कांग्रेसी नहीं ये संघी नेता हराएंगे भाजपाई गृहमंत्री गुलाब चंद कटारिया को
नरेंद्र मोदी विचार मंच के अध्यक्ष प्रवीण रतलिया ने बोल दिया है गृहमंत्री पर सीधा हमला, कभी बता रहे हैं रतलिया को हत्यारा तो कभी कर रहे हैं दावा कि विदेशों से की है संपत्ति अर्जित....
उदयपुर से गौरव कुमार की रिपोर्ट
जनज्वार। पिछले 15 साल से विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने वाले नेता जो मुख्यमंत्री बनने की ख्वाहिश रखते हैं, वह इस बार अपने ही घर में घिरते नजर आ रहे हैं। एक बात जो उदयपुर के विधानसभा क्षेत्र में अक्सर सुनने को मिलती थी कि भाईसाहब यानी गुलाब चंद कटारिया व्यवहार की राजनीति को बड़े अच्छे ढंग से समझते हैं और उसे 5वें साल भुना भी लेते हैं, जिसके चलते हर बार उनके खिलाफ बहती हवा उनके पक्ष में हो चलती है।
मगर लगता है इस बार ये हवा उनसे बेरुखी हो चली है। कांग्रेस पार्टी की सूची आने से पहले ही कटारिया को चक्रव्यूह में फंसने में उनके अपने ही लोग कामयाब नज़र आ रहे है। ये बात तब ओर भी चिंता बढ़ाने वाली है जब कांग्रेस की तरफ से कद्दावर महिला नेता गिरिजा व्यास का नाम लगभग तय माना जा रहा हो।
गृहमंत्री के लिए चक्रव्यूह तैयार करने वालों में कई नाम शामिल हैं जैसे दलपत सुराणा, भरत कुमावत और प्रवीण रतलिया।
जनसंघ के स्तम्भों में से एक दलपत सुराणा को आगे किया है भैरोंसिंह शेखावत के मंच ने जो जनता सेना के बैनर तले ताल ठोकेंगे। भैरोसिंह शेखावत मंच लम्बे समय से कोशिशें करता रहा है मगर प्रत्याशी को लेकर हर बार चूकता रहा है। लेकिन इस बार जनता सेना के प्रमुख और वल्लभनगर विधानसभा के विधायक रणधीर सिंह भींडर का साथ मिलने से गृहसेवक कटारिया की मुश्किलें बढ़ती नज़र आ रही हैं।
मंच ने इसी साल मेवाड़ में हाइकोर्ट की मांग को लेकर भी जबरदस्त प्रदर्शन किया था जिसका खामियाजा इस चुनाव में भाजपा को भुगतना पड़ सकता है। ये कटारिया जैसे नेता के लिए इसलिए भी चिंताजनक है, क्योंकि मंच से जुड़े सभी लोग जनसंघ के दौर में मेवाड़ में जुड़े थे, जिन्हें आज की भाजपा में हाशिये पर धकेल दिया गया। अब ये देखने वाली बात होगी कि दलपत सुराणा कांग्रेस से कैसे टक्कर लेते हैं, क्योंकि वह कह चुके हैं कि उनकी लड़ाई भाजपा से नहीं बल्कि कांग्रेस से है।
इसी सूची में दूसरा नाम है भरत कुमावत का। कुमावत समाज भाजपा का पारम्परिक वोट माना जाता रहा है, हालांकि राज्य भर में कुमावत समाज ने राजनीतिक प्रतिनिधित्व को लेकर अपनी मांग तेज कर दी है जिसका एक दृश्य मंत्री सुरेंद्र गोयल के टिकट कटने के बाद दिखा।
गोयल ने निर्दलीय नामांकन भरने की बात कहते हुए समाज को एकजुट किया। इतना ही नही भरत कुमावत का ये भले ही पहला चुनाव हो, लेकिन राजनीतिक पृष्ठभूमि के मामले में वह नए नहीं दिखते। उनके चाचा युधिष्ठिर कुमावत भाजपा का बहुत बड़ा चेहरा माने जाते रहे हैं और नगर निकाय के सभापति भी रह चुके हैं।
भरत कुमावत ने 2012 के अन्ना आंदोलन से जुड़ने के बाद आम आदमी पार्टी को उदयपुर में लाने में काफी मेहनत की, जिसका परिणाम रहा कि राजस्थान के संगठन ने उन्हें राज्य प्रवक्ता और विधानसभा प्रत्याशी बना दिया। अपने चुनाव प्रचार के दौरान एक बेहद दिलचस्प मुहिम को लाते हुए भरत कुमावत जनता से चंदा लेने घर घर तो जा ही रहे हैं, साथ ही इस चंदे के बदले श्रमदान भी कर रहे हैं।
देखने वाली बात यह होगी गुलाबचंद कटारिया के वोट कितना काट पाते हैं और मुख्य मुकाबले में खुद को कैसे स्थापित करते हैं, क्योंकि उनका और उनकी पार्टी का राजस्थान में यह पहला चुनाव है।
अंतिम और बेहद दिलचस्प नाम है प्रवीण रतलिया का, जो नाटकीय ढंग से गुलाबचंद कटारिया को टक्कर दे रहे हैं। सबसे युवा समाजसेवक का दावा करने वाले और अवार्ड पाने वाले रतलिया नरेंद्र मोदी विचार मंच के प्रदेश अध्यक्ष हैं। पिछले 2 साल से कई बड़े कार्यक्रम कर चुके रतलिया शायद बीजेपी से टिकट मिलने को लेकर ऐसा आश्वस्त थे कि अब जब उन्हें बीजेपी ने टिकट नहीं दिया।
उदयपुर इकाई के संगठन ने उनके बीजेपी से ही किसी तरह के सम्बंध को नकार दिया है तो वह प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कटारिया पर सीधा हमला बोल रहे हैं। कभी उनको हत्यारा बता रहे हैं तो कभी उनके विदेशों में सम्पत्ति अर्जित करने का दावा कर रहे हैं।
इन दिनों में वे जिस चीज को लेकर चर्चा में है उसका कारण है उनकी बदजुबानी जिसमें उन्होंने गुलाबचन्द कटारिया को हार्ट अटैक देने की बात की, जिसके बाद उनकी बुरी खिल्ली उड़ी। मगर वह युवाओं में अपनी लोकप्रियता का दावा करते हुए जीत की बात कर रहे हैं।
युवा वर्ग बेशक महत्वपूर्ण हो, लेकिन राजस्थान में बीजेपी के खिलाफ बहती सत्ता विरोधी लहर में वह कैसे खुद को साबित कर पाएंगे, जबकि वह अब तक भाजपा सरकार की नीतियों का समर्थन करते रहे हैं और अब जब टिकट कट गया है तो वह भाजपा सरकार के गृहमंत्री के संहार तक की बात कर रहे हैं।
प्रोफेशनल तरीके अपनाकर लोकप्रियता हासिल करने वाले रतलिया कहीं न कहीं राजनीतिक समझ के मामले में रणनीतिक चूक करते नज़र आ रहे हैं, जिसे सोशल मीडिया पर उनकी महत्वाकांक्षा या अपरिपक्वता भी कहा जा रहा है। पर जो भी हो एक बात तो तय है कि जो भी वोट प्रवीण रतलिया के खाते में जायेगा उसका खामियाजा गृहसेवक को भुगतना पड़ेगा।