जनज्वार। हिंदी की ख्यात लेखिका अर्चना वर्मा का आज सुबह निधन हो गया है। सोशल मीडिया पर अचानक हुए उनके निधन की खबर कई लेखकों-पत्रकारों ने साझा करते हुए शोक व्यक्त किया है।
6 अप्रैल 1946 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में जन्मीं अर्चना वर्मा ने कविता, कहानी, आलोचना सभी विधाओं में लेखन किया। उनकी ख्यात कृतियों में कुछ दूर तक, लौटा है, स्थगित, राजपाट तथा अन्य कहानियाँ, निराला के सृजन सीमांत : विहग और मीन आदि शामिल हैं। ख्यात हिंदी साहित्यिक पत्रिका हंस में वह 1986 से लेकर 2008 तक संपादन सहयोग देती रहीं, उसके बाद वे ‘कथादेश’ के संपादन से जुड़ गई थीं।
वरिष्ठ पत्रकार और लेखक प्रियदर्शन उनके निधन की खबर शेयर करते हुए लिखते हैं 'बहुत हृदयविदारक खबर। अर्चना वर्मा नहीं रहीं। जब से वे गाजियाबाद में थी, तब से हमारे लगभग पारिवारिक रिश्ते बन गए थे। वे बिल्कुल अभिभावक जैसी हो गई थीं। हालांकि हाल के दिनों में वैचारिक असहमतियां बार-बार होती थीं, लेकिन उसकी ज़रा भी छाया या खरोंच हमारे संबंधों पर नहीं थी। बीते इतवार भी हम कई घंटे साथ रहे थे। वे बहुत सूक्ष्म ढंग से बात और विचार करती थीं। हिंदी का संसार कुछ निष्प्रभ हो गया।'
लेखक जितेंद्र श्रीवास्तव लिखते हैं, 'वे जब भी मिलीं, स्नेह से भरी मिलीं। उनके जाने से हिंदी समाज थोड़ा और कमजोर हो गया। वे असहमति का सम्मान करती थीं। उन्हें अभी और जीना था।'
वरिष्ठ आलोचक प्रेमकुमार मणि लिखते हैं, 'बहुत दुखद। अर्चना जी से 1980 के दशक में परिचय हुआ। हंस के राजेंद्र -युग में वह सक्रिय रहीं। उनसे लड़ना-झगड़ना भी अच्छा लगता था। इधर कुछ वर्षों से हम लोग अधिक संपर्क में नहीं रहे, लेकिन उनकी सक्रियता की जानकारी मिलती रहती थी। अब वह स्मृतियों में ही रहेंगी। भीगी श्रद्धांजलि।'
सोशल मीडिया पर कई अन्य पत्रकारों, साहित्यकारों, लेखकों ने भी उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की है। अर्चना वर्मा खुद भी सोशल मीडिया पर बहुत एक्टिव रहती थीं।