न्याय के लिए सत्याग्रह की राह पर गुजरात केंद्रीय विश्वविद्यालय के सुरक्षाकर्मी
अनशन कर रहे सभी सुरक्षाकर्मी गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले लोग हैं, अगर अमानवीय तरीके से नौकरी इन्हें नौकरी से निकाल दिया गया तो उनके परिवार का भविष्य खतरे में पड़ जाएगा...
गाँधीनगर, जनज्वार। जब पूरे देश में दमन और हिंसा का दौर चल रहा हो, जब सत्ता की सह पर बेलगाम उन्मादी भीड़ प्रायोजित तरीके से लोगों को पीट-पीटकर हत्या कर दे रही हो, जब मानव अधिकारों को लेकर संघर्षरत लोगों को देशद्रोही और नक्सली करार दे दिया जा रहा हो, जब समाज के सबसे पीड़ित, शोषित और वंचित आदिवासी समाज के अधिकारों लिए आवाज उठाने वालों को जेलों में ठूंस दिया जा रहा हो, ऐसे भयावह दौर में देश के लोकतंत्र की नीव रखने वाले दो सबसे मजबूत स्तम्भ महात्मा गाँधी और सरदार पटेल की धरती गुजरात भी इससे अछूती नहीं है।
एक तरफ गुजरात में पाटीदार नेता हार्दिक पटेल आरक्षण और किसानों के मुद्दे को लेकर लगातार 12 दिनों से भूख हड़ताल और आमरण अनशन कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ, गुजरात के एकमात्र केंद्रीय विश्वविद्यालय यानि गुजरात केंद्रीय विश्वविद्यालय में पिछले तीन सालों से सेवारत सुरक्षाकर्मी के निकाले जाने के बाद पुनः अपने समायोजन को लेकर पिछले दो दिनों से विश्वविद्यालय गेट के सामने अनशन कर रहे हैं।
क्या है पूरा मामला
ये सभी सुरक्षाकर्मी गुजरात केंद्रीय विश्वविद्यालय में पिछले तीन सालों से यानि 2015 से लगातार निष्ठापूर्वक सेवारत रहे हैं। ये सभी मूलतः पेथापुर गाँव, गाँधीनगर के रहने वाले हैं, जो विश्वविद्यालय कैम्पस से कुछ ही किमी की दूरी पर स्थित हैं
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गांधीनगर के सेक्टर-29 में आने वाला, यह गुजरात केंद्रीय विश्वविद्यालय जिस जमीन पर स्थित है वो जमीन कभी इन सुरक्षाकर्मियों की हुआ करती थी, जिससे गुजरात सरकार ने इन लोगों को विस्थापित करके बहुत काम दर पर अधिग्रहित किया था। जिसके बाद से इन सभी लोगों के पास रोजगार के लिए कोई साधन नहीं था, इसलिए जब हमें मानवीय आधार पर यहाँ रोजगार प्राप्त हुआ। तब से अब तक जो भी सुरक्षा कम्पनी यहां रही हो। वो हर एक साल बाद जब उनका कॉन्ट्रेक्ट का विस्तार होता था तो उन्हें ले लिया जाता रहा है।
इन सभी सुरक्षाकर्मियों को 2015 से यहाँ पर ESIS और GPF भी मिलता रहा है और ये सभी लोग 'न्यूनतम मजदूरी अधिनियम-1948' घोर अतिक्रमण के बावजूद बहुत काम सैलरी पर विश्वविद्यालय में निष्ठापूर्वक सेवारत थे। इसके अलावा, 2015 से पहले जो भी सुरक्षाकर्मी इस विश्वविद्यालय में नौकरी कर रहे थे उसमें से लगभग 70 प्रतिशत लोग आगे भी सेवारत के लिए शामिल रहे। जबकि 2015 में, नई सुरक्षा कम्पनी के आने के बाद लगभग 90 प्रतिशत पुराने लोगों को पुनः समायोजित कर लिया गया था।
जब हाल के दिनों में यानि अगस्त 2018 में नई सुरक्षा कंपनी का कॉन्ट्रेक्ट आया, जिसमें उन्हें हर बार की तरह समायोजित नहीं किया गया। इन्हें अमानवीय तरीके से विश्वविद्यालय के गेट बाहर का रास्ता दिखाया गया। ये सभी सुरक्षाकर्मी गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले लोग हैं, अगर अमानवीय तरीके से नौकरी इन्हें नौकरी से निकाल दिया गया तो उनके परिवार का भविष्य खतरे में पड़ जाएगा।
क्या है इनकी मांगें
