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महिलाओं की बराबरी के मामले में आइसलैंड है नंबर 1, नॉर्वे और स्वीडन को पछाड़ा

Nirmal kant
6 March 2020 12:00 PM IST
महिