एलएनजेपी के डॉक्टरों की अक्षम्य लापरवाही ने ले ली 3 साल के मासूम की जान
सख्त वेंटिलेटर की जरूरत वाले बच्चे को दिल्ली के नामी सरकारी अस्पताल एलएनजेपी में 7 दिन तक बंबू पंप के सहारे रहना पड़ा, बाद में काफी कोशिशों और कोर्ट के आदेश के बाद देरी से वेंटिलेटर मिला भी तो तब तक भयानक रूप से बढ़ चुके इंफेक्शन के कारण मासूम जिंदगी की लड़ाई हार गया…
जनज्वार। डॉक्टरी लापरवाहियों की तमाम खबरों से अखबार पटे रहते हैं। डॉक्टर या अस्पताल प्रबंधन सरकारी अस्पतालों का भी हो सकता है और प्राइवेट अस्पतालों का भी, जिनके लिए डॉक्टरी पेशा एक धंधे में तब्दील हो चुका है। भयानक डॉक्टरी लापरवाही का एक मामला राजधानी दिल्ली में भी सामने आया है, जहां सख्त वेंटिलेटर की जरूरत वाले बच्चे को 7 दिन तक बंबू पंप के सहारे रहना पड़ा और बाद में काफी कोशिशों और कोर्ट के आदेश के बाद देरी से वेंटिलेटर मिला भी तो तब तक भयानक रूप से बढ़ चुके इंफेक्शन के कारण मासूम जिंदगी की लड़ाई हार गया था। पहले ही दिन अस्पताल प्रशासन ने लापरवाही न बरत एक गरीब मासूम की जान की कीमत समझी होती तो शायद आज वह जिंदा होता।
7 दिन तक दिन—रात एक कर बंबू पंप से 3 साल के अपने मासूम बच्चे को सांस दिलवाता यह सीन किसी गांव—देहात का नहीं राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के एलएनजेपी जैसे ख्यात सरकारी अस्पताल का था। सख्त वेंटिलेटर की जरूरत वाले 3 साल के मासूम की सांसें चलती रहें, इसके लिए मां—बाप लगातार उसे बंबू पंप से सांसें दिलवा रहे थे।
जानकारी के मुताबिक खजूरी इलाके के अशफाक ने अपने 3 साल के बेटे फरहान को सबसे पहले चाचा नेहरू अस्पताल में दिखाया था। वहां डॉक्टरों ने बच्चे की एमआरआई कराई थी, क्योंकि बच्चा ठीक से अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो पा रहा था। डॉक्टरों ने तुरंत बच्चे को किसी बड़े अस्पताल में ले जाने को कहा। अशफाक बेटे को लेकर 24 दिसंबर को एम्स पहुंचा, तो एम्स ने जांच के लिए 24 जनवरी का समय दिया। बच्चे की बिगड़ती हालत और उस पर इतनी लंबी तारीख के चलते अशफाक बेटे को लेकर कलावती सरन अस्पताल पहुंचा। वहां न्यूरो के डॉक्टर ही उपलब्ध नहीं थे।
इसी के बाद वे लोग फरहान को लेकर एलएनजेपी ओपीडी में इलाज के लिए पहुंचे। बच्चे के परिजनों का कहना है कि एलएनजेपी के डॉक्टर ने उसे तीन तरह की दवा दी, जिसके बाद 24 जनवरी को अचानक फरहान की तबीयत खराब हो गई। तुरंत उसे एलएनजेपी की इमरजेंसी में ले जाया गया, वहां डॉक्टर ने बच्चे को एडमिट कर इलाज तो शुरू कर दिया, मगर सख्त जरूरत के बावजूद वेंटिलेटर नहीं दिया।
