JNU वाले शशिभूषण के चाचा हैं भाजपा के जिलाध्यक्ष, उन्होंने पूछा सस्ती शिक्षा मांगने से मेरा बेटा देशद्रोही कैसे हो गया
भाजपा जिलाध्यक्ष बोले, जेएनयू छात्रों का आंदोलन करना गुनाह है क्या, एम्स की फीस जामिया इस्लामिया की फीस भी इतनी है, वह क्यों नहीं बढ़ाई गई, JNU ही क्यों, जबकि कहीं भी दुनिया में विद्वता की बात आती है तो देश की इज्जत रखता है जेएनयू का छात्र...
जनज्वार। राहत इंदौरी की नज्म की एक पंक्ति है, 'लगेगी आग तो आएंगे घर कई जद में, यहां पे सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है।' जेएनयू के नेत्रहीन छात्र शशिभूषण समद और उनके भाजपाई चाचा अनिल पांडेय पर जो इन दिनों बीत रही है, राहत इंदौरी की यह नज्म बहुत सटीक बैठती है।
हिंदूवादी अतिवादियों और लंपट ट्रोलर जब सोशल मीडिया पर जेएनयू के छात्र आंदोलनों को 'टुकड़े टुकड़े गैंग', वामियों का गढ़ समेत तमाम तरह से ट्रोल कर रहे हैं, जेएनयू छात्रों पर दिल्ली पुलिस द्वारा की ज्यादती को सही ठहरा रहे हैं, वैसे में सोशल मीडिया पर एक ऐसे चाचा की पोस्ट भी आई है, जो खुद भाजपा नेता हैं, और उनके जेएनयू में अध्ययनरत आंदोलनकारी भतीजे शशिभूषण समद को पुलिस ने बुरी तरह पीटा है।
ताज्जुब की बात यह भी है कि भाजपा के जिलाध्यक्ष के भतीजे शशिभूषण नेत्रहीन हैं। शशिभूषण समद सोशल मीडिया पर क्रांतिकारी गानों के लिए पसंद किए जाते हैं। समद ने पाकिस्तानी विद्रोही शायर हबीब जालिब की नज्मों को सोशल मीडिया पर शेयर किया है और वे हजारों में शेयर हो रहे हैं। उनका यह संक्षिप्त परिचय इसलिए कि आप समद को समझ पाएं और मोदी सरकार की अत्याचारी व संवेदनहीन पुलिस को भी कि वह कहते रहे कि मैं नेत्रहीन हूं, पर पुलिस उनपर लाठियां और लात-घूंसे बरसाती रही। शशिभूषण सनद पर लाठियां बरसाते हुए पुलिस ने कहा कि अंधे हो तो प्रोटेस्ट में क्यों आये?
हालांकि शशिभूषण के चाचा अनिल पांडेय ने फेसबुक पर जो पोस्ट शेयर की है, उसमें यह जिक्र कहीं नहीं है कि वह उनके भतीजे हैं, उसमें उन्होंने शशिभूषण को मेरा बेटा कहकर ही संबोधित किया है, जिस कारण जनज्वार ने शुरू में अनिल पांडे को उनका पिता लिख दिया था। इस संबंध में जनज्वार ने पीड़ित छात्र शशिभूषण से बात करने की कोशिश की तो उनका नंबर स्वीच आफ था। शशिभूषण के एक मित्र ने बताया कि उनके पिता की बहुत पहले मौत हो चुकी है और उनकी परवरिश चाचा ने ही की है, जिस कारण उन्होंने सोशल मीडिया पर भी उन्हें मेरा बेटा कहकर संबोधित किया है।
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उत्तर प्रदेश के संतकबीर नगर जिले के भाजपा किसान मोर्चा के जिलाध्यक्ष अनिल पांडेय ने अस्पताल में दाखिल भतीजे की फोटो शेयर करते हुए फेसबुक पर लिखा है, 'जेएनयू के छात्रों द्वारा कल के आंदोलन में मेरा बेटा शशि भूषण पांडेय भी पुलिस के तांडव का शिकार हुआ। उसे गम्भीर अवस्था में एम्स में भर्ती किया गया। मैं अनिल पांडेय संत कबीर नगर जिले का भाजपा किसान मोर्चा का जिला अध्यक्ष हूं। मेरा परिवार जन संघ के समय से भाजपा के साथ है। जो लोग कहते है की जेएनयू वाले देशद्रोही हैं वह हमें बताएं कि मेरा परिवार क्या है? आज हमारे बेटे को चोट लगी है इसका जिम्मेदार कौन है? जेएनयू में गरीब परिवार के मेधावी छात्र अध्ययन करते हैं। देशद्रोही नहीं सब हमारे और आपके परिवार के हैं। आप लोग दुआ करें कि हमारा बेटा जल्दी स्वस्थ हो।'
