Exclusive : जयपुर से पटना जा रहे मजदूरों से 4500 रुपए किराया वसूल रहे बस मालिक, सबकुछ बेचकर घर जाने को मजबूर
बड़ा सवाल यह है कि लॉकडाउन के बाद अपना रोजगार गंवा चुके इन मजदूरों से रेल और बस का किराया वसूला जाना इतना जरूरी क्यों हैं. सरकार इऩको मुफ्त यात्रा की सुविधा क्यों नहीं देती...
जयपुर, जनज्वारः लॉकडाउन की घोषणा के एक महीने बाद जागी केंद्र सरकार ने मजदूरों को घर जाने के लिए परमिशन तो दे दी है लेकिन मजदूरों की परेशानियां अभी भी खत्म नहीं हुई हैं. लॉकडाउन की वजह से अपना रोजगार गंवा चुके प्रवासी मजदूरों के लिए घर जाना अभी भी एक बड़ा सवाल बना हुआ है.
दरअसल प्रवासी मजदूरों से उनके शहर या गांव जाने के लिए किराया वसूला जा रहा है. इस वक्त मजदूरों के लिए किराया देना एक बड़ा सवाल है.
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जयपुर में भी गरीब मजदूरों को ऐसी ही मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. आरोप है कि यहां कुछ प्राइवेट बस ऑपरेटर मजदूरों को उनके शहर या गांव पहुंचाने के बदले में मोटा किराया वसूल रहे हैं. दूसरी तरफ मुश्किलों के भंवर में फंसे मजदूर सबकुछ बेचकर भी घर जाना चाहते हैं, उनके पास इसके अलावा कोई और रास्ता बचा नहीं है.
राजस्थान असंगठित मज़दूर यूनियन के संयुक्त सचिव मुकेश गोस्वामी ने बताया, हमारे पास मजदूरो का फोन आया जिन्होंने बताया कि इंडिया गेट पर कई प्राइवेट बसें लगी हुई हैं जिनमें मजदूरों को ले जाया जा रहा है और बिहार में पटना या आसपास के इलाकों में जाने के लिए 4500 से 5000 रुपये लिए जा रहे हैं.
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मुकेश ने बताया कि उन्होंने खुद एक बस ऑपरेटर से फोन पर बात की. वहां से जवाब मिला, '4500 रुपये एक व्यक्ति का किराया लगेगा और जाने वाले यात्रियों की एक सूची बनानी होगी और 10000 रुपये एडवांस देना होगा और इंडिया गेट पर मिल जाना वे सरकार से अनुमति ले लेंगे.'
मुकेश ने कहा कि 3 मई की रात को एक दर्जन से अधिक बसें मजदूरों को लेकर गई हैं सबसे 4500 से 5000 किराया वसूला गया. उन्होंने कहा, 'यह उच्च स्तरीय जाँच का विषय है ऐसे समय में जब मजदूरों के पास कुछ नहीं बचा है तब उनसे बहुत अधिक पैसा वसूला जा रहा है.'
मुकेश ने बताया कि विभन्न जनसंगठनों और यूनियनों एक संयुक्त ज्ञापन सुबोध अग्रवाल, अतिरिक्त मुख्य सचिव उद्योग को सौंपा है. ज्ञापन में मांग की गई है मजदूरों को ले जाने की पूरी प्रक्रिया पारदर्शी हो, अगर निजी बसों को इस काम में लगाया गया है तो उन्हें पूरी तहर रेगुलेट किया जाए और ज्यादा किराया वसूलने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जाए.
बता दें लॉकडाउन के कारण देश के अलग अलग हिस्सों में फंसे प्रवासी मजदूर, छात्र, पर्यटकों सहित अन्य लोगों के लिए उनके शहरों और गांवों तक पहुंचाने की इजजात केंद्र सरकार ने शुक्रवार को दी थी. शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के घर पर हुई बैठक के बाद इस पर निर्णय लिया गया. इस बैठक में पीएम के साथ गृह मंत्री अमित शाह, रेल मंत्री पीयूष गोयल समेत कई वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे. गृहमंत्रालय ने इस बारे में विस्तृत गाइडलाइन भी जारी की थी.
क्या कहते हैं नियम?
राजस्थान सरकार के परिवहन सचिव रवि जैन से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, 'सरकार की तरफ से नॉन एसी बस के लिए 32 रुपये प्रति किलोमीटर और एसी बसों के लिए 42 से 45 प्रति किलोमीटर तय किया गया है. बस ऑपरेटर दोनों तरफ का चार्ज लेगा क्योंकि बसें केवल मजदूरों के लिए ही चल रही है. इस हिसाब से एक बस का जितना पैसा बनता है वह सवारियों में बराबर डिवाइड किया जाता है.
वहीं एक प्राइवेट बस में जयपुर से बिहार जा रहे एक युवक समीर पठान ने बताया कि उसने इस सफर के लिए चार हजार रुपये दिए है. उन्होंने बताया कि बस में जितनी सवारियां बैठी है उसके हिसाब से पैसा लिया जा रहा. सवारियों से 4 से पांच हजार रुपये लिए जा रहे हैं.
बेरोजगार मजदूरों से किराया वसूलना कितना जायज...
लॉकडाउन का सबसे ज्यादा प्रभाव प्रवासी मजदूरों पर ही पड़ा है. लॉकडाउन घोषित होने के बाद उद्योग धंधे और बाजार बंद हो जाने की वजह से करोड़ों मजदूरों को अपने रोजगार से हाथ धोना पड़ा है.
एक महीने से भी ज्यादा समय से यह लोग बिना किसी काम के शहरों में फंसे हुए हैं. केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा मजदूरों को खाने और रहने की सुविधा देने की चाहे जितने दावे किए जा रहे हों लेकिन हकीकत यह है कि लॉकडाउन ने मजदूरों की तोड़ कर रख दिया है.
हाल ही मजदूरों के बीच हुए एक सर्वे में इन मजदूरों मुश्किले उजागर हुई थीं. जिसके तहत 96% प्रवासी मजदूरों को सरकार से राशन नहीं मिला है जबकि 90% को लॉकडाउन के दौरान मजदूरी नहीं मिली थी.
सवाल यह है कि इन मजदूरों से रेल और बस किराया वसूला जाना इतना जरूरी क्यों हैं. जहां केंद्र सरकार दुनियाभर की घोषणाएं करने कर क्या वह इन मजदूरों को मुफ्त यात्रा करने की सुविधा नहीं दे सकती.
यह स्पष्ट है कि केंद्र और राज्य सरकारों ने अभी मजदूरों को सस्ते दर या मुफ्त यात्रा का कोई फैसला नहीं लिया है. मजदूरों के लिए यात्रा के लिए पैसा जुटाना एक बड़ी चुनौती बना हुई है.