वे सभी सत्याग्रही अनशनकारी सुरक्षाकर्मी चाहते हैं कि उन्हें 2015 की तरह कम से कम 70 प्रतिशत लोगों को पुनः नौकरी के लिए समायोजित कर लिया जाय। जिस तरह से इस विश्वविद्यालय में, 2015 से अब तक निष्ठापूर्वक और समर्पण के साथ सेवा की है और आगे भी इसी तरह अपना फर्ज अदा करते रहेंगे।
किस तरह से न्याय के लिए कर रहे हैं अपील
ये सभी सत्याग्रही सुरक्षाकर्मी विश्वविद्यालय के प्रत्येक छात्र-छात्राओं से और टीचिंग व नॉन-टीचिंग स्टॉफ से अपील कर रहे हैं कि वे उनके लिए और उनके परिवार की आजीविका की खातिर विश्वविद्यालय प्रशासन से आग्रह करें कि हमें हर बार की तरह नई सुरक्षा एजेंसी साथ समायोज़ित कर लिया जाय. इसके लिए वे सबसे आभार प्रकट कर रहे हैं। इस माँग को अंजाम तक पहुंचाने के लिए 'पूर्व सुरक्षाकर्मी सत्याग्रह मंच' बनाया है।
सी. यू. जी. प्रशासन कर रहा है अनशन को तोड़वाने की साज़िश
विश्वविद्यालय प्रशासन को बात का अंदाजा नहीं था कि ये सभी सुरक्षाकर्मी अनशन कर सत्याग्रह के लिए चले जाएंगे, क्योंकि अनशन शुरू होने से पहले आख़री बार जब वे सभी सुरक्षाकर्मी ने प्रशासन से मिलने की कोशिश की तो सभी लोगों विश्वविद्यालय के मुख्यद्वार से भीतर नहीं घुसने दिया। बमुश्किल काफी प्रयास के बाद दो या तीन लोगों को जाने दिया गया। जब वे उनसे मिलने पहुंचे तो उनको यह बताया गया कि अब आपका कुछ नहीं हो सकता है, अब आप सभी को जो करना हो करिये। हम आपको नहीं लेंगे।
लेकिन जब अगले दिन अनशन की शुरुआत हुई तो वे फिर मिलने पहुंचे तो विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार प्रो आलोक गुप्ता अनशन के दबाव में आकर उनकी मांगों पर दोबारा विचार करने का आश्वासन दिया। चूंकि कुलपति इस समय विश्वविद्यालय में मौजूद नहीं हैं तो उसका प्रभार संभाल रहें डीन पर्यावरण विभाग प्रो। एम एच फुलेकर को इस मामले को सुरक्षाकर्मियों ने लिखित रूप से अवगत कराया।
पिछले 3 दिनों से धरने पर बैठे सुरक्षाकर्मियों से प्रशासन का कोई नुमाइंदा इनसे मिलने तक नहीं आया और न ही इनकी मांगों को लेकर कोई संवेदनशीलता बरती गयी, लेकिन आंदोलन को तोड़ने का षणयंत्र पहले दिन से शुरू हो चुका था। सबसे पहले जो लोग उसमें थोड़ा तेज-तर्रार और नौजवान सुरक्षाकर्मी थे, उन्हें कुछ दिनों बाद समायोज़ित करने का लालच देकर अनशन को कमजोर किया।
इसके बाद अगले दिन इसमें से कुछ लोगों को अघोषित मेसेंजर बनाकर समझाने की कोशिश की कि मीडिया कवरेज से विश्वविद्यालय का तथाकथित रूप से इमेज खराब हो रहा है और बदनामी हो रही है. आप जितने लोगों हो अपना नाम के साथ हस्ताक्षर करके विश्वविद्यालय में जमा करा दें, आप लोग अभी अनशन बंद कर दें। आप सभी को बाद में ससम्मान बुलाया जाएगा। इसके अलावा पुलिस पर भी बार-बार दबाव बनाया जा रहा है कि अनशनकर्मियों को विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार से हटाया जाय।
छात्रों का मिल रहा है उनका भरपूर सहयोग
जो भी संवेदनशील छात्र वहां से गुजर रहा है तो सभी सुरक्षाकर्मियों का मिलकर हाल-चाल पूछना और उनके अनशन का समर्थन कर रहा है। इसमें से कई छात्र उनके लिए फल, बिस्किट और मिठाइयां भी उनके लिए उपलब्ध करवा रहे हैं।
खैर, यह सत्याग्रह कब तक चलता है? क्या इनको वाकई में न्याय मिल पायेगा? ये सब अभी भविष्य के गर्भ में सुरक्षित है।
लेकिन जिस तरह ये सुरक्षाकर्मी शांतिपूर्वक और लोकतांत्रिक तरीके से निवेदन और आग्रह कर रहे हैं। एक दिन, एक करके विश्वविद्यालय का प्रत्येक न्यायप्रिय और संवेदनशील इंसान इनके पक्ष में खुलकर समर्थन में आएगा और इनका भविष्य टूटकर बिखरने से बचाएगा। फिर से इनके परिवार के भीतर खुशियों का दीपक जलेगा।