समद के चाचा अनिल पांडेय की इस अपील में एक चाचा का जो दर्द है, वह तो जाहिर है ही, लेकिन इसमें उस अंधी भीड़ को एक जवाब है, जिसे भाजपा और उसके अंध समर्थकों ने जेएनयू के खिलाफ बड़ी सोच-समझकर खड़ा किया है। भाजपा जेएनयू आंदोलन के एकदम विरोध में खड़ी है। जेएनयू को भाजपा नेता और हिंदूवादी संगठन रंडीपाड़ा और देशद्रोहियों का अड्डा तो पहले से ही कहते रहे हैं, अब उन्होंने जेएनयू के लिए नई टैग लाइन 'जेएनयू मुफ्तखोरी का अड्डा' कहना और उसे देश में स्थापित करना शुरू कर दिया है।
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भाजपा के किसान मोर्चा जिलाध्यक्ष अनिल पांडेय का बेटा व जेएनयू का शशिभूषण समद जिस आंदोलन में शामिल थे, वह फीस बढ़ोतरी के खिलाफ था। मोदी सरकार के निर्देश पर विश्वविद्यालय प्रशासन ने जेएनयू की फीस कई गुना बढ़ा दी है, जबकि छात्रों का कहना है कि अगर ऐसा हुआ तो करीब 40 फीसदी गरीब छात्र विश्वविद्यालय से बाहर हो जाएंगे। हालांकि शशिभूषण के पिता अनिल पांडेय जेएनयू की फीस वृद्धि के खिलाफ खड़े आंदोलन को जायज ठहरा रहे हैं। उम्मीद कीजिए समय रहते अन्य संघी जमातों और भक्तों को सस्ती शिक्षा का महत्व समझ में आएगा।
उनके इस फेसबुक पोस्ट पर तमाम तरह की प्रतिक्रियायें आई हैं। आशुतोष पाण्डेय लिखते हैं, यह कोई तर्क नहीं हुआ पाण्डेय जी आप यह वर्षों से देख रहे हैं कि वहाँ अफजल का समर्थन व विवेकानंद जी का विरोध किया जा रहा है।'
वहीं राकेश मिश्र ने लिखा है, 'भीड़ में प्राय: निर्दोष लोग ही पुलिस के चपेट में आते हैं। यह दुखद है लेकिन वहां एक विशेष विचारधारा के छात्र अनावश्यक उद्दंडता कर रहे हैं इसमें कोई संदेह नहीं है। नवरात्रि में महिषासुर को महिमा मंडित करना, देशविरोधी नारेबाजी, भारत तेरे टुकड़े होंगे जैसे नारे लगाते छात्र हमारे आपके परिवार के नहीं हो सकते। कहावत है न कि एक मछली सारे तालाब को गन्दा कर देती है, वहां तो गंदी मछलियां ही अधिक हैं।'
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वहीं टिप्पणियों पर प्रतिक्रिया देते हुए शशिभूषण सनद के भाजपाई चाचा अनिल पांडे लिखते हैं, 'आंदोलन करना गुनाह है क्या भाई, एम्स की फीस जामिया इस्लामिया की फीस भी इतनी है, वह क्यों नहीं बढ़ाई गई। जेएनयू ही क्यों, जबकि कहीं भी दुनिया में विद्वता की बात आती है तो देश की इज्जत जेएनयू का ही छात्र ही रखता है।'
फिलहाल जेएनयू आंदोलन में पुलिस द्वारा नृशंसता से पीटे गये शशिभूषण के चाचा की टिप्पणी से तो राहत इंदौरी की यही लाइन सच साबित होती है कि 'लगेगी आग तो आएंगे घर कई जद में, यहां पे सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है...'
यह इसलिए क्योंकि जेएनयू का विरोध करने वालों में हिंदूवादी अतिवादी ही शामिल हैं, जिन्हें जेएनयू की सस्ती फीस काटने को दौड़ती है और जेएनयू टुकड़े-टुकड़े गैंग का केंद्र।