आर्थिक संकट को मुद्दा बनाकर जनता को एकजुट करने में सिर्फ वामपंथी शक्तियां ही सक्षम : मोहम्मद सलीम
सीपीएम के पूर्व सांसद मोहम्मद सलीम कहते हैं, तृणमूल कांग्रेस की गुंडागर्दी और भाजपा के झूठ से निपटना ही हमारी लिए असल चुनौती...
जनज्वार, कोलकाता। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के पोलित ब्यूरो सदस्य और पश्चिम बंगाल के रायगंज से सांसद रहे मोहम्मद सलीम राष्ट्रीय स्तर पर उस समय चर्चा में आए थे, जब उन्होंने राष्ट्र के बहुलतावादी संस्कृति पर एक जोरदार टिप्पणी की थी। संसद में दिया उनका यह भाषण वायरल हुआ था और देशभर में न सिर्फ करोड़ों लोगों ने देखा, बल्कि कहा भी कि ऐसे नेताओं की मुल्क को जरूरत है।
कोलकाता के अलीमुद्दीन रोड स्थित सीपीएम के पश्चिम बंगाल पार्टी आफिस पर मोहम्मद सलीम से हमारी मुलाकात हुई। सलीम देश की उस पार्टी के नेता हैं, जिस पार्टी ने पश्चिम बंगाल की सत्ता पर करीब 32 साल एकछत्र राज किया। पर पार्टी आफिस की चमक-दमक से ऐसा लगता नहीं है। जितना बड़ा हेड आफिस सीपीएम का कोलकाता में है, उससे बड़ा तो आजकल सिर्फ एक चुनाव लड़ने के लिए बरसाती मेंढक सरीखी उगने वाली पार्टियों का होता है। अंदाजा इसी से लगा लीजिए कि पीली टैक्सी वाले ने हमें सीपीएम आफिस वाली सड़क यानी अलीमुद्दीन रोड के अंदर ले जाने से मना कर दिया। कहा अंदर जाकर मेरी टैक्सी फंस जाएगी। उसने हमें मेन रोड पर ही उतार दिया।
हमारे साथी पत्रकार ने टैक्सी से उतरने के बाद टिप्पणी की, 'सीपीएम 32 साल में एक ढंग का दफ्तर नहीं बना सकी और भाजपा ने पांच साल पूरा होने से पहले ही दिल्ली में कॉरपोरेट दफ्तर खोल लिया, फिर भी वह देशप्रेमी है और कम्युनिस्ट देशद्रोही कहे जाने लगे हैं।' फिर उन्होंने आगे कहा, 'यही हाल पत्रकारिता में भी हो गया है। जो साधनहीन पत्रकार अपनी जमापूंजी लगा या फिर बहुत मामूली साधनों में मुश्किल से जनता की पत्रकारिता को जीवित रखे हुए हैं, उन्हें गालियां पड़ रही हैं और पत्रकारिता के नाम पर दलाली कर रहे पत्रकार कद्रदान बने हुए हैं।'
मोहम्मद सलीम हमें एक छोटे से कमरे में मिलते हैं। हमारा स्वागत लूची-सब्जी और चाय से होता है। लूची एक तरह की पूड़ी ही होती है, लेकिन उसे माड़ते हुए पानी के साथ तेल या घी पड़ता है। सुबह के नाश्ते में दुकानों पर आमतौर पर यह पूरे बंगाल में मिलता है।
मोहम्मद सलीम से अजय प्रकाश की बातचीत