सरकारी अमला दोबारा मुआवजे के नाम पर करोड़ों का खेल करना चाहता था। इसमें कुछ कब्जाधारकों को थोड़ा मुआवजा दिया गया, जबकि कुछ किसानों को छोड़ दिया गया। जिन किसानों को दोबारा मुआवजा नहीं मिला, वह उसे दिए जाने की मांग को लेकर साल 2016 में इलाहाबाद हाईकोर्ट चले गए।
कमल सिंह नाम के किसान की अर्जी पर सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने इस फर्जीवाड़े को पकड़ा। अदालत ने उस वक्त तत्कालीन चीफ सेक्रेटरी को तीन सदस्यीय एसआईटी से जांच कराकर पूरे मामले का पता लगाने को कहा। आईएएस जय प्रकाश सागर, आईपीएस संजय कक्कड़ और लॉ आफिसर राजेश त्रिपाठी की सदस्यता वाली एसआईटी ने 14 आईएएस अफसरों समेत कई विभागों के 50 से ज्यादा अफसरों को इस घोटाले में शामिल बताया था।