हिंदू सेना ने मनाई रानी विक्टोरिया की पुण्यतिथि, कहा मुक्तिदाता थे अंग्रेज
सरकार की नज़र में हिंदू सेना द्वारा महारानी विक्टोरिया की पुण्यतिथि मनाना राष्ट्रद्रोह नहीं बल्कि आर्य नस्ल के वैश्विक संबंधों की पुनर्खोज है...
सुशील मानव की रिपोर्ट
बंकिम चंद्र चटर्जी का उपन्यास आनंदमठ पढ़ा है क्या? उपन्यास न सही इसी नाम पर बनी फिल्म देखी है क्या आपने? आपके सुविधा के लिए मैं फिर भी बता देता हूँ कि आनंदमठ उपन्यास और फिल्म दोनों के आखिर में नायक मुसलमानों के पराजय का जश्न मनाते हुए कहता है कि नियति ने उनका (अंग्रेज़ों का) राज्य तय किया है। अचानक से आनंदमठ के नायक की चर्चा इसलिए कि परसों एक ‘हिंदू सेना’ नामक एक कट्टर समुदाय के लोगों ने मिलकर महारानी विक्टोरिया की 118वीं पुण्यतिथि मनायी?
जबकि पिछले साल 1 जनवरी को भीमा कोरेगाँव में विजय-स्तम्भ के पास महार समुदाय द्वारा पेशवा बाजीराव पर महार सैनिकों वाली अंग्रेज टुकड़ी के विजय की 200वीं सालगिरह को शौर्यदिवस के रूप में मनाते समय न सिर्फ उन पर हिंदुत्ववादी कट्टरपंथियों द्वारा हथियारों से हिंसक हमला किया गया, बल्कि महाराष्ट्र पुलिस द्वारा इन सब पर देशविरोधी धारा के तहत केस दर्ज करके जेल में डाल दिया गया।
संघ, भाजपा सरकार और मीडिया ने दलित समुदाय द्वारा अंग्रेजों के विजय का जश्न मनाने पर सवाल उठाते हुए इसे राष्ट्रविरोधी तक बताकर पेश किया। लेकिन सरकार की नज़र में हिंदू सेना द्वारा महारानी विक्टोरिया की पुण्यतिथि मनाना राष्ट्रद्रोह नहीं बल्कि आर्य नस्ल के वैश्विक संबंधों की पुनर्खोज है।
गौरतलब है कि मंगलवार 22 जनवरी को जंतर-मंतर पर हिंदू सेना की ओर से आयोजित किए गए कार्यक्रम में महारानी विक्टोरिया की 118वीं पुण्यतिथि पर उनको श्रद्धांजलि अर्पित की गई और इस संगठन की ओर से कहा गया है कि रानी विक्टोरिया ने भारत को मुगलों के निरंकुश शासन से मुक्त कराया था। संगठन ने ब्रिटिश रानी को 1857 में रियासतों को एकजुट रखने का भी क्रेडिट दिया।
बांटो और राज्य करो की नीति वाले अंग्रेजों को बताया गया एकता का सूत्रधार
क्या विडंबना है कि जिन अंग्रेजों ने बांटो और राज्य करो की नीति अपनाकर, हिंदू लीग, मुस्लिम लीग और आरएसएस जैसे खतरनाक संगठनों को जन्म दिया उन्हें पाला पोसा और भारत-पाकिस्तान का बंटवारा करवाकर देश को सांप्रदायिकता की भट्ठी में झोंक दिया, उन अंग्रेजों के बार में हिंदू सेना की के राष्ट्रीय प्रवक्ता और उपाध्यक्ष सुरजीत यादव ने दावा किया कि अगर इस देश में अंग्रेजों का शासन नहीं होता तो भारत के टुकड़े-टुकड़े हो गए होते।
सिर्फ इतना ही नहीं हिंदू सेना के सुरजीत यादव ने दावा किया कि अंग्रेजों ने 1857 में कई रियासतों को एकजुट रखा। ब्रिटिश शासकों ने हमें वो सब दिया, जो आज हम हैं, चाहे कानून हो, रेलवे हो, सड़कें हो, कम्युनिकेशन नेटवर्क हो, स्कूल हो, या इमारतें आदि हों।
इस कार्यक्रम में ये ये भी कहा गया कि अंग्रेजों ने हमारे मंदिरों को नष्ट नहीं किया, जैसा कि अन्य लोगों ने किया। उन्होंने हमें वह कानून दिया, जिसका हम आज भी पालन करते हैं।
बर्बर और हिंसक अंग्रेजों को बताया गया दुनिया की सबसे जेंटलमैन नस्ल
कार्यक्रम में सुरजीत यादव ने कहा, 'महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू जैसे नेता आवाज इसलिए उठा पाए क्योंकि ये निरंकुश सरकार नहीं थी। उनके जरिए ही भारतीयों ने आजादी का पहली बार स्वाद चखा, जब अंग्रेजों ने 1882 में स्थानीय तौर पर स्वशासन की इजाजत दी। सुरजीत यादव ने कहा कि बंगाल प्रेसीडेंसी में पहले केवल उच्च जातियों के लोगों को सेना में भर्ती होने की अनुमति थी। लेकिन अंग्रेजों की शाही सेना ने महार रेजीमेंट का गठन करके भारत की सभी जातियों के बीच समानता का संदेश दिया। उसने आगे ये दावा भी किया कि अगर दुनिया में कोई जैंटलमैन की वंश है, तो यह ब्रिटिश ही है।
बता दें कि इससे पहले हिंदू सेना ने 2017 में नई दिल्ली में 7.1 किलो का केक काटकर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का जन्मदिन भी मना चुकी है।
क्या इसीलिए हिंदू महासभा और RSS ने अंग्रेजों के खिलाफ़ नहीं लड़ी कभी कोई लड़ाई
हिंदू सेना के इस ब्रिटिश भक्ति और RSS द्वारा आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों का साथ देने से आर्यों के विदेशी आक्रमणकारी होने की थ्योरी और पुख्ता होती है। हिंदू सेना के
इस कृत्य से स्पष्ट जाहिर है कि सवर्ण जातियां खुद को बर्बर ब्रिटिशों के नस्ल का मानती हैं। जाहिर है आजादी की लड़ाई में कट्टरपंथी हिंदू संगठनों द्वारा देश से गद्दारी करके अंग्रेजों का साथ देने के पीछे यही नस्लवादी प्रवृत्ति काम कर रही थी।