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'मेरी मां की मौत हो गई, मैं लॉकडाउन से यहां पर फंसा हुआ हूं', बिहार के मजदूर ने लगाई मदद की गुहार

Janjwar Team
31 March 2020 12:46 PM IST
मेरी मां की मौत हो गई, मैं लॉकडाउन से यहां पर फंसा हुआ हूं, बिहार के मजदूर ने लगाई मदद की गुहार
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लॉक़डाउन के दौरान जब टीपू यादव दिल्ली में फंसे तो गांव में उनकी मां का निधन हो गया, जिसके चलते वह दिवंगत मां के अंतिम संस्कार तो दूर अंतिम दर्शन भी नहीं कर सकता है। टीपू ने सरकार से मदद की गुहार लगाई है...

जनज्वार। कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से देशव्यापी 21 दिवसीय लॉकडाउन की घोषणा की गई है। इस फैसले के साथ ही देशभर में 'जरूरी' सेवाओं के अलावा सबकुछ बंद कर दिया गया है। इससे आम लोगों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।

लॉक़डाउन के दौरान जब भागलपुर के टीपू यादव दिल्ली में फंसे तो गांव में उनकी मां का निधन हो गया, जिसके चलते वह दिवंगत मां के अंतिम संस्कार तो दूर अंतिम दर्शन भी नहीं कर सकता है। टीपू ने सरकार से मदद की गुहार लगाई है।

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टीपू यादव राजधानी दिल्ली के एक नाइट शेल्टर में रुके हुए हैं। रोते हुए वह कहते हैं, मैं बिहार के भागलपुर से दो जून की रोटी के चक्कर में दिल्ली आया था। गांव में मेरी मां की मौत हो गई, मगर मैं लॉकडाउन के चलते यहां पर फंसा हुआ हूं। मैं बेहद गरीब हूं। मैं ऐसी स्थिति में अपने गांव जाना चाहता हूं। कोई मेरी मदद करो।

टीपू के साथ उसके कुछ साथी भी हैं, वह कहते हैं, 'वह (टीपू) अपनी मां के अंतिम संस्कार में शामिल होना चाहता है। उसके साथी भी कहते हैं कि ऐसा समय भगवान किसी को न दे, जब किसी की मां की मौत हो जाए और उसका बेटा उसके अंतिम दर्शन तक न कर सके।

के साथ के साथियों के मुताबिक उसकी मां की मौत की सूचना उसके परिजनों ने फोन पर दी। जैसे टीपू यादव को उसकी मां की मौत की जानकारी वह चीख पड़ा। वहीं टीपू चाहता है, 'इन मुश्किल वक्त में मैं परिवार के लोगों के साथ ही रहना चाहता हूं, ऐसे में सरकार उसकी सहायता करे और उसे भागलपुर (बिहार) पहुंचा दिया जाए।'

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ता दें कि यह पहला मामला नहीं है जब लॉकडाउन से किसी प्रवासी मजदूर के सामने मुसीबत आयी हो। इससे पहले दिल्ली से पैदल मध्यप्रदेश जा रहे एक शख्स की हार्टअटैक से आगरा में मौत हो गई थी। लॉकडाउन लागू होने के बाद सबसे ज्यादा परेशानी प्रवासी मजदूरों को उठानी पड़ रही है। जहां कामकाज बंद होने से वे आजीविका को लेकर चिंतित हैं वहीं 10-12 घंटे तक काम में जुटने वाले मजदूरों को अब अपने घर-परिवार की चिंता सता रही है।

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