Begin typing your search above and press return to search.
विमर्श

दलितों के रैडिकल उभार ने भाजपा के समरसता सिद्धांत को टांग दिया है उल्टा

Janjwar Team
6 April 2018 11:09 AM GMT
दलितों के रैडिकल उभार ने भाजपा के समरसता सिद्धांत को टांग दिया है उल्टा
x

पढिए पूर्व आईपीएस और रक्षा विशेषज्ञ वीएन राय का एससी/एसटी एक्ट पर एक महत्वपूर्ण आलेख

भारतीय तंत्र में एक अजीब नजारा देखने को मिल रहा है। जातीय उत्पीड़न के खिलाफ बने एससी एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक व्यवस्था को उत्पीड़ित समाज के ही जन आन्दोलन ने संविधान बचाने के नाम पर चुनौती दे डाली।

यह संभव हुआ क्योंकि भारतीय संविधान में, समानता और स्वतंत्रता जैसे मौलिक अधिकारों का क्रमशः सामाजिक समता और न्यायिक विवेक से सामंजस्य किया गया है। मौजूदा रस्साकशी में सुप्रीम कोर्ट इस सामंजस्य के एक सिरे पर खड़ा दिखा और जन आन्दोलन दूसरे पर!

दलित युवक को इसलिए मार डाला कि वह घोड़े पर चढ़कर गांव से निकलता था

फिलहाल, दो अप्रैल के दलित बंद ने संघ की हिंदुत्व राजनीति पर गहरी चोट की है। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि दलित समुदाय के इस व्यापक आक्रोश प्रदर्शन से भाजपा का ‘समरसता’ के एजेंडे में लिपटा संविधान परिवर्तन का आयाम एकबारगी राजनीतिक नेपथ्य में पहुँच गया।

इस परिप्रेक्ष्य में,दस अप्रैल के प्रस्तावित संघी बंद के गहरे निहितार्थ हैं। दरअसल, बिना समता (equity) के समानता (equality) थोपने की कवायद, मसलन जातिगत आरक्षण पर प्रश्नचिन्ह,देश को एक असंवैधानिक परिणति की ओर ही ले जाएगी।

आरक्षण नहीं होता तो पांडे जी का बेटा आईएएस बन जाता!

यूँ आरएसएस संचालित राज्यों में, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15,16, 17 में समानता और समता के दलित सामंजस्य को व्यवहार में तो रोज ही तोड़ा जा रहा है। सरसरी नजर से देखने पर भी, उनके समर्थकों के आये दिन के बेलगाम दलित उत्पीड़नके प्रसंग, उनके अपने ‘हिंदू एकता’ नारे का मखौल बनाते हैं। जबकि संघ, न इस नारे के पाखंड को छोड़ सकता है और भला अपने धुर समर्थकों को तो टोके कैसे!

संबंधित खबर : सूदखोरों ने पहले 20 हजार के बदले वसूले 2 लाख, फिर दलित महिला को जिंदा जलाया

ये अनुच्छेद, भारतीय संविधान के भाग तीन में दर्ज मौलिक अधिकारों के वे रूप हैं, जो संविधान के बुनियादी ढांचे का हिस्सा होने के चलते,बदलाव का निशाना नहीं बनाये जा सकते। इनके तहत ही रोजगार और शिक्षा में दलितों के लिए आरक्षण करना संभव होता है। संविधान के भाग सोलह के अनुच्छेद 335 के तहत सरकारी सेवाओं और पदों में दलितों और आदिवासियों के दावे, प्रशासनिक कुशलता के अनुरूप, स्वीकार्य करने होंगे।

राजस्थान में दलित सरपंच को मारकर किया अधमरा

यहाँ मौजूदा बहस के संवैधानिक आयामों के परस्पर पूरक रिश्तों को जानना जरूरी है।मौलिक अधिकारों में,छूआ-छूत परंपरा से लादी जाने वाली हर असमर्थता कानूनन दंडनीय घोषित है (अनुच्छेद 17), और साथ ही मनमानी या अनियंत्रित गिरफ़्तारी और कैद से बचाव का समुचित अधिकार भी (अनुच्छेद 22) सभी को हासिल है।इतना ही नहीं,सभी के लिए व्यक्तिगत, धार्मिक, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और जीवन और शिक्षा के अधिकार की अवधारणायें भी मौलिक अधिकार में शामिल हैं।

सूदखोरों ने दलित महिला को जलाकर मार डाला, लेकिन योगी ने अब तक मुंह नहीं खोला

उपरोक्त अनुच्छेद 17 के तहत ही एससी एसटी एक्ट (अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम,1989)बना है जो फिलहाल सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दलित उत्पीड़न के एक मामले में विचाराधीन था।अब इस पर आये वर्तमान फैसले की व्यापक आलोचना बनी है कि एक्ट के कठोर प्रावधानों को हल्का कर दिया गया है। कम से कम मुक़दमा दर्ज करने से पूर्व जांच के निर्देश को लेकर तो निश्चित ही दलित आशंका जायज है।

