भगवान भरोसे चल रही आकाशवाणी की नेपाली यूनिट, संस्कृत न्यूज रीडर से पढ़वाया जा रहा नेपाली बुलेटिन
जहां हिंदी और अंग्रेजी भाषा के न्यूज रीडर को कम्प्यूटर में टाइप की हुई कॉपी से समाचार पढ़ने होते हैं, वहीं नेपाली भाषा के वाचक को हाथ से लिखी कॉपी से समाचार पढ़ने पड़ते हैं....
जनज्वार, दिल्ली। नई दिल्ली स्थित आकाशवाणी में नेपाली समाचार एकांश की हालत पस्त है। इस एकांश में स्टाफ के नाम पर एक कन्ट्रैक्चुअल (संविदा) कर्मचारी है और 5 कैजुअल कर्मचारी हैं। समाचार वाचकों का नेपाली भाषा एकांश में इतना अभाव है कि संस्कृत के समाचार वाचक को नेपाली समाचार पढ़ना पड़ रहा है।
आकाशवाणी में फ्रीलांस (स्वतंत्र) काम करने वालों को कैजुअल कहा जाता है। ऐसे कमचारियों को काम की आवश्यकता के अनुसार नियुक्त किया जा जाता। नियम अनुसार एक माह में एक कैजुअल को 6 ड्यूटी दी जा सकती है। आज भारतभर में आकाशवाणी में हजारों कैजुअल कर्मचारी सेवाएं दे रहे हैं।
हाल में इन कर्मचारियों ने नियमित किए जाने की मांग को लेकर जंतर मंतर में धरना भी दिया गया था। कुछ लोगों ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाकात भी की। एनडीटीवी के वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार ने भी अपने एक कार्यक्रम में इस विषय को उठाया था। बहुत से अन्यों ने अदालत में केस डाल रखे हैं, जो न्याय व्यवस्था के विभिन्न स्तरों में लंबित हैं।
आकाशवाणी में लंबे समय से समाचार प्रसारकों की भर्ती नहीं हुई है। नेपाली समाचार एकांश में 1980 के आरंभ में अंतिम भर्ती हुई थीं। उस वक्त जिन्हें भर्ती किया गया था वे रिटायर हो चुके हैं। आलम यह है कि 2011-2012 के बाद से विभाग में कोई भी रेगुलर कर्मचारी नहीं है और नेपाली विभाग की जिम्मेदारी पहले डोगरी, फिर कश्मीरी और अब पंजाबी एकांश के इंचार्ज को दी गई है।
तीनों ही भाषाएं वर्ण, व्याकरण और स्वर में नेपाली से एकदम अलग हैं और इसलिए एकांश में समाचार की गुणवत्ता को जांचने वाला कोई नहीं है। नाम न छापने की शर्त पर एक पूर्व कर्मचारी ने बताया कि जो लोग बाद में आए उन्हें पता ही नहीं चल पाया कि आकाशवाणी का स्टैंडर्ड क्या होता है। अब तो लोगों की इतनी कमी है कि न्यूज हो पा रही है इतना की बहुत है। दूसरे कर्मचारी का कहना है कि जहां 2 लोग चाहिए वहां 1 को लगाने से गुणवत्ता पर असर पड़ना स्वाभाविक है।
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हैरानी वाली बात ये है कि जहां हिंदी और अंग्रेजी भाषा के न्यूज रीडर को कम्प्यूटर में टाइप की हुई कॉपी से समाचार पढ़ने होते हैं, वहीं नेपाली भाषा के वाचक को हाथ से लिखी कॉपी से समाचार पढ़ने पड़ते हैं। ऐसे में गलती होना स्वाभाविक है। मजेदार बात ये है कि जो अनुवादक टाइप कर सकते हैं, उन्हें प्रिंटर के कागज तक नहीं दिए जाते जबकि हर महीने इसका कोटा तय है।
