अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के लिए डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रत्याशियों में मची गला काट होड़
प्राइमरी चुनाव में बर्नीं को काफी कम सीटों से जीत मिलने के बाद अब डेमोक्रेट्स में इस बात को लेकर चर्चा शुरू हो गई है कि कोई सोशलिस्ट ट्रम्प को हरा पाएगा या नहीं...
राजनीतिक विश्लेषक पीयूष पंत की टिप्पणी
जनज्वार। 3 नवंबर को अमेरिका में राष्ट्रपति के चुनाव होने वाले हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति के होने वाले चुनाव इस मायने में रोमांचक रहने वाला है क्योंकि चुनावों में अमेरिका की दोनों पार्टियों रिपब्लिकन और डेमोक्रेट के दोनों दावेदार उम्र दराज़ व्यक्ति होंगे। रिपब्लिकन पार्टी के लगभग तय प्रत्याशी डोनाल्ड ट्रंप जहां 63 वर्ष के हैं, वहीं डेमोक्रेटिक पार्टी के दो मजबूत दावेदारों में बिडेन 77 वर्ष के तो बर्नी सैंडर्स 78 वर्ष के हैं।
रिपब्लिकन पार्टी के प्रत्याशी के रूप में डोनाल्ड ट्रंप का नाम लगभग तय है लेकिन डेमोक्रेटिक पार्टी का प्रत्याशी कौन होगा इसकी कवायद जोरों पर है। ताजा खबरों के अनुसार बिडेन और सैंडर्स के बीच लुक्का-छिप्पी का खेल जारी है। कभी बिडेन का नाम आगे आता है तो कभी सैंडर्स का। इस रस्साकसी में अभी प्राइमरीज़ के दौरान बर्नी सैंडर्स का पलड़ा भारी रहा है लेकिन बिडेन भी दक्षिण कैरोलिना से अपनी जीत को लेकर काफी आश्वस्त हैं। अभी 3 मार्च को प्राइमरीज़ के परिणाम के लिए महत्वपूर्ण समझे जाने वाले सुपर ट्यूज़डे की प्रतिस्पर्धा में जो बिडेन 14 में से 10 राज्यों में विजयी रहे।
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गौरतलब है कि अभी पिछले महीने ही बिडेन को डेमोक्रेटिक पार्टी की रेस से बाहर माना जा रहा था। इसके पीछे कारण ये था कि बिडेन आयोवा कॉकेसेस में चौथे स्थान पर थे और न्यू हैम्पशायर प्राइमरी में पांचवे स्थान पर। लेकिन सुपर ट्यूज़डे यानी 3 मार्च को 228 डेलीगेट्स वाले दूसरे सबसे बड़े राज्य टेक्सस से जीत दर्ज़ करने के साथ-साथ बिडेन को मैसेच्यूट्स, मिनेसोटा, ओक्लाहोमा, अर्कन्सास, अलाबामा,टेनेसी, नॉर्थ कैरोलिना और वर्जीनिया राज्यों में भी जीत हासिल हुयी। इन राज्यों में नॉर्थ कैरोलिना और वर्जीनिया की जीत अहम है क्योंकि 2020 के चुनाव में बाज़ी मारने के लिए ये दोनों राज्य महत्वपूर्ण हैं।
हालांकि कहा जा रहा है कि बर्नी सैंडर्स की बड़े राज्य कैलिफोर्निया और तीन अन्य राज्यों को जीतने की पूरी संभावना है लेकिन सच ये भी है कि उनके टेक्सस से भी जीतने की संभावना दिखाई गयी थी लेकिन अंत में बिडेन ही वहां से विजयी हुए। इस राज्य में लेटिन आबादी ज़्यादा है।
गौरतलब है कि सुपर ट्यूज़डे 1300 डेलिगेट्स भेजता है जबकि डेमोक्रेटिक पार्टी का नामांकन हासिल करने के लिए 1991 डेलिगेट्स की ज़रुरत होती है। अभी नामांकन की रेस में 433 डेलिगेट्स के साथ बिडेन आगे हैं। सैंडर्स के खाते में अभी सिर्फ़ 388 डेलिगेट्स ही हैं। अगली प्राइमरी 10 मार्च को मिशिगन, वाशिंगटन स्टेट, इहावो, मिसिसिप्पी, मिसौरी और नॉर्थ डकोटा राज्यों में होगी। इनमें से डेलिगेट्स जायेंगे।
