बिहार में सड़कों पर 3 लाख से ज्यादा शिक्षक, बोले बंधुआ मजदूर बनाकर काम करवा रही राज्य सरकार
हड़ताल की वजह से पूरे बिहार में कक्षा 1 से लेकर 10वीं तक के सारे स्कूल बंद हैं। सरकार भी लगातार कार्यवाही की चेतावनी दे रही है लेकिन अभी भी शिक्षक अपनी हड़ताल खत्म करने को तैयार नहीं है...
जनज्वार। बिहार में लाखों की संख्या में नियोजित शिक्षक 17 फरवरी से ही सड़कों पर है। पूर्ण वेतनमान की मांग को लेकर शिक्षक अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चल रहे हैं। इस समय बिहार में प्राथमिक विद्यालय से लेकर उच्च विद्यालय तक लगभग चार लाख से ऊपर नियोजित शिक्षक बिहार के स्कूल में पढ़ाने का काम कर रहे हैं।
उनका कहना है कि जिस समय नियोजित शिक्षकों की भर्ती किया गया था उस समय से लेकर आज तक करीब 15 साल हो गए हैं लेकिन आज भी उन्हें बिहार सरकार राज्य कर्मी का दर्जा नहीं दे पाई है और ना ही अभी तक उनकी सर्विस बुक बन पाई है। उन सभी शिक्षकों का कहना है कि हमें किसी भी तरह से सरकारी लाभ से आज तक वंचित रखा गया है।
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एक पुराने शिक्षक का वेतन 60 से 65 हजार है वहीं इनको मात्र 20 से 25000 पर उतना ही काम करना पड़ता है। 17 तारीख से ही प्रारंभिक शिक्षक अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले गए। वहीं उच्च विद्यालयों के शिक्षक बोर्ड की परीक्षाओं के चलते 25 तारीख से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर हैं। शिक्षकों का कहना है कि सरकार से अपने अधिकारों की मांग करना हमारा हक है। उसके बावजूद भी सरकार शिक्षकों पर एफआईआर और उनकी बर्खास्तगी तक की कार्रवाई उनके ऊपर कर चुकी है। इस बार नियोजित शिक्षक भी पूरे आर-पार के मूड में हैं।
फिलहाल सरकार ने कहा है कि शिक्षकों का वेतन कुछ बढ़ा दिया जाएगा लेकिन हड़ताली शिक्षक उस पर मानने को तैयार नहीं है। हड़ताल की वजह से पूरे बिहार में कक्षा 1 से लेकर 10वीं तक के सारे स्कूल बंद हैं। सरकार भी लगातार कार्यवाही की चेतावनी दे रही है लेकिन अभी भी शिक्षक अपनी हड़ताल खत्म करने को तैयार नहीं है। हड़ताल कर रहे इन नियमित शिक्षकों को लगभग सभी जनप्रतिनिधियों का समर्थन मिल रहा है। इसी कड़ी में कम्युनिस्ट पार्टी के भूतपूर्व राज्यसभा सांसद नागेंद्र ओझा भी धरनास्थल पर शिक्षकों को समर्थन देने के लिए पहुंचे।
धरना स्थल पर मौजूद महिला शिक्षिका सुमन कुमारी कहती हैं कि एक ही जगह पर हम दो तरह का वेतन दिया जा रहा है, काम एक ही कर रहे हैं। सरकार इससे हमको समाज और घर परिवार के बीच में अपमानित कर रही है। जो काम वह कर रहे हैं वहीं काम हम भी कर रहे हैं। उनके अंडर में करते हैं जिससे हम खुद को अपमानित महसूस करते हैं।
बक्सर जिले के ब्रह्मपुर प्रखंड में धरना स्थल पर मौजूद एक शिक्षक शुभनारायण पाल कहते हैं कि समान काम के लिए समान वेतन मिलना चाहिए। जो वेतन पुराने शिक्षकों को मिल रहा है वही हमें भी मिलना चाहिए। हम लोग उतना ही काम करते हैं और एक ही काम काम करते हैं जितना पुराने शिक्षक करते हैं। हमारी एक मांग समान कार्य के लिए समान वेतन है और दूसरी मांग ये है कि हमें राज्यकर्मी का दर्जा दिया जाए। राज्यसरकार ने हमें अभी तक राज्यकर्मी का दर्जा नहीं दिया है। हमारी सेवा शर्त भी नहीं बनाई गई है। पांच साल बीत गया है लेकिन अभी तक कोई सेवा शर्त नहीं बनाया गया है। राज्य सरकार हम लोगों का शोषण कर रही है।
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धरने में मौजूद शिक्षक अनिल कुमार कहते हैं, 'हमारी मांग सिर्फ इतनी है कि समान का समान वेतन हमें दे दें। हम पंद्रह वर्ष से नौकरी कर रहे हैं। हम सरकार के कर्मचारी हैं या किसके कर्मचारी हैं, आजतक हमको ही पता नहीं है। एक निजी क्षेत्र में यह भारत सरकार के श्रम विभाग की नियमवली है कि जिस नियोजन ईकाई में दस कर्मचारी काम करेंगे। वह संगठित कर्मचारी माने जाएंगे। उन्हें पीएफ, ईपीएफ का लाभ मिलेगा। जबकि विगत पंद्रह वर्षों से बिहार में कोई भी ऐसा नियोजन ईकाई नहीं है जहां दस शिक्षक से कम होंगे। फिर भी आज तक हम इसके लाभ से वंचित हैं।'
वह आगे कहते हैं, 'सरकार का एक ही मकसद है बंधुआ मजदूर बनाकर बिहार के लोगों को रखे। एक आदमी को अगर आप आधे वेतन पर खटाएंगे और एकक एफआईआर हम पर कर लिया जाएगा तो हम जेल चले जाएंगे। यह सरकार सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट में हमें दलील देता है कि यह हमारे बंधुआ मजदूर हैं क्योंकि शपथ पत्र दाखिल करके हम इनके यहां बहाल हुए हैं। हमारी मांग है कि सरकार, न्यायालय बंधुआ मजदूरी से हमें मुक्त करवा दे, ये हमारा सवैंधानिक अधिकार है।'