एक सामाजिक कार्यकर्ता रिजवान को जब अस्पताल की लापरवाही के इस मामले का पता चला तो उन्होंने वकील अशोक अग्रवाल तक पहुंचाया। अशोक अग्रवाल ने कोर्ट के सामने इस मसले को रखा और कोर्ट ने दिल्ली सरकार को इस बच्चे को तुंरत वेंटिलेटर मुहैया कराने का आदेश दिया था। हालांकि इसमें भी लेटलतीफी हुई थी। 1 फरवरी को कोर्ट में सुनवाई के बाद देर रात उसे वेंटिलेटर मिल पाया, मगर तब तक बहुत देर हो चुकी थी। बच्चे के शरीर में इंफेक्शन बुरी तरह फैल चुका था। कल 9 फरवरी के तड़के बच्चा जिंदगी की जंग हार गया, और डॉक्टरी लापरवाही की भेंट चढ़ गयी एक और जिंदगी।
दिल्ली की केजरीवाल सरकार मोहल्ला क्लिनिक समेत अस्पताल में आसानी से उपलब्ध इलाज के तमाम दावे करती है, मगर तमाम दावों के बावजूद सही इलाज के अभाव में एक मासूम की जिंदगी फिर हार गई। राजधानी दिल्ली के LNJP जैसे नामी सरकारी अस्पताल की इमरजेंसी में भर्ती तीन साल के फरहान को वेंटिलेटर की जरूरत थी, बावजूद उसके उसे 7 दिन तक वह बंबू पंप के सहारे जिंदा रहा। उसी दौरान उसका इंफेक्शन इतना ज्यादा बढ़ गया कि वह वेंटिलेटर मिलने के बाद ज्यादा दिन सर्वाइव नहीं कर पाया।
7 दिन तक जब बच्चा बंबू पंप के सहारे सांस ले रहा था, तब तक शिफ्ट में दिन-रात परिवार का कोई न कोई सदस्य पंप दबाता रहता था, ताकि मासूम की सांस चलती रहे। पापा, बड़े पापा, चाचा तो कभी दादा-दादी पंप से फरहान को ऑक्सीजन दे रहे थे। दूसरी तरफ उसकी हालत लगातार बिगड़ रही थी, मगर शायद डॉक्टरों के लिए शायद यह सामान्य बात हो। सामान्य इसलिए कि अगर उन्हें उसकी बिगड़ती तबीयत और अपने पेशे के प्रति जरा भी कर्तव्यबोध होता तो मासूम तड़प—तड़पकर न मरता।
पिता अशफाक कहते हैं, हम तो सिर्फ एक वेंटिलेटर मांग रहे थे। छह दिन से डॉक्टरों से हाथ जोड़कर बोल रहे थे कि मेरे बेटे की जान बचा लो, उसे वेंटिलेटर दे दो। मुझसे बाद में आने वाले मरीज को वेंटिलेटर दे दिया गया, लेकिन मेरे बच्चे को नहीं मिला।' पिता अशफाक बेटे की हालत पर इतने गमगीन थे कि आंसू झलक आए और रोते हुए कहा कि बस एक वेंटिलेटर दे दे, तसल्ली हो जाएगी।
फरहान की दादी कहती है, ‘मेरा पोता ठीक होने की बजाए और बीमार हो रहा था। डॉक्टर कुछ नहीं कर रहे थे। पहले दिन उसके मुंह में पाइप लगा था, वह दोनों हाथ उठाकर मेरे गोद में आने की जिद कर रहा था। बेड पर होने के बाद भी हरकत कर रहा था, बाद में तो आंख भी नहीं खुल रही थी। पता नहीं डॉक्टर उसका क्या इलाज कर रहे थे।’
एनबीटी को अशफाक ने बताया, सीनियर डॉक्टर तो मरीज को देखने आते ही नहीं, सारे जूनियर डॉक्टर इलाज करते हैं। एक हफ्ते से उनका बच्चा एडमिट था, उसके बाद सीनियर डॉक्टर आईं। उनका रवैया बेहद ही खराब था। वह बात सुन ही नहीं रही थीं।'