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दिल्ली चुनाव में था हार का डर, इसलिए भाजपा ने लिया अकालियों का समर्थन ?
दिल्ली चुनाव ना लड़ने के अकाली दल के फ़ैसले ने भारतीय जनता पार्टी की चिंता बढ़ा दी थी। एक अनुमान के अनुसार दिल्ली में 8 लाख सिख मतदाता हैं जो दिल्ली की सभी विधान सभा क्षेत्रों में फैले हैं लेकिन हरी नगर, राजौरी गार्डन, कालकाजी और शाहदरा ऐसे विधानसभा क्षेत्र हैं जहां सिख समुदाय की अच्छी-खासी संख्या रहती है..
वरिष्ठ पत्रकार पीयूष पंत का विश्लेषण
लगता है भारतीय जनता पार्टी को दिल्ली के चुनाव में अपनी हार का अहसास होने लगा है तभी तो पंजाब में अपने गठजोड़ के अहम साथी शिरोमणी अकाली दल के दिल्ली में भाजपा से गठजोड़ ना करने और बाद में चुनाव नहीं लड़ने के फैसले के बावजूद भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा को शिरोमणी अकाली दल अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल से मिलकर उन्हें मनाना पड़ा और भाजपा को समर्थन देने का व्यक्तव्य जारी करवाना पड़ा।
29 जनवरी को भाजपा अध्यक्ष नड्डा की उपस्थिति में एक साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सुखबीर सिंह बादल ने दिल्ली चुनाव में भाजपा का समर्थन करने की घोषणा कर ही दी। उन्होंने पत्रकारों से कहा - 'अकाली दल-भाजपा का गठजोड़ महज एक राजनीतिक गठजोड़ नहीं है। ये देश और पंजाब के हित, शांति और सुखद भविष्य की भावनाओं से संचालित होता है। हमारे बीच कुछ गलतफहमियां पैदा हो गयीं थीं जिन्हें दूर कर लिया गया है।'
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बादल ने आगे कहा कि अकाली दल ने कभी भी भाजपा से गठजोड़ नहीं तोड़ा। उन्होंने कहा, 'बस हमने चुनाव अलग लड़ने का निर्णय लिया। हम शुरू से ही सीएए का समर्थन करते आये हैं।' इसी प्रेस कॉन्फ्रेंस में मीडिया को संबोधित करते हुए भाजपा अध्यक्ष नड्डा ने कहा कि गठजोड़ का साथी शिरोमणी अकाली दल, जिसने भाजपा के साथ मनमुटाव के चलते दिल्ली चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा की थी, अब दिल्ली चुनाव में हमारी पार्टी को समर्थन देगा।
दरअसल दिल्ली चुनाव ना लड़ने के अकाली दल के फ़ैसले ने भारतीय जनता पार्टी की चिंता बढ़ा दी थी। एक अनुमान के अनुसार दिल्ली में 8 लाख सिख मतदाता हैं जो दिल्ली की सभी विधान सभा क्षेत्रों में फैले हैं लेकिन हरी नगर, राजौरी गार्डन, कालकाजी और शाहदरा ऐसे विधानसभा क्षेत्र हैं जहां सिख समुदाय की अच्छी-खासी संख्या रहती है। यह संख्या 4.000 से लेकर 40,000 तक मानी जाती है। राजौरी गार्डन और तिलक नगर में तो इनकी आबादी 55,000 तक आंकी गयी है।
राजौरी गार्डन से विधायक रहे अकाली दल के मनजिंदर सिंह सिरसा की मानें तो राजौरी गार्डन,तिलक नगर, मोती नगर, हरी नगर, विकास पुरी, राजिंदर नगर, कालकाजी, जंगपुरा, पंजाबी बाग़, गुरु तेग बहादुर नगर और गीता कॉलोनी जैसी 10 विधान सभा सीटों पर सिख आबादी प्रभाव डालती है। सिरसा का कहना है कि चूँकि जीत-हार का फैसला कम अंतर से होता है इसलिए ज़्यादातर चुनाव क्षेत्रों में कम संख्या में उपस्थिति के बावजूद सिख अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाते हैं और सबसे बड़ी बात तो ये है कि समुदाय के लोग एकमुश्त वोट डालते हैं।
इस चुनाव के पहले तक शिरोमणी अकाली दल दिल्ली का चुनाव भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर ही लड़ा करता था जिसका फायदा दोनों ही दलों को होता था। लेकिन इस बार सीट बंटवारे को लेकर समझौता ना हो पाने के कारण दोनों दलों के बीच मिलकर चुनाव लड़ने की बात नहीं बनीं। कयास लगाए जाने लगे कि क्या दोनों दल अलग-अलग चुनाव लड़ेंगे? ऐसे में क्या भारतीय जनता पार्टी को सिक्ख वोटों का नुक्सान झेलना पडेगा?
दरअसल अकाली दल दिल्ली में चुनाव लड़ना तो चाह रहा था लेकिन भाजपा उसे उतनी सीटें दे नहीं रही थी जितनी वो चाह रहा था। बताया जाता है कि शिरोमणि अकाली दल अपनी पार्टी के चिन्ह के साथ 6 सीटों पर चुनाव लड़ना चाह रही थी लेकिन भाजपा अकालियों को राजौरी गार्डन, हरि नगर और कालकाजी की तीन सीटें ही देने को तैयार थी। भाजपा का इस बात पर भी जोर था कि अकाली कमल के चिन्ह के साथ ही चुनाव लड़ें लेकिन अकाली दल को ये मंज़ूर नहीं था।
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इसके बाद ये कयास लगाए जा रहे थे कि इस बार अकाली दल अकेले ही चुनाव लड़ेगा और भाजपा को ख़ासा नुकसान पहुंचायेगा। लेकिन इन कयासों को धता बता शिरोमणि अकाली दल ने दिल्ली में चुनाव ना लड़ने की घोषणा कर दी और इसके पीछे कारण नागरिकता संशोधन क़ानून से असहमति होना बताया। दिल्ली के अकाली नेता मजिंदर सिंह सिरसा ने 20 जनवरी को पत्रकारों को बताया कि भारतीय जनता पार्टी चाहती थी कि अकाली सीएए में सभी धर्मों को शामिल करने की अपनी मांग पर पुनर्विचार करें लेकिन पार्टी अध्यक्ष सुखबीर बादल ने अपने निर्णय से पलटने के बजाय गठजोड़ तोड़ देना बेहतर समझा।