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संस्कृति

सांगठनिक बलात्कार वर्चस्व, भय और शक्ति प्रदर्शन का एक रूप

Prema Negi
29 March 2019 10:34 AM GMT
सांगठनिक बलात्कार वर्चस्व, भय और शक्ति प्रदर्शन का एक रूप
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'देह ही देश' किताब पर आयोजित कार्यक्रम में वक्ताओं ने कहा यौन हिंसा जब किसी स्त्री पर होती है, तो वह उसको और निहत्था करती है...

वाराणसी। काशी हिंदू विश्वविद्यालय और प्रगतिशील लेखक संघ, वाराणसी के संयुक्त तत्वावधान में हिंदी विभाग, महिला महाविद्यालय में संवाद-परिसंवाद कार्यक्रम गरिमा श्रीवास्तव की पुस्तक 'देह ही देश' पर आयोजित किया गया।

कार्यक्रम में उपस्थित अतिथियों के स्वागत के साथ विषय प्रस्तावना का कार्य डॉ. प्रभाकर सिंह ने किया। इसके बाद हिंदी की शोधार्थी निवेदिता एवं ज्योति तिवारी ने अपने विचार प्रस्तुत किये। डॉ.वंदना चौबे ने गरिमा श्रीवास्तव के रचना कर्म पर बात करते हुए 'देह ही देश' पर विस्तृत चर्चा भारतीय संदर्भ में की।

उन्होंने कहा कि सांगठनिक बलात्कार वर्चस्व, भय और शक्ति प्रदर्शन का एक रूप है। हिंदी विभाग, काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रो.आशीष त्रिपाठी ने कहा की 'देह ही देश' की रचना प्रक्रिया कथेतर साहित्य के नवीन विधा का सृजन करती है। 'देह ही देश' साहित्य के अनेक विधाओं का प्रतिनिधित्व करने वाली एक महत्वपूर्ण रचना है।

झूठा- सच का संदर्भ लेते हुए ने 'देह ही देश' की रचना प्रक्रिया को रूपायित किया। प्रो.अवधेश प्रधान ने कहा कि गरिमा श्रीवास्तव की पुस्तक केवल स्त्री तक सीमित न होकर व्यापक स्तर पर मानवीय संवेदनाओं को उद्घाटित करती है।

'देह ही देश' की लेखिका प्रो. गरिमा श्रीवास्तव ने पुस्तक लेखन प्रक्रिया पर बात करते हुए अपने क्रोएशिया प्रवास की चर्चा की। 'देह ही देश' की लेखिका ने क्रोएशिया में 400 से अधिक बलात्कार राहत कैम्प की चर्चा करते हुए वहां की स्त्रियों की वर्तमान स्थिति की चर्चा की। छात्राओं से बात करते हुए बताया कि इसके प्रकाशन की कोई योजना नहीं थी, लेकिन मन में एक उद्देश्य समाज को वहां की स्थितियों से अवगत कराना था।

अध्यक्षीय उद्बोधन में हिंदी की प्रतिष्ठित कवि तथा महिला महाविद्यालय की प्राचार्या, प्रो.चंद्रकला त्रिपाठी ने कहा कि समाज को नई दृष्टि से देखने की किताब है 'देह ही देश'। गरिमा श्रीवास्तव की किताब को व्याख्यायित करते हुए प्रो. त्रिपाठी ने कहा कि यौन हिंसा जब किसी स्त्री पर होती है, तो वह उसको और निहत्था करती है। यह रचना मनुष्यता के बेदखली का इतिहास है।

संवाद-परिसंवाद के इस कार्यक्रम का संचालन हिंदी के आचार्य डॉ. नीरज खरे तथा धन्यवाद ज्ञापन महिला महाविद्यालय की आचार्या प्रो.सुमन जैन ने किया। इस अवसर पर डॉ गोरखनाथ,डॉ मोहम्मद आरिफ़, कामता प्रसाद और नगर के अनेक गणमान्य जन उपस्थित रहे। कार्यक्रम में छात्र-छात्राओं के साथ अनेक प्रोफेसर और शहर के अनेक गणमान्य लोगों की उपस्थिति महत्वपूर्ण रही।

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