रोहतक के युवा कवि संदीप सिंह की दो कविताएं
अब हम अपनी लड़ाई खुद लड़ेंगे
अभी उदास बैठा सोच रहा था
कब वो दिन आएगा?
जब बैंक मैनेजर इज्जत के साथ
नाम लेकर बुलाएगा
आढ़ती अपनी बही फाड़ फेंकेगा
तभी दिया सुनाई
चाहते हो कर्ज माफी
और उचित दाम मिले फसल का
तो दिल्ली चलो भाई
यह सुन जो खुशी हुयी
मैं ही बता सकता हूँ
भूखा प्यासा रह
दिन-रात पोस्टर चिपकाए
बहुत कठिन समय से समय निकाल
उम्मीदों के साथ दिल्ली आए
मैंने नहीं देखा
पोस्टरों पर किसके चेहरे हैं
मैंने नहीं पूछा
कौन किसान संगठन एक हुए
मेरे लिए तो
यही काफी था कि
कर्ज से मुक्ति मिलेगी
फसलों के होंगे उचित दाम
फिर सपनों को मिलेगी एक उड़ान
सोचा था स्टेज पर किसान होंगे
सुनेंगे कहानी अपने संघर्षों की
यहां मैं देखता हूँ
स्टेज पर किसान नहीं
जमीनों के मालिक हैं
जो जुल्मों पर पर्दे डालने की कोशिश में
झूठ गढ़े जा रहे हैं
स्वयं को किसान हितैषी बता रहे हैं
कैसे भूलूं
कंडेला के शहीदों को
कैसे विस्मृत कर दूं सिंगूर को
कैसे निकालूं दिमाग से कैंसर के जहर को
आत्महत्या करते किसान को
जो कल किसानों पर
गोली चला रहे थे
डंडे बरसा रहे थे
वो फिर कह रहे हैं
हमें सत्ता दो
हम कर्ज माफ कर देंगे
हम फसलों के उचित दाम देंगे
स्टेज पर खड़े जो गले मिल रहे हैं
सब दलाल हैं W.T.O. के
सब हिमायती हैं डंकल के
सबको मिला है हिस्सा खेती की बर्बादी का
निजीकरण की दलाली का
यह सब देख
वापिस भाग आना चाहता हूँ
अपने बर्बाद हो चुके खेतों के बीच
लेकिन दूर दक्षिण से आए
किसानों का जज्बा रोक लेता है मुझे
हाथों में उठाई हड्डियां प्रेरणा देती हैं
संघर्षों में डटे रहने की
मैं किसानों के बीच
सुनता हूँ किसानों की बातें
जो कह रहे हैं
हमें अपना नेतृत्व खुद करना होगा
अपनी लड़ाई खुद लड़नी होंगी
जब तक स्टेज पर दुश्मन बैठेगा
तब तक फसलें सड़ती रहेंगी
हम फिर भी शुक्रिया करते हैं
इन सब चोर लूटेरों का
वोट के भूखे आदमखोरों का
कि हम इन्हीं के बैनर तले
बना रहे हैं योजना
अपने औजारों को हथियार बनाने की
किसानों के अनुभव सुन
लौट रहा हूँ वापिस
इस उम्मीद के साथ कि
हम अपना नेतृत्व
खड़ा करेंगे इस समझ के साथ
कि हमारी लड़ाई हमें लड़नी है
जाति, धर्म, लिंग, क्षेत्र से ऊपर उठ
हां, अब हम अपनी लड़ाई
खुद लड़ेंगे!
हां, अब हम अपनी लड़ाई
खुद लड़ेंगे!
संसदीय प्रतिनिधि
किसी के कदमों की
आहट के लिए
लड़ रहा हूं नींद से
रात के दो बजे
दरवाजे पर ठक-ठक की आवाज सुन
मैं दरवाजा खोलता हूं
और करता हूँ आलिंगन
महसूस करता हूं अपने हाथ
गर्म खून से भीगते हुए
वह बहुत जल्दी में है
शरीर पर गहरे घावों के बावजूद
आलिंगन छोड़ने से पहले
कान में धीरे से फुसफुसाता है
छोड़ दो यह जगह
दुश्मनों के सिर्फ चेहरे बदले हैं
उद्देश्य सच्चाई का कत्ल करना ही है
मैं उसे अंदर ले जाना चाहता हूँ
वह मुझे बाहर धकेलता है
और चीखता है
दफा हो जाओ यहां से
मेरे लहू के निशान सूंघते हुए
दुश्मन आ रहा है
मैं बात करना चाहता हूँ
वह खामोशी का इशारा करता है
जब मैं नहीं मानता
वह बस इतना कहता है
चेहरे बदलने से
लोगों की जिंदगियां बदलतीं
तब मेरे शरीर से खून नहीं बहता
हम दिन के उजाले में मिलते
हम समानता और बराबरी का संदेश
चोरी छिपे नहीं, खुल्लम खुल्ला देते
अब चले जाओ, छोड़ दो यह जगह
मेरी फिक्र भी मत करना
मैं अपनी जिंदगी की कीमत पर
एक संघर्षशील साथी को बचा पाया
तब मैं मुस्कुराते हुए
इस जिंदगी को अलविदा कह दूंगा
भावनाओं में बहकर
कमजोर मत बनो साथी
तुम्हें अभी लड़ना है
घर घर तक पहुंचाना है यह संदेश
सांपनाथ की जगह, शेषनाग आने से
शोषण की चक्की नहीं रुकती
कुछ वक्त जरूर मिल सकता है
खुद को संभालने का
आगे बढ़ने का
सच को घर घर तक पहुंचाने का
मैं मौत की जंग जीत सका
तब जरूर मिलूंगा
मेरे लिए परेशान मत होना साथी
अलविदा साथी!
अलविदा साथी!