जनज्वार। एक तरफ हमारे नेतागण चुनावी घोषणापत्रों में किसानों की कर्जमाफी और उनके लिए नई—नई योजनाएं लाने के तमाम दावे करते हैं, वहीं दूसरी तरफ फतेहाबाद के टोहाना स्थित हिम्मतपुरा गांव के किसान भी हैं जिनकी फसल को हर साल बरसात का पानी लील जाता है। मगर शासन—प्रशासन को तो जैसे उनकी समस्याओं से कोई सरोकार ही नहीं है।
मुआवजा तो दूर, कोई अधिकारी यह जानने तक गांव में नहीं पहुंचता कि आखिर किसानों को इससे कितना नुकसान हुआ है। हां, किसान जरूर प्रशासनिक अधिकारियों के चक्कर काटता रहता है।
शासन—प्रशासन की अनदेखी से परेशान अपनी इस पीड़ा को पीड़ित किसान हरमेश दिलखुश ने गाकर व्यक्त किया है। किसानों की धान व मिर्च की फसल की तबाही को गीत के रूप में बयान किया है उन्होंने।
किसान हरमेश का गाना सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, तो प्रशासन भी जैसे नींद से जागा। कल 4 जुलाई को कृषि विभाग के अधिकारियों ने गांव का दौरा किया और स्वीकारा कि किसानों का बरसात से भारी नुकसान हुआ है। मगर अभी भी उनकी समस्या के समाधान के लिए कोई निर्णय नहीं लिया गया है, किसान खुद ही अपने खेतों का पानी निकालने का प्रयत्न कर रहे हैं।
गौरतलब है कि हिम्मतपुरा गांव के किसानों की जमीन निचाई में है, हर साल बारिश में इनकी धान की फसल पानी की तबाही में डूब जाती है, मगर आज तक इस तरफ न तो हमारे लफ्फाज नेताओं का ध्यान गया, न ही संबंधित विभाग के अधिकारियों का।
फ़सल तबाह होने पर प्रशासन की ओर से कोई भी अधिकारी किसानों के नुकसान का जायज़ा लेने तक नहीं पहुंचता। तपती धूप, बारिश तूफान में डटा रहकर फसलों को पकाने वाला खेत में तपस्यारत किसान, भूलभुलैया बनीं प्रशासनिक इमारतों में, फाईलों के जाल में खुद को गुम होता महसूस कर रहा है। हालांकि मीडिया इस मामले को उठा चुका है, बावजूद उसके हालात जस के तस बने हुए हैं।
किसानों के दर्द को बयां करता हरमेश ने यह गाना सोशल मीडिया पर इस उम्मीद के साथ पोस्ट किया था कि शायद यह गीत, यह दर्दभरा संदेश देश—प्रदेश के हुम्क्मरानों की कानों तक पहुंचे। शायद सोशल मीडिया पर इस समस्या के उठने के बाद उनके गांव के किसानों का दुख दूर हो और कृषि विभाग के अधिकारियों का हिम्मतपुरा दौरे से यह बात सच होती प्रतीत हो भी रही है।