तुरंत मुक़दमा दर्ज हो, यह सुनिश्चित करने के लिए, इस सम्बन्ध में कोताही करने वाले सरकारी कर्मी को भी अभियुक्त बनाने की एक्ट में व्यवस्था रही है। जबकि,सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क के साथ कि एक्ट का व्यापक दुरुपयोग किया जा रहा है, अनिवार्य रूप से प्रारंभिक जांच के बाद ही मुक़दमा दर्ज करने का आम निर्देश जारी किया है।

दलितों से गुंडागर्दी करने वाले भाजपा विधायक पर मुकदमा दर्ज

यहाँ बिना आंकड़ों के सच-झूठ की भूल-भुलैया में घुसे भी स्पष्ट है कि सुप्रीम कोर्ट ने सामाजिक वास्तविकता की एकतरफा व्याख्या की है; इस हद तक फैसले की व्यवस्था में समता ही नहीं समानता की भी अनदेखी की गयी है।

हालाँकि,एक्ट की धारा 18 में अग्रिम जमानत पर लगी रोक को हटाकर सुप्रीम कोर्ट ने सामाजिक वास्तविकता को स्वीकारा भी है। अग्रिम जमानत किसी आरोपी का हक़ नहीं होती और सशर्त परिस्थितियों में ही मिलती है। इसी तरह,झूठे मुकदमे वही नहीं होते जिनमें पुलिस अदालत में चार्जशीट दाखिल न करे। दरअसल, कितने ही झूठे मुकदमे पुलिस स्वयं गढ़ती है और उनमें चार्जशीट भी दाखिल करती है। क्या युवा दलित नेता चंद्रशेखर के विरुद्ध योगी पुलिस ने एकदम झूठी चार्जशीट नहीं दे रखी है?

भरपेट रोटी के लिए दलित परिवार में हुआ झगड़ा, 13 वर्षीय लड़की ने की आत्महत्या

वर्षों पूर्व मैं स्वयं भी गवाह रहा हूँ कि कैसे फरीदाबाद में जाट जाति के एक जुझारू पत्रकार को, ब्राह्मण जाति के पुलिस अधीक्षक ने अपनी व्यक्तिगत खुन्नस निकालने के लिए,अपने मातहत एक दलित जाति के उप पुलिस अधीक्षक की मार्फत एससी एसटी एक्ट में फर्जी केस दर्ज कर महीनों जेल मं रखा। बाद में अदालत ने केस को चार्ज लगाने योग्य भी नहीं पाया और ख़ारिज कर दिया।क्या कोई गारंटी दे सकता है कि इस एक्ट के अंतर्गत दर्ज होने वाला एक भी वाकया अग्रिम जमानत लायक नहीं बनेगा?

संविधान की दुहाई देने वालों को याद रखना होगा कि ‘सबूत के बाद गिरफ़्तारी’ ही संविधान सम्मत न्यायिक प्रक्रिया हो सकती है। सुप्रीम कोर्ट के गिरफ़्तारी से पूर्व पुलिस अधीक्षक की अनुमति को अनिवार्य बनाने से एससी एसटी एक्ट कमजोर नहीं होगा, बल्कि इसकी न्यायिक पकड़ और मजबूत ही होगी। इससे वरिष्ठ अधिकारी को एक्ट के अंतर्गत सबूत जुटाने से लेकर गिरफ़्तारी से जुड़े हर पक्ष के प्रति सीधा जवाबदेह बनाया जा सकेगा। गिरफ़्तारी में देरी के प्रति भी और एक्ट के दुरुपयोग के प्रति भी!

संवैधानिक प्रावधानों में परस्पर सामंजस्य बेशक अन्तरनिहित हो,उससे सामाजिक यथार्थ में दरार की थाह नहीं मिलती।जब मैं यह सब लिख रहा हूँ, गुजरात में एक दलित युवक को गाँव में घोड़े पर चलने के जुर्म में मौत दी जा चुकी है और यूपी के कासगंज में प्रशासन की नींद हराम हुयी पड़ी है कि वहां के निजामपुर गाँव में घोड़े पर सवार होकर शादी के लिए जाने वाले दलित युवक को सुरक्षित रास्ता देना कैसे सुनिश्चित किया जाये।

फरीदाबाद के सुनपेड़ गाँव का लोमहर्षक कांड भूला नहीं होगा,जहाँ अक्तूबर 2015 में दलित पिता द्वारा अपने दो बच्चों को जलाकर मारने और पुराने विपक्षियों को इस मामले में झूठा लपेटने का केस सीबीआई इसलिये चार्जशीट नहीं कर पायी है क्योंकि वह सत्ता राजनीति को रास नहीं आएगा।

सामाजिक बदलाव के क्रम में हिंसा होना दुर्लभ नहीं। सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक सक्रियता और अंबेडकर के प्रति राजनीतिक वफ़ादारी प्रदर्शन के दौर में,दो अप्रैल के बंद में उत्पीड़ित की जुम्बिश देखने को मिली थी; क्या दस अप्रैल को दबंग का तांडव देखना होगा?

Janjwar Team

Janjwar Team

    Next Story

    विविध