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आंदोलन

ओबीसी आरक्षण बढ़ाने की मांग के लिए हथुआ-मीरगंज में पैदल मार्च

Prema Negi
22 Jan 2019 3:58 PM IST
ओबीसी आरक्षण बढ़ाने की मांग के लिए हथुआ-मीरगंज में पैदल मार्च
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एससी एसटी ओबीसी जनजागरण संघ के संयोजक संजय कुमार कहते हैं, केंद्र सरकार के हर दफ़्तर में 80% तक अफ़सर जनरल यानी अनरिजर्व कैटेगरी के हैं। फिर भी सरकार ने 10% रिज़र्वेशन ग़रीब अनरिजर्व कैटेगरी वाले को दे दिया। जब गुपचुप तरीके से भेदभाव जाति के तरीके से हो रहा है तो आरक्षण गरीबी के आधार पर क्यों...

हथुआ। दलितों—पिछड़ों का कहना है कि वर्तमान मोदी सरकार संविधान पर बार बार हमले कर रही है और दलितों—पिछड़ों व अल्पसंख्यकों के विरुद्ध नीतियां बना रही है, इसलिए सामाजिक न्याय मंच के बैनर तले सैकड़ों गरीब दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों ने मिलकर हथुआ और मीरगंज में एक दिवसीय प्रदर्शन किया। प्रदर्शन में सरकार से मांग की गयी की अभी भी सवर्ण जाति के लोग 90% लोग नौकरियों मे हैं इसलिए इस गैप को बैकलाग भर्ती कर असमानता दूर करे और आरक्षण जनसंख्या के अनुपात में लागू किया जाय।

इसके साथ मांग की गई की आरक्षण प्राइवेट क्षेत्र, मीडिया के क्षेत्र तथा ठेकेदारी के साथ न्यायपालिका में लागू किया जाय। इस प्रदर्शन मे जेपी यादव, शेखु खा, राजकिशोर यादव, शशिभूषण कुशवाहा, सचिन कुशवाहा, ज्योतिष कुशवाहा, अमोद कुशवाहा, इरशाद अंसारी, गुड्डू अंसारी, किशोर जी, पिन्टुराम, अभय यादव, कलिन्द्र, धर्मेन्द्र जी, खालिद अंसारी, धर्मेन्द्र कुशवाहा, रमन महतो, पिन्टू बारी, सतीश कुशवाहा इत्यादि सैकड़ों लोग ने भाग लिया।

एससी एसटी ओबीसी जनजागरण संघ के संयोजक संजय कुमार ने कहा कि केंद्र सरकार के हर दफ़्तर में 80% तक अफ़सर जनरल यानी अनरिजर्व कैटेगरी के हैं। फिर भी सरकार ने 10% रिज़र्वेशन ग़रीब अनरिजर्व कैटेगरी वाले को दे दिया। जब गुपचुप तरीके से भेदभाव जाति के तरीके से हो रहा है तो आरक्षण गरीबी के आधार पर क्यों, क्या किसी जनरल कास्ट के किसी गरीब के साथ भी जातिगत भेदभाव होता है? सरकार एससी, एसटी, ओबीसी को क्या समझती है?

संजय कुमार के मुताबिक देश में कुल 43 सेंट्रल यूनिवर्सिटी है। क्या आप बता सकते हैं कि इनमें से कितनी यूनिवर्सिटी में इस समय SC-ST-OBC के वाइस चांसलर हैं? नहीं मालूम हैं तो यह जानिए देश के 496 वाइस चांसलर में से 448 सवर्ण हैं। ये वाइस चांसलर अपने ही जाति बिरादरी वालों को नौकरियां देते हैं।

RTI के जरिए मिली जानकारी का हवाला देते हुए कहा कि भारत की सेंट्रल यूनिवर्सिटीज में 95 परसेंट प्रोफेसर रिजर्व कोटे से बाहर से हैं। एसोसिएट प्रोफेसर पदों पर ऐसे लोग 92 फीसदी जनरल कास्ट के हैं। कैबिनेट सेक्रेटेरिएट, जहां से देश चलता है, वहां 80 परसेंट अनरिजर्व कटेगरी के अफसर हैं। ज्यादातर जगह उनकी संख्या 70 फीसदी के आसपास है।

ऐसे में मोदी सरकार ने ऊपर से 10 परसेंट सवर्ण आरक्षण लागू कर दिया है। क्या सवर्ण आरक्षण की कोई जरूरत थी? क्या गरीब सवर्णों को आरक्षण देने से पहले एससी-एसटी-ओबीसी के खाली पदों को नहीं भरा जाना चाहिए था?

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