मोदी सरकार की नीतियों के चलते विदेशी निवेशकों का भारतीय अर्थव्यवस्था उठा भरोसा, बीते साल अक्टूबर माह के केवल दस दिन में ही विदेशी निवेशकों ने निकाल लिए 6214.9 करोड़ रुपये...
पीयूष पंत की टिप्पणी
नागरिक संशोधन क़ानून से पैदा हुयी गहमा-गहमी के बीच इस बात को भुला दिया जा रहा है कि देश की अर्थव्यवस्था संकट के दौर की और बढ़ रही है। इस संकट के संकेत इस बात से भी मिल जाते हैं कि जहां घरेलू निवेश बहुत धीमी गति से हो रहा है वहीं विदेशी पूंजी निवेशक भारतीय बाजार में निवेश करने की बजाय अपनी पूंजी निकालते जा रहे हैं। अकेले 2019 के जुलाई-अगस्त के दो महीनों में ही विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने भारत की शेयर बाजार से 30 हजार करोड़ से भी ज्यादा रुपये वापस निकाल लिए।
ताजा डिपॉजिटरी आंकड़ों की मानें तो पिछले साल 1 से 11 अक्टूबर के बीच विदेशी निवेशकों ने भारतीय बाजार से कुल 6,217.9 करोड़ रुपये वापस उठा लिए। इसमें 4,955.2 करोड़ रूपए शेयरों से थे और 1,261.9 करोड़ रुपये ऋण खण्ड (डेट सेगमेंट) से। हालांकि सितम्बर महीने में ही विदेशी निवेशकों ने घरेलू पूंजी बाजार में 6,557.8 करोड़ रुपया लगाया था।
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ऐसा तब हुआ जबकि पिछले साल ही सरकार ने प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश के लिए कई कदम उठाये थे। अनेक क्षेत्रों में निवेश सम्बन्धी नियमों में ढिलाई दी गई थी। इनमें गैर-बैंकिंग वित्तीय एजेंसियां, एकल खुदरा क्षेत्र और निर्माण शामिल थे। यही नहीं मोदी सरकार की पहली पारी के दौरान पूर्व वित्तमंत्री अरुण जेटली ने तो भारतीय अर्थव्यवस्था को और अधिक खोलने की घोषणा तीन-तीन बार की थी। ठेका, वस्तु-निर्माण और एकल ब्रांड खुदरा क्षेत्र में तो स्वचालित मार्ग के माध्यम से 100 फीसदी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति दे दी गयी। अभी हाल में कोयला क्षेत्र को भी विदेशी पूंजी के लिए खोल दिया गया। लेकिन विदेशी पूंजी है कि पलायन करने पर आमादा है।
दरअसल विदेशी पूंजी का भारतीय अर्थव्यवस्था पर विश्वास जम ही नहीं पा रहा है। इस उम्मीद के चलते कि नरेंद्र मोदी भारत की आर्थिक क्षमता को बुलन्दियां प्रदान करेंगे, अंतर्राष्ट्रीय पूंजी प्रबंधकों ने पिछले छह सालों के दौरान दिल खोलकर भारत की शेयर बाजार में विदेशी पूंजी निवेश कराया। परिणामस्वरूप यह राशि 45 बिलियन डॉलर पहुंच गयी। लेकिन मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों से पैदा हुए मोहभंग के चलते यही प्रबंधक अब तेजी से शेयर बाजार से निवेश वापस ले जा रहे हैं।
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उनका कहना है कि अत्यधिक अमीरों पर अतिरिक्त अधिभार थोपने और दीर्घावधि पूंजीगत लाभ कर लगाने के मोदी सरकार के निर्णयों ने विदेशी पूंजी निवेशकों का भारतीय अर्थव्यवस्था पर भरोसा डगमगा दिया है और वे भारतीय बाजार से निकल भागने को तत्पर दिखाई दे रहे हैं।
इस सबका परिणाम ये हुआ है कि जिस सरकार को अपनी गलतियों को स्वीकार करने की आदत नहीं है उसे अपने निर्णयों को वापिस लेते हुए न केवल विदेशी पोर्टफोलियो निवेश पर अतिरिक्त अधिभार को ख़त्म करना पड़ा बल्कि दीर्घावधि पूंजीगत लाभ कर की दर में भी कुछ कटौती करनी पड़ी। लेकिन सरकारी मान-मनुव्वल के बावजूद आवारा पूंजी का पलायन जारी है। बस यही कहा जा सकता है कि विदेशी निवेशक हैं कि मानते नहीं।