गेहूं उत्पादक किसानों के लिए आफत बना कोरोना, फसल काटना बड़ा चैलेंज
हरियाणा और पंजाब में गेहूं की फसल पक कर तैयार है। ऐसे में यदि जल्दी कटाई न हुई तो खेत में ही फसल खराब हो सकती है। दिक्कत यह है कि यहां 60 प्रतिशत गेहूं प्रवासी मजदूर ही काटते हैं। इस बार लॉकडाउन है, इसलिए मजदूर कहां से आयेंगे?
मनोज ठाकुर की रिपोर्ट
जनज्वार ब्यूरो, चंडीगढ़। हरियाणा और पंजाब के किसानों के सामने इस बार गेहूं की कटायी आफत बन गयी है, क्योंकि फसल काटने का 60 प्रतिशत काम प्रवासी मजदूर ही करते थे। लगभग एक अप्रैल से गेहूं की कटाई शुरू हो जाती है, मगर इस बार लाॅकडाउन की वजह से 9 अप्रैल के बाद भी कटाई की तैयारी नहीं हुई है।
पंजाब कृषि विभाग के अधिकारियों के अनुसार 5 लाख हेक्टेयर और हरियाणा के कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक जोगराज ढांढी ने बताया कि प्रदेश में 25.53 लाख हेक्टेयर में गेहू की फसल पक कर तैयार है। जल्दी ही यदि कटाई का काम शुरू न हुआ तो फसल खेत में ही झड़ना शुरू हो जायेगी। जितनी देरी होगी उतना ही किसानों का नुकसान बढ़ना शुरू हो जाएगा।
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जालंधर जिले के गांव माजरा के किसान 65 वर्षीय सुखबीर सिंह कहते हैं, उनके दस एकड़ गेहूं पक कर तैयार हैं। 60 प्रतिशत गेहूं की कटाई हार्वेस्टर मशीन से होती है, जबकि बाकी की गेहूं कटाई का काम प्रवासी मजदूर हाथों से करते हैं। लॉकडाउन से पहले ही प्रवासी मजदूर जो कि ज्यादातर बिहार से आते हैं, पंजाब छोड़कर चले गये हैं।
वहीं एक दूसरे किसान सुखचैन सिंह कहते हैं, अब क्योंकि पंजाब में तो कर्फ्यू लगा है, ऐसे में हार्वेस्टर मशीन की आवाजाही भी बंद है।
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पटियाला जिले के गांव के किसान इंदरप्रीत सिंह 55 के पास 12 एकड़ गेहूं है, उन्होंने बताया कि कर्फ्यू के कारण मंडियों भी गेहूं खरीद का इंतजाम नहीं है। पहले तो खेत से फसल काटना ही संभव नहीं है। यदि किसी तरह से कट भी जाती है तो इसका किसान करेंगा क्या?
अकाली दल के नेता व पूर्व उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल ने कहा कि सरकार तुरंत सभी दलों की एक बैठक बुलाये, जिसमें गेहूं खरीद से लेकर कोई रणनीति बनायी जा सके। सुखबीर बादल ने कहा कि यदि गेहूं खरीद के लिए सरकार ने कोई रणनीति नहीं बनायी तो किसानों को भारी आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ेगा।
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इधर पंजाब के सीएम कैप्टन अमरेंदर सिंह ने बताया कि सरकार गेहूं को लेकर चिंतित है। सरपंचों को अधिकार दिया गया कि वह गांव में कर्फ्यू पास जारी कर सकते हैं। गेहूं की खरीद 20 अप्रैल से करने की तैयारी हो रही है। मंडियों में गेहूं की खरीद करना खासा मुश्किल काम होगा, क्योंकि तब मंडी में भीड़ होने का अंदेशा है। इस भीड़ को कैसे कम कर सकते हैं। इसी को लेकर कोई बीच का रास्ता निकाल सकते हैं।
इधर हरियाणा में भी गेहूं उत्पादक किसान परेशान हैं। करनाल जिले के कुंजपुरा के 38 वर्षीय किसान रामकुमार ने बताया कि प्रवासी मजदूर तो चले गये हैं। अब वह आयेंगे भी नहीं। क्योंकि गेहूं कटाई का समय एक अप्रैल से लेकर 30 अप्रैल तक है। इस अवधि में ज्यादातर फसल कट जाती है। उन्होंने बताया कि मजदूरों की कमी की वजह से वह खुद ही गेहूं की कटाई के काम में जुट गये हैं।
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भारतीय किसान यूनियन के प्रदेशाध्यक्ष रत्न मान ने कहा कि पंजाब व हरियाणा सरकार किसानों का कोई ध्यान ही नहीं रख रही है। कोरोना वायरस की सबसे ज्यादा मार ही किसानों पर पड़ रही है। एक अप्रैल के बाद किसानों को हर रोज 10 प्रतिशत फसल का नुकसान हो रहा है, क्योंकि जैसे जैसे समय बीत रहा है, फसल खेत में खराब हो रही है। यदि मौसम खराब हो गया तो यह नुकसान 25 से लेकर 50 प्रतिशत तक भी पहुंच सकता है।
उन्होंने कहा कि गेहूं का सीजन किसानों के लिए ही महत्वपूर्ण होता, बल्कि उन अनेक मजदूरों के लिए भी महत्वपूर्ण होता है। क्योंकि मजदूर किसानों के साथ खेत में काम करा कर मजदूरी के तौर पर गेहूं लेते हैं, इससे उनका साल भर के लिये खाने का अनाज काम चल जाता है। इस बार लगता है कि इन मजदूरों को भी खेतों में काम नहीं मिलेगा।
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किसानों ने बताया कि हार्वेस्टर की आवाजाही बंद है। ऐसे में फसल कट ही नहीं सकती है। इधर हरियाणा के सीएम मनोहर लाल ने बताया कि हम एक ऐप बना रहे हैं, इस पर हार्वेस्टर की उपलब्धता होगी। जिस भी किसान को हार्वेस्टर चाहिए वह यहां से बुक कर सकता है। मनोहर लाल ने यह भी बताया कि छह मई से लेकर 31 मई के बीच में जो किसान मंडी में गेहूं लेकर आएगा, उन्हें 50 रुपये प्रति क्विंटल बोनस दिया जायेगा। एक जून से लेकर 30 जून के बीच जो किसान गेहूं लेकर आयेगा उसे 125 रूपये बोनस प्रति क्विंटल दिया जायेगा।
मगर भाकियू प्रदेशाध्यक्ष रत्न मान का कहना है कि सुनने में सरकार का प्रयास बहुत अच्छा लगता है, लेकिन यह व्यावहारिक नहीं है। क्योंकि किसानों के पास ऐसा कोई सिस्टम ही नहीं है कि वह गेहूं की कटाई करने के बाद इसे स्टोर कर लें। हरियाणा और पंजाब केंद्रीय पुल में 70 प्रतिशत गेहूं देते हैं। गेहूं के भंडारण के लिए सरकार के पास गोदाम कम पड़ जाते हैं। फिर किसान कैसे इसका भंडारण इतने समय के लिए कर सकता है।