सरकार ने कहा-हमारी अनुमति के बिना कोरोना पर खबर ना छापे मीडिया, सुप्रीम कोर्ट ने दिया ये आदेश
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से दिशा निर्देश मांगा कि कोई भी मीडिया सरकार के साथ पहले तथ्यों के बिना COVID-19 समाचार प्रकाशित न करे, इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा फर्जी खबर फैलाने वालों पर होनी चाहिए कार्रवाई..
जनज्वार। केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय से एक निर्देश की मांग की गई कि कोई भी मीडिया आउटलेट सरकार द्वारा प्रदान किए गए तंत्र से तथ्यों का पता लगाए बिना कोरोना वायरस (COVID-19) पर कुछ भी प्रिंट, प्रकाशित या प्रसारित न करे।
कोरोना वायरस की महामारी के उपाय और नियंत्रण, प्रवासी श्रमिकों के कल्याण के लिए दिशा निर्देश मांगने वाली जनहित याचिका के जवाब में केंद्र सरकार ने अपनी स्टेटस रिपोर्ट में यह प्रार्थना की है।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, गृह सचिव आईएएस अजय भल्ला द्वारा दायर की गई स्टेटस रिपोर्ट में कहा गया कि इस प्रकृति की एक अभूतपूर्व स्थिति में जानबूझकर या अनजाने में फर्जी या गलत रिपोर्टिंग या तो इलेक्ट्रॉनिक, प्रिंट, सोशल मीडिया या वेब पोर्टल में समाज के बड़े हिस्से में दहशत पैदा करने की गंभीर और अपरिहार्य संभावना है।
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स्टेटस रिपोर्ट में में आगे कहा गया कि संक्रामक बीमारी की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए, जिससे दुनिया निपटने के लिए संघर्ष कर रही है, ऐसी रिपोर्टिंग के आधार पर समाज के किसी भी वर्ग द्वारा किसी भी दहशत की प्रतिक्रिया न केवल ऐसी स्थिति के लिए हानिकारक होगी बल्कि पूरे राष्ट्र को नुकसान पहुंचाएगी।
'इसलिए यह न्याय के सबसे बड़े हित में है कि जब इस अदालत ने संज्ञान लिया है, तो यह अदालत एक निर्देश जारी करने की कृपा करे कि कोई भी इलेक्ट्रॉनिक / प्रिंट मीडिया / वेब पोर्टल या सोशल मीडिया केंद्र सरकार द्वारा प्रदान किए गए अलग तंत्र से सही तथ्यात्मक स्थिति पहले पता किए बिना कुछ भी प्रिंट / प्रकाशित या प्रसारित नहीं करेगा।'
केंद्र ने कहा कि आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के तहत खौफ का माहौल बनाना एक अपराध है। 'सुप्रीम कोर्ट से उचित निर्देशन' देश को किसी भी संभावित और अपरिहार्य परिणाम से बचाएगा।
केंद्र ने अदालत को कोरोना वायरस की महामारी के ट्रांसमिशन को रोकने के उपायों के बारे में भी अवगत कराया।
सरकार ने कोर्ट को बताया कि जब विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोविड -19 को अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी घोषित किया था, केंद्र सरकार और सभी मंत्रालयों ने उससे पहले ही इस पर कार्रवाई शुरु कर दी थी।
सरकार ने बताया कि भारत ने जिस तरह से जवाब दियां दुनिया के बहुत कम देशों ने समय पर जवाब दिया है, नतीजन कोविड 19 का अब तक भी हमारे देश में प्रसार नहीं हो सका है।
चीन द्वारा सात जनवरी को नोवेल कोरोनावायरस के बारे में घोषणा की गई, इसके बाद भारत के केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव ने सभी राज्य स्वास्थ्य सचिवों को जांच करने और आपात स्थितियों से निपटने के लिए अस्पताल में तैयारियों को लेकर आवश्यक कार्रवाई का आदेश दिया गया। )
केंद्र ने कहा कि चीन की ओर से घोषणा के बाद एक भी दिन बिताए बिना यह कर्रवाई पहले ही शुरु की गई थी।
केंद्र ने कहा कि कोविड -19 के लिए टेस्ट की क्षमता को युद्ध स्तर पर बढ़ाया गया है। करीब 118 लैब वर्तमान में ऑपरेशनल हैं जो प्रतिदिन 15,000 टेस्ट की क्षमता रखते हैं। केंद्र ने बताया कि 20000 से अधिक संग्रह केंद्र क साथ 47 प्राइवेज लेब्रोटरी का समन्वय किया गया है। केंद्र ने कहा कि गृहमंत्री खुद स्थिति की निगरानी व्यक्तिगत तौर पर कर रहे हैं।
इसमें कहा गया है कि यह प्रस्तुत किया गया है कि गृहंत्रालय ने भी दैनिक आधार पर समय पर कई तत्काल कदम उठाए हैं। गृहमंत्री स्वयं व्यक्तिगत रूप से निगरानी कर रहे हैं, जारी किए गए निर्देशों/परामर्शों के कार्यान्वयन कैबिनेट सचिव, गृह सचिव और अन्य अधिकारियों के लए नियंत्रण कक्ष है जो 24 घंटे चालू रहता है।
प्रवासी श्रमिकों के मुद्दे पर केंद्र ने कहा कि नियंत्रण कक्ष द्वारा प्राप्त विवरण के मुताबिक केंद्र सरकार के दिशानिर्देश पर राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों के द्वारा 21,064 राहत शिविर पहले बनाए जा चुके हैं जिनमें वे प्रवासी श्रमिकों की आवश्यकता के अनुसार भोजन, आश्रय और चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध करवा रहे हैं। लगभग 6,66,291 लोगों को आश्रय प्रदान किया गया है, 22,88,279 लोगों को भोजन उपलब्ध करवाया गया है। यह सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त उपाय किए गए हैं कि बीमारी ग्रामीण इलाकों में न फैले।
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केंद्र ने कहा कि 'विशेषज्ञों के समूहों के साथ विस्तृत और विचार-विमर्श' के बाद 21-दिवसीय लॉकडाउन की घोषणा की गई थी। वैश्विक महामारी के प्रसार को रोकने के लिए बड़े जनहित में कुछ असुविधा की कीमत पर भी यह एक आकस्मिक उपाय करना आवश्यक था।
अपडेट
मंगलवार को सुनवाई के बाद मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने एक आदेश पारित किया, जिसमें कहा गया कि फर्जी खबरों से पैदा हुई घबराहट ने मजदूरों के बड़े पैमाने पर पलायन को बढ़ावा दिया और उन्होंने जिम्मेदार मीडिया कवरेज का आह्वान किया। मुख्य न्यायाधीश ने निर्देश दिया कि केंद्र को उन सभी व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए जो नकली समाचार फैलाते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'हम महामारी के बारे में खुली चर्चा में हस्तक्षेप करने का इरादा नहीं रखते हैं, लेकिन मीडिया प्रत्यक्ष को देखें और घटनाक्रम के बारे में आधिकारिक संस्करण प्रकाशित करे।'