जन अधिकारों के लिए सक्रिय 5 कार्यकर्ताओं को माओवादी बता किया गिरफ्तार
एस.आर. दारापुरी
पूर्व पुलिस महानिरीक्षक, उत्तर प्रदेश
कोरेगांव में हुई हिंसा के सम्बन्ध में कल 5 दलित कार्यकर्ताओं की गिफ्तारी दलित दमन का प्रतीक हैं। गिरफ्तार किए गए कार्यकर्ताओं पर आतंकवाद निरोधक कानून एवं माओवादी होने के संगीन आरोप लगाये गये हैं, जबकि सच्चाई यह है कि ये सभी दलित अधिकारों के लिए लड़ने वाले सक्रिय कार्यकर्त्ता हैं. गिरफ्तार किये गये कार्यकर्ताओं में दिल्ली से रोना विल्सन, मुम्बई से सुधीर धावले, वकील सुरेन्द्र गाडलिंग, महेश राउत और पुणे से प्रो.शोमा सेन हैं.
केरल निवासी रोना विल्सन ‘कमिटी फॉर रिलीज़ आफ पोलिटिकल प्रिजनर्स’ से जुड़े हैं. सुधीर धावले मराठी मैगज़ीन ‘विद्रोही’ के संपादक हैं. राउत पर गढ़चिरौली के नक्सलियों से रिश्तों का आरोप लगाया गया है. शोमा सेन नागपुर विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर हैं. इस सम्बन्ध में कबीर मंच पर भी कार्रवाई किये जाने का डर है.
पिछले साल जब कोरेगांव में दलित शौर्य की 200वीं जयंती मनायी जा रही थी तो उन पर हिन्दुत्ववादियों द्वारा हमले किये गये थे, जिसमें व्यापक हिंसा हुई थी. इसमें दलितों ने आत्मरक्षा में प्रतिरोध किया था. इसी हिंसा के सम्बन्ध में जिग्नेश मेवानी तथा जेएनयू के छात्र नेता उमर खालिद को भी आरोपी बनाया गया है.
महाराष्ट्र की भाजपा सरकार की यह कार्रवाही दलित समुदाय को सबक सिखाने की कोशिश है और राजनीतिक उत्पीडन का प्रतीक है, जिसका खामियाजा उसे 2019 के चुनाव में भुगतना पड़ेगा. एक तरफ मोदी आंबेडकर प्रेम और दलित हितैषी होने का नाटक करते हैं, दूसरी तरफ भाजपा शासित राज्यों में दलितों का दमन किया जा रहा है.
उल्लेखनीय है कि एनसीआरबी द्वारा “क्राईम इन इंडिया-2016” रिपोर्ट के अनुसार भाजपा शासित राज्य दलित उत्पीड़न में सबसे आगे हैं. 2 अप्रैल के भारत बंद के बाद दलित उत्पीडन और तेज़ हो गया है.
अतः जन मंच उपरोक्त दलित कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारियों की निंदा करता है तथा उन्हें तुरंत रिहा करने एवं उन पर लगाये गये झूठे मुकदमे वापस लिए जाने की मांग करता है. यदि ऐसा नहीं किया जाता है तो इसके विरोध में व्यापक जनांदोलन किया जायेगा.