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संस्कृति

हरेले के आशीर्वचनों से डर लगता अब ईजा

Prema Negi
16 July 2018 7:58 AM GMT
हरेले के आशीर्वचनों से डर लगता अब ईजा
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सब इतना डरावना और भयावह है कि हरेले के सारे आशीर्वचनों से डर लगने लगा। कि ये सारे आशीर्वचन आज फिर नीति—नियंताओं पर ही फलेंगे...

उत्तराखण्ड को सांस्कृतिक समृद्धता प्रदान करते हिमालय के त्यौहार हरेले पर संजय रावत की टिप्पणी

50 की उम्र होने को आई मेरी, कितने उत्साह से सभी त्योहार मनाये हमने, जिनमें से एक त्योहार हरेला भी रहा। हर साल ऐसे आशीर्वचन सुन कर गदगद हो जाते थे हम। कितनी मंगल कामनाएं करती माएं, बुआ और बहने कि ऐसे हो जाएं जैसे आशीर्वचन देती रहीं वो हमेशा ही।

एक पहाड़ी होने के नाते मुझे अपनी संस्कृति पर अभिमान है, पर इस हरेले में बैचैनी बहुत हो रही, सब अजीब सा लग रहा है। ऐसा लगा जैसे हरेले के आशीर्वचन शीशे की तरह चुभ रहे मुझे।

'जी रया, जागि रया, अगास बराबर उच्च, धरती बराबर चौड है जया, स्यावक जैसि बुद्धि, स्यों जस तराण है जाओ, फटंग उपनकि जसि, ज्वकक ज पराण है जाओ, सात च्याल, सौ नाति है जाओ, दूब जास फलिया, झाडि जाहंण लाठि टेकबैर जया, पूर दुनि म तमर नाम है जाओ।'

(बचे रहना खूब बड़ा हो जाना, आकाश जैसा ऊँचा हो जाना और धरती जैसा चौड़ा हो जाना। सियार की तरह तेरी बुद्धि हो जाय। और सूरज की तरह तू चमके। सिल बट्टे में पिसा हुआ भात अर्थात चावल खाना। लाठी टेक के जाना यानी तेरी उम्र लंबी हो। तो दुब यानी घास की तरह फैल जाना।)

ये वो आशीर्वचन हैं जो पिछले 49 सालों से ढेरों संसय के बाद भी उम्मीद जगाते थे कि ऐसा ही होगा मेरे राज्य के हर नॉनिहल के साथ। लेकिन अब लगता है हरेले के एक-एक आशीर्वचन नोनिहालों के बदले राज्य के नीति—नियंताओं को लग गए।

आशीर्वचनों के मुताबिक वो ही सुरक्षित और उल्लसित हैं। आकाश जैसे ऊंचे और धरती से चौड़े हो रहे हैं। सियार सी बुद्धि पाकर सूरज से चमक रहे हैं। उपभोग के सारी चीजों पर उनका मालिकाना हक है, स्वस्थ और दीर्घायु हो रहे है। और सबसे बड़ी बात घास की तरह फैल रहे हैं।

ये आशीर्वचन, ये मंगलकामनाएं राज्य के नौनिहालों को लग जाती तो उत्तराखंड की सूरत ही कुछ और होती। 60 प्रतिशत युवा सूखे नशे की गिरफ्त में न होते। 50 प्रतिशत पहाड़ रोजगार के मारे अकेला न पड़ता। 20 लाख से ज्यादा मानसिक बीमार ना होते। आय दर हर बरस पहाड़ में लुढ़कती नहीं। बिनब्याही माओं का ग्राफ पहाड़ न चढ़ता। महिलाएं शराब की कारोबारी न होती। पहाड़ों से स्कूल औए अस्पताल फरार न होते, और भी बहुत कुछ।

ये सब इतना डरावना और भयावह है कि हरेले के सारे आशीर्वचनों से डर लगने लगा। कि ये सारे आशीर्वचन आज फिर नीति—नियंताओं पर ही फलेंगे। इसलिए ईजा से बोल दिया कि - 'हरेले के आशीर्वचनों से अब डर लगता ईजा...'

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