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श्रीलंका के खिलाड़ी जब प्रदूषण के कारण सांस लेने में दिक्कत महसूस कर रहे थे और कुछ खिलाड़ी तो उल्टियाँ भी कर रहे थे, तब हमारे खिलाड़ी, अधिकारी, मीडिया और सरकारी तंत्र उनका मजाक उड़ा रहा था
बॉक्सिंग रिंग में स्कार्फ और सर्जिकल मास्क लगाकर महिला बॉक्सर प्रैक्टिस कर रही हैं। यह इंतजाम भी उन्हें अपने पैसों से करना पड़ रहा है क्योंकि आयोजक ने ऐसी कोई सुविधा उपलब्ध नहीं कराई है...
वरिष्ठ लेखक महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण
कहा जाता है, अतिथि देवो भवः। इसका मतलब है अतिथि देवता है। अब आप किसी अतिथि को बुलाकर एक ऐसे शहर में रुकने को कहते हैं, जहाँ वायु प्रदूषण से सबका दम घुटता है – तब आप इसे क्या कहेंगे? देवताओं के दम घोटने की साजिश?
इस समय दिल्ली में महिलाओं की विश्व बॉक्सिंग चैंपियनशिप चल रही है और बॉक्सिंग में ताकतवर, प्रवीण, बहादुर और जाबांज महिलाओं का दम घुट रहा है। विश्व भर से आयी महिला बॉक्सर दिल्ली की जो यादें लेकर जायेंगी, उसका अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है।
हालात ऐसे हैं कि बॉक्सिंग रिंग में स्कार्फ और सर्जिकल मास्क लगाकर महिला बॉक्सर प्रैक्टिस कर रही हैं। यह इंतजाम भी उन्हें अपने पैसों से करना पड़ रहा है क्योंकि आयोजक ने ऐसी कोई सुविधा उपलब्ध नहीं कराई है।
फ्रांस के कोच अन्थोनी वेनिसेंट ने बॉक्सिंग फेडरेशन से अत्यधिक वायु प्रदूषण के कारण इस आयोजन को दिल्ली से बाहर कराने का अनुरोध किया था। वेनिसेंट ने यह भी बताया कि अधिकतर खिलाड़ियों के परिवार वाले इनके स्वास्थ्य की चिंता कर रहे हैं। बुल्गारिया की बॉक्सर स्तैमिनिरा पेत्रोवा के अनुसार उनका परिवार चिंतित है और हमें मालूम है कि इस तरह का प्रदूषण हमारे शरीर के लिए अच्छा नहीं है।
इन सबके बीच बॉक्सिंग फेडरेशन अपने अड़ियल रवैये पर कायम है। इसके प्रमुख जय कोवली ने बताया, हवा के प्रदूषण की जांच की जा रही है। उन्होंने यह भी कहा कि दिल्ली से यह आयोजन हटाया नहीं जा सकता और यहाँ सबसे अच्छी सुविधाएं मौजूद हैं।
कोवली पता नहीं कैसे किसी भी स्पोर्ट्स फेडरेशन में पहुँच गए हैं, यदि उन्हें यह भी नहीं मालूम कि खेलों के दौरान केवल सुविधाओं की ही नहीं बल्कि साँसों की जरूरत भी पड़ती है।
शायद आयोजकों को यह लगता हो कि बंद माहौल में खेलों के आयोजन कराने से बाहर के प्रदूषण का असर नहीं पड़ेगा। ध्यान रहे कि बॉक्सिंग इंडोर खेल है। अधिकतर देशों ने भी अपने खिलाड़ियों को भी कम से कम समय के लिए बाहर निकालने की सलाह दी है।
दूसरी तरफ वैज्ञानिक अध्ययन बताते हैं कि बंद वातावरण में भी प्रदूषण का स्तर खतरनाक हो सकता है। दिल्ली में ही दो वर्ष पहले चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया के सर्वोच्च न्यायालय स्थित कक्ष में जब दिल्ली के वायु प्रदूषण पर सुनवाई हो रही थी तब सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट ने उस कक्ष में वायु प्रदूषण को मापा था। उस समय प्रदूषण का स्तर मानकों की तुलना में चार-गुना अधिक पाया गया था।
इसी तरह दिल्ली के कुछ सबसे अच्छे स्कूल जो पूरे तरह से वातानुकूलित हैं, में प्रदूषण का स्तर 6-गुना पाया गया था। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम, जहाँ बॉक्सिंग चैम्पियनशिप चल रही है, के अन्दर भी प्रदूषण का स्तर कई गुना अधिक हो।
दिल्ली में जानलेवा प्रदूषण के बीच अंतरराष्ट्रीय खेलों के आयोजन की बेशर्मी का यह पहला उदाहरण नहीं है। पिछले वर्ष यहाँ अक्टूबर के महीने में फुटबाल के जूनियर वर्ल्ड कप के कुछ मैचों का आयोजन किया गया था। उस समय भी कुछ टीमों के खिलाड़ियों और अधिकारियों ने प्रदूषण से होने वाले परेशानियों का जिक्र किया था।
इसके बाद दिसम्बर में श्रीलंका की क्रिकेट टीम के साथ जो कुछ भी फिरोजशाह कोटला स्टेडियम में हुआ वह सभी को याद होगा। वायु प्रदूषण के प्रति हम कितने गंभीर हैं, यह घटना उसका उदाहरण दिखाती है। श्रीलंका के खिलाड़ी जब प्रदूषण के कारण जब सांस लेने में दिक्कत महसूस कर रहे थे और कुछ खिलाड़ी तो उल्टियाँ भी कर रहे थे, तब हमारे खिलाड़ी, अधिकारी, मीडिया और सरकारी तंत्र उनका मजाक उड़ा रहा था।
लेकिन, हमेशा ऐसी हालत रही हो यह भी नहीं है। जरा 2010 के वर्ष याद कीजिये। उस वर्ष कामनवेल्थ गेम्स दिल्ली-नई दिल्ली में आयोजित किये गए थे और शीला दीक्षित दिल्ली की मुख्यमंत्री थीं। यह भारत में एकलौता ऐसा खेल आयोजन था, जिसमें तत्कालीन सरकार ने पूरे आयोजन के दौरान प्रदूषण, ट्रैफिक जाम और हरियाली का पूरा ख्याल रखा था।
आंकड़े उठा कर देख लीजिये, उस दौरान वायु प्रदूषण का स्तर पिछले एक दशक में सबसे कम रहा होगा। हाँ, इतना जरूर है कि इसके लिए समस्या को समझने और फिर एक दृढ़ इच्छाशक्ति की जरूरत होती है। शीला दीक्षित ने इन सभी मामलों का नियंत्रण अपने हाथ में रखा था और निगरानी भी स्वयं करती थीं।
भारत को छोड़ दें तो इस समय दुनिया में कहीं भी बड़े खेल आयोजन किये जाते हैं तो सभी खेल सुविधाओं को विकसित करने के साथ ही और उतनी ही लगन और इच्छाशक्ति के साथ वायु प्रदूषण को कम करने के प्रयास भी किये जाते हैं
जापान में दो वर्ष बाद ओलम्पिक के आयोजन किये जाने हैं और वहाँ पिछले वर्ष से वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के प्रयास किये जा रहे हैं।