प्राइमरी चुनाव में बर्नीं को काफी कम सीटों से जीत मिलने के बाद अब डेमोक्रेट्स में इस बात को लेकर चर्चा शुरू हो गई है कि कोई सोशलिस्ट ट्रम्प को हरा पाएगा या नहीं। इसका असर आम चुनाव में भी देखने को मिल सकता है। सैंडर्स अपने विचारों से युवा वोटरों को आकर्षित करते रहे हैं। उन्होंने कॉलेज ट्यूशन फ्री देने, सभी के लिए सरकारी स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध करवाने, सैन्य खर्चों में कटौती और देश में न्यूनतम मजदूरी भत्ता 15 डॉलर प्रति घंटा (लगभग 750 रु.) करने जैसी अपील की थी।
वैसे डेमोक्रेटिक रेस में शुरुआती दौर में दो दर्जन से ज़्यादा प्रत्याशी थे लेकिन एक के बाद एक बहुत सरे प्रत्याशियों ने खुद को डेमोक्रेटिक रेस से अलग कर लिया। लिहाजा रेस में मुख्य रूप से 4 प्रत्याशी ही बचे रहे। ये थे तीन बार सांसद रहे बर्नी सैंडर्स, पूर्व उप-राष्ट्रपति जो बिडेन, पूर्व मेयर माइकल ब्लूमबर्ग और एलिज़ाबेथ वारेन। सुपर ट्यूज़डे के नतीजों से हताश हो कर न्यूयॉर्क सिटी के पूर्व मेयर अरबपति ब्लूमबर्ग ने खुद को रेस से बाहर घोषित कर दिया। इस घोषणा के तुरंत बाद उन्होंने जो बिडेन को अपना समर्थन दे डाला। उन्होंने कहा कि वे इस दौड़ में ट्रम्प को हराने के लिए आए थे और इसी वजह से इस दौड़ से बाहर भी जा रहे हैं। वे अब 6 राज्यों में ट्रम्प विरोधी चुनावी अभियान में जम कर पैसा खर्च कर रहे हैं।
ब्लूमबर्ग के रेस से हट जाने के बाद अब डेमोक्रेटिक रेस में बिडेन और सैंडर्स के अलावा समाजवादी सोच रखने वाली सेनेटर एलिज़बेथ वॉरेन बच गयीं। लेकिन सुपर ट्यूज़डे के परिणामों में करारी हार के बाद 5 मार्च को वॉरेन भी मैदान छोड़ कर चली गयीं। उदारवादी वाम की पसंदीदा मैसेच्यूट्स की सेनेटर वॉरेन एक समय डेमोक्रेटिक रेस में सबसे आगे मानी जा रहीं थीं। अपने चुनावी अभियान में भी उन्होंने बढ़त हासिल की हुयी थी लेकिन वो अपना राज्य भी नहीं जीत पाईं।
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डेमोक्रेटिक रेस में उतरने के बाद से बर्नी सैंडर्स ने सार्वभौमिक स्वास्थ्य सुविधाओं और मुफ्त विश्वविद्यालय शिक्षा जैसे ठंढे बस्ते में पड़े मुद्दों को मुख्यधारा में चर्चा का विषय बना दिया है। वे युवाओं में ज़्यादा लोकप्रिय हैं, हालांकि उनकी दिक़्क़त ये है कि युवा ज़्यादा संख्या में वोट देने आ नहीं रहे हैं। वहीं जो बिडेन मध्यम मार्गी हैं। वो अमेरिकी मध्य वर्ग में काफी लोकप्रिय हैं। अश्वेतों की भी वे पसंद हैं, ख़ासकर बूढ़े अश्वेतों की जो डेमोक्रेटिक प्राइमरी वोटरों का 24 फीसदी हैं।
डेमोक्रेटिक पार्टी में कुल 3979 डेलीगेट्स हैं और पार्टी की ओर से राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी पाने के लिए 1991 डेलीगेट्स का समर्थन पाना जरूरी है। सुपर ट्यूज़डे को हुए प्राइमरी चुनाव में 1357 डेलीगेट्स ने हिस्सा लिया। अगले दो मंगलवारों को 10 राज्यों में और प्राइमरी चुनाव कराए जाएंगे। उसके बाद ये लगभग साफ़ हो जायेगा कि सैंडर्स और बिडेन में से कौन डेमोक्रेटिक पार्टी का प्रत्याशी हो सकता है। इस बीच 8 मार्च को भारतीय मूल की सीनेटर कमला हैरिस ने जो बिडेन को सर्मथन देने की घोषणा कर दी। वहीं अमेरिकी नागरिक अधिकार आंदोलन के नेता जैसी जैक्सन ने सैंडर्स को अपना समर्थन दे दिया।
गौरतलब है कि कमला हैरिस भी डेमोट्रिक पार्टी की रेस में एक प्रत्याशी थीं और उन्होंने दिसंबर महीने में खुद को रेस से बाहर कर लिया था। वो बिडेन की काफी आलोचना भी करती रहीं थी। उनकी अमेरिकी अफ्रीकी लोगों के बीच अच्छी पहुंच मानी जाती है। जिसका फायदा अब बिडेन को हो सकता है।