Begin typing your search above and press return to search.
समाज

मां की अर्थी को कंधे के वास्ते जब भाई-बहन को नसीब नहीं हुए श्मशान में तीन इंसान...

Manish Kumar
30 April 2020 1:35 AM GMT
मां की अर्थी को कंधे के वास्ते जब भाई-बहन को नसीब नहीं हुए श्मशान में तीन इंसान...
x

65 साल की वृद्ध महिला ईश्वरी देवी गंभीर बीमारी से परेशान थीं। तीन चार दिन पहले उन्हें बेटे हरीश और दोनो बेटियों ने जीटीबी अस्पताल में दाखिल कराया था...

नई दिल्ली: कोरोना के कोहराम ने क्या जवान और क्या बूढ़ा। हर किसी के सुनने और देखने की ताकत छीन सी ली है। इंसान और वक्त के तकाजे के सामने इंसानियत, दोनों ही दम तोड़ते दिखाई दे रहे हैं। ऐसा ही कुछ देखने को मिला 65 साल की ईश्वरी देवी के वारिसान को। जब उनके जिगर के टुकड़े हरीश को मां की अर्थी को कंधा देने के वास्ते तीन और इंसान तक नसीब नहीं हो पा रहे थे।

न्यूज एजेंसी आईएएनएस के मुताबिक यह घटना हिंदुस्तान के किसी दूर दराज बसे गांव की नहीं देश की राजधानी दिल्ली की है। जहां से हुकूमत और देश चल रहा है।

घटनाक्रम के मुताबिक, 65 साल की वृद्ध महिला ईश्वरी देवी गंभीर बीमारी से परेशान थीं। तीन चार दिन पहले उन्हें बेटे हरीश और दोनो बेटियों ने किसी तरह जीटीबी (गुरु तेगबहादुर अस्पताल) में दाखिल करा दिया। जीटीबी में कराये गये टेस्ट के बाद ईश्वरी देवी की रिपोर्ट निगेटिव आई। तो हरीश और उनकी बहनों ने चैन की सांस ली। यह सोचकर कि चलो अब लोग उनसे छूआछूत का सा व्यवहार तो नहीं करेंगे।

यह भी पढ़ें- उज्जैन में फुटपाथ पर सो रहे 12 मजदूरों को ट्रक ने रौंदा 3 की मौत, दिग्विजय सिंह ने शिवराज को ठहराया जिम्मेदार

यह तसल्ली मगर हरीश और उनकी बहनों की ज्यादा वक्त बरकरार नहीं रह सकी। तमाम कोशिशों के बाद भी ईश्वरी देवी को डॉक्टर नहीं बचा सके। यहां से कोरोना के कहर से ईश्वरी के बेटे और बेटियों का आमना सामना हुआ। लॉकडाउन के कारण पड़ोसी साथ नहीं दे सके। किसी तरह से एक वाहन का इंतजाम करके ईश्वरी देवी का पुत्र, रोती-बिलखती बहन के साथ मां का शव लेकर निगमबोध घाट पहुंच गया। निगमबोध घाट पहुंचा तो फिर वही समस्या, कोरोना के डर के कारण वहां ईश्वरी देवी की अर्थी को कंधा देकर शमशान घाट के प्लेटफार्म तक ले जाने को तीन और इंसान चाहिए थे।

काफी इंतजार के बाद अचानक ही निगम बोध घाट पर मौजूद नर नारायण सेवाकर्मियों की नजर बेहाल बदहवास से भाई बहन पर पड़ी तो उन्होंने उनसे पूरी कहानी सुनी। भाई बहन की मुंहजुबानी सुनकर नर सेवा नारायण सेवा कर्मियों का कलेजा भी मुंह को आ गया। उन लोगों ने ईश्वरी देवी की अर्थी तैयार कराने में तो मदद की ही। साथ ही साथ कंधा देकर उनकी अंतिम यात्रा भी उन तीनों ने पूरी कराई। और तो और प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, नर सेवा नारायण सेवकों ने ही अंतिम संस्कार के वक्त कर्मकांड कराने वाले पुरोहित की दक्षिणा का भी इंतजाम किया। यह सब देख और भोग कर हरीश और उनकी बहन की आंखें डबडबा आईं।

यह भी पढ़ें- कोरोना महामारी ने मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे, चर्च सबको किया फालतू साबित, विज्ञान ही आया काम

एक तो मां के बिछड़ने का गम। ऊपर से बदतर हालातों में मां का अंतिम संस्कार। इन सबके बीच अचानक ही किसी दैवीय शक्ति की मानिंद, निगमबोध घाट पर उस मुसीबत में साथ देने पहुंचे श्मशान घाट के एक कर्मचारी का पहुंचना। नर सेवा नारायण सेवा के दो भक्तों द्वारा मां की अर्थी और अंतिम संस्कार का इंतजाम कराना। भाई बहन के सीने को चीर गया। दोनो बेबस भाई बहन मां की अर्थी को सजवाकर उसे कंधा देने वाले अजनबियों का शुक्रिया अदा तो करना चाह रहे थे, मगर उनके अल्फाज फफकते होंठों में ही फंसकर रह जा रहे थे।

Next Story

विविध