भारत के वामपंथी पूंजीवाद को तो भारतीय श्रमिकों का शत्रु मानते रहे, लेकिन उन्होंने ब्राह्मणवाद को भारतीय श्रमिकों का शत्रु नहीं माना...
सामाजिक कार्यकर्ता रामू सिद्धार्थ की टिप्पणी
क्या सोचते थे, डॉ. आंबेडकर श्रमिकों के बारे में? आज 1 मई को अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस है। भारत के श्रमिक वर्ग के शत्रु कौन हैं और श्रमिक वर्ग की मूल समस्या क्या है?
इस बारे में आंबेडकर ने कहा है कि " मेरी मान्यता यह है कि इस देश में कामगारों को दो शत्रुओं का मुकाबला करना है। वे दो शत्रु हैं, 'ब्राह्मणवाद और पूंजीवाद'।'
भारत के वामपंथी पूंजीवाद को तो भारतीय श्रमिकों का शत्रु मानते रहे, लेकिन उन्होंने ब्राह्मणवाद को भारतीय श्रमिकों का शत्रु नहीं माना। भारतीय श्रमिक आंदोलन की पराजय का यह एक महत्वपूर्ण कारण रहा।
आंबेडकर ने भारतीय कामगारों को इन दो शत्रुओं को आज के करीब 100 वर्ष पहले चिन्हित कर लिया था। 12-13 फरवरी 1938 को उन्होंने मुम्बई में 'क्या हमारी ट्रेड यूनियन होनी चाहिए?' इस विषय पर श्रमिकों को संबोधित करते हुए यह बात कही थी।
इस भाषण में उन्होेंने कामगारों का आह्वान किया था कि 'अगर हमें संपू्र्ण कामगार आंदोलन को एकता के सूत्र में बांधना है, तो असमानता के जनक, ब्राह्मणवाद को हमें जड़ से उखाड फेंकना होगा।' इसी भाषण में उन्होंने यह भी कहा कि 'ब्राह्मणवाद कामगार आंदोलन को ध्वस्त करने का मूल कारण है, उसे खत्म करने के प्रामाणिक प्रयत्न कामगारों को करना चाहिए। उसे अनदेखा करने या से या चुप बैठने से यह संक्रामक रोग जानेवाला नहीं है। उसका निश्चित पीछा करना होगा और उसे खोदकर, जड़ से मिटाना होगा। उसके बाद ही कामगारों की एकता का मार्ग सुरक्षित होगा।'
अपनी प्रसिद्ध किताब 'जाति का विनाश' इसका कारण बताते हुए उन्होंने कहा कि 'जाति केवल श्रम विभाजन की व्यवस्था नहीं है, यह श्रमिकों का भी विभाजन है।"
भारतीय वामपंथ ब्राह्मणवाद से संघर्ष से मुंह चुराता रहा है, अब कुछ वामपंथी संगठन यह स्वीकार करने लगे हैं कि पूंजीवाद के साथ ही ब्राह्मणवाद भी कामगारों उतना ही बड़ा शत्रु है। इस नई पहलकदमी का स्वागत करना चाहिए। लेकिन ऐसा करने में 100 साल लग गये।
श्रमिकों के बीच जातीय विभाजन को खत्म किए बिना और ब्राह्मणवाद एंव पूंजीवाद को कामगारों दो बराबर के शत्रु माने बिना भारतीय श्रमिक आंदोलन को सफलता नहीं मिल सकती।(फोटो प्रतीकात्मक)