2012-13 में दो पूर्व कर्मचारियों को अनुबंध में रखा गया था, लेकिन बाद में विभिन्न बहानों से इन्हें हटा दिया गया। इसके बाद 2014-15 में अनुबंध में एक को भर्ती किया गया।
2015 में नेपाली एकांश के सभी कैजुअल कर्मियों ने एकांश की समस्याओं को लेकर डीजी न्यूज के समक्ष लिखित शिकायत दर्ज की थी। उस शिकायत में, अन्य शिकायतों के अतिरिक्त, यह आरोप लगाया गया था कि आवश्यकता के कम लोगों को बुलेटिन में लगाया जाता है। शाम के दो बुलेटिन के लिए निर्धारित 4 लोगों की जगह 2 लोगों को लगाया जाता है। उसी प्रकार सुबह और दोपहर के बुलेटिनों के लिए निर्धारित 2-2 लोगों के स्थान पर केवल एक को लगाया जा रहा है। एक बुलेटिन के लिए एक व्यक्ति को लगाना आकाशवाणी के नियमों के खिलाफ है।
शिकायत की सुनवाई करना तो दूर आकाशवाणी प्रशासन नेपाली कैजुअलों से बदला लेने पर आमादा हो गया। अन्य स्थानों में कार्यरत कैजुअलों से एनओसी लेकर आने को कहा गया, जबकि उन्हीं स्थानों में कार्यरत असमी और अन्य भाषा के कैजुअलों पर ऐसा कोई दवाब नहीं था। परिणामस्वरूप बहुत से कर्मी ने आकाशवाणी आना बंद कर दिया।
इसके बाद ‘एक बुलेटिन एक व्यक्ति’ की नीति के कारण नेपाली एकांश के इतिहास में पहली बार ब्रेकडाउन हो गया और समाचार का प्रसारण नहीं हो सका। इसके एक सप्ताह बाद एक बार फिर ब्रेकडाउन होते होते बचा और तब से अब तक लगभग हर सप्ताह ब्रेकडाउन की स्थिति बन जाती है।
हैरानी की बात यह है कि इस बारे में निदेशक राजेश कुमार झा सहित सभी को पता होने के बावजूद इसे यूं ही बनाए रखा जा रहा है। जबकि अन्य भाषाई यूनिटों को मैनपावर का अभाव बता कर अलग अलग राज्यों मे भेज दिया गया है, वहीं नेपाली एकांश जहां सच में लोगों का अभाव है, उसे जबर्दस्ती यहां बना के रखा जा रहा है।
संस्कृत न्यूज रीडर द्वारा नेपाली न्यूज पढ़े जाने पर आकाशवाणी नेपाली और पंजाबी के इंजार्च अमन कहते हैं, ऐसा इसलिए किया जा रहा है कि नेपाली न्यूज रीडर के पिता की मौत हो चुकी है और हम मजबूरी में ऐसा कर रहे हैं। वहीं जब अमन जी से जनज्वार ने कुछ और सवाल पूछे तो उन्होंने यह कहकर पल्ला झाड़ा कि मेरे पास एडिशनल चार्ज है, मैं नेपाली का परमानेंट इंचार्ज नहीं हूं। इस बारे में हमारे समाचार निदेशक और एडिशनल समाचार निदेशक ही बता सकते हैं। जिन लोगों को बेवजह निकाला गया है उन्हें क्यों नहीं बुलाया गया ऐसे संकट में? बुलाने न बुलाने का निर्णय कौन करता है? के जवाब में अमन कहते हैं कि मैं इस सवाल का कोई जवाब नहीं दे सकता, यह सब डिसिजन हायर एथॉरिटी करती है और इस पर जवाब भी वही दे सकते हैं।
वहीं इस बारे में जनज्वार ने आकाशवाणी के समाचार निदेशक राजेश कुमार झा से फोन पर कई बार संपर्क करने की कोशिश की, मगर उन्होंने फोन नहीं उठाया। दूसरी तरफ एडिशनल समाचार निदेशक जेपी सिंह ने पहली बार फोन उठाया, मगर उन्होंने समाचार वेबसाइट जनज्वार का नाम सुनते ही फोन काट दिया। उसके बाद कई बार फोन किया मगर उन्होंने फोन नहीं उठाया।