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फटे रेनकोट और हेलमेट पहनकर कोरोना मरीजों का इलाज कर रहे भारत के डॉक्टर

Janjwar Team
31 March 2020 7:30 PM IST
फटे रेनकोट और हेलमेट पहनकर कोरोना मरीजों का इलाज कर रहे भारत के डॉक्टर
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कोरोना महामारी में बिना पीपीई किट इन हालातों में मरीजों की जान बचाने को तत्पर दिखे डॉक्टर

अभी तक बीमारी से निपटने की दिशा में सरकार ने नहीं उठाया ठोस कदम, डॉक्टरों के पास अच्छे उपकरण तो दूर उन्हें फटे रेनकोट और हेलमेट लगाकर करना पड़ रहा मरीजों का इलाज...

जनज्वार ब्यूरो, दिल्ली। कोरोना वायरस से लड़ने के लिए सरकार की तैयारी क्या है? इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि डॉक्टरों तक के पास अपने बचाव के साधन नहीं है। यह वह डॉक्टर है, जो कोरोना वायरस से पीड़ित मरीजों का इलाज कर रहे हैं। इन्हें खुद को संक्रमित होने से बचाने के लिए रेन कोट पहनना पड़ रहा है, सिर पर हेलमेट डालने पर मजबूर है।

डॉक्टरों की यह दयनीय हालत बता रही है कि देश की स्वास्थ्य सेवाओं का हाल क्या है? न्यूज एजेंसी रायटर्स की रिपोर्ट कोरोना वायरस से निपटने की तैयारियों पर सवाल खड़ा करती नजर आ रही है। एजेंसी की ओर से 26 मार्च 2020 को लिया गया एक फोटो भी जारी किया गया है, इसमें दिखाया गया कि डॉक्टर फटे हुए रेनकोट और सिर पर हेलमेट डाले कोरोना के मरीजों के बीच खड़े हैं।

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हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दावा किया था कि सरकार दक्षिण कोरिया और चीन से मेडिकल उपरकण आयात कर रही है। जिससे चिकित्सा उपकरणों की कमी को पूरा किया जा सके।

रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक कोराना वायरस को फैलने से रोकने में लगे 12 से अधिक डॉक्टरों ने बताया कि उचित उपकरणों के बिना उन्हे खुद के संक्रमित होने का अंदेशा है। अब एक ओर तो वह वायरस की रोकथाम में लगे हैं, लेकिन बिना उपकरणों के यदि वह संक्रमित हो जाते हैं तो वह खुद ही वायरस फैलाने की वजह बन सकते हैं।

में अभी तक कोरोना संक्रमण के 1,251 मामले सामने का गये हैं, इसमें से 32 लोगों की मौत भी हो गयी है।

मंगलवार को उत्तर प्रदेश में लगभग 4,700 एम्बुलेंस ड्राइवर हड़ताल पर चले गए। उन्होंने कहा कि उन्हें अपने बचाव के लिए उचित ड्रेस तक नहीं मिल रही है। एंबुलेंस वर्कर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष हनुमान पांडे ने कहा, "जब तक हमारी मांग पूरी नहीं हो जाती, हम अपने जीवन को जोखिम में नहीं डालेंगे।"

जिस तरह से कोरोना वायरस के मामले सामने आ रहे हैं, यहीं माना जा रहा है कि मई के मध्य तक एक लाख लोग संक्रमित हो सकते हैं। ऐसे में कमजोर स्वास्थ्य सेवायें और बचाव के उपायों की कमी हालात को और ज्यादा खराब कर सकती है।

पूर्वी शहर कोलकाता के अस्पताल में कार्यरत जूनियर डॉक्टरों ने रॉयटर्स को बताया कि उन्हें संक्रमित मरीजों की जांच के वक्त पहने के लिएए प्लास्टिक का रेनकोट दिया गया था। इसमें से एक डॉक्टर ने बताया कि हम अपनी जिंदगी को दांव पर लगा कर इलाज नहीं कर सकते। हालांकि डाक्टरों की शिकायत पर जब अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक प्रभारी डॉ असीस मन्ना ने बातचीत करने की कोशिश की तो उन्होंने कोई भी टिप्पणी करने से इंकार कर दिया।

रियाणा में ईएसआई अस्पताल में कार्यरत डॉ संदीप गर्ग ने बताया कि मरीजों की जांच के वक्त उनके पास सिर ढापने के लिए कोई सुरक्षा उपकरण नहीं है इस वजह से उन्हें मोटरसाइकिल चलाते वक्त पहने जाने वाले हेलमेट का प्रयोग करना पड़ता है। जबकि इस तरह के संक्रमण के वक्त डॉक्टरों के पास एन 95 मास्क होने चाहिए।

डॉक्टरों को आ रही दिक्कत व मेडिकल उपकरणों के अभाव पर जब रायटर्स ने स्वास्थ्य मंत्रालय ने सवाल किया तो उन्हें कोई जवाब नहीं दिया गया।

लचर स्वास्थ्य सेवाओं के पीछे एक बार फिर से यह बात उभर कर सामने आ रही है कि हमारे देश इसके लेकर कोई ठोस नीति ही नहीं है। यहां सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं पर लगभग 1.3 प्रतिशत ही खर्च किया जाता है। जो विश्व में सबसे कम है।

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स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि हमारा हेल्थ सिस्टम इतना कमजोर है कि इसके भरोसे हम खुद को बीमारियों से बचा नहीं सकते। बस हम प्रार्थना कर सकते हैं कि कोई बीमार ही न हो।

रियाणा के रोहतक में पर्याप्त सुरक्षा उपकरणों के अभाव के कारण सरकारी अस्पताल के कई जूनियर डॉक्टरों ने मरीजों का इलाज करने से इंकार कर दिया। डाक्टरों ने बताया कि उन्होंने कोविड -19 फंड में एक एक हजार रुपये दिये हैं। इस फंड से ही उनके लिए मास्क और अन्य सुरक्षा उपकरण खरीद कर उपलब्ध करा दिये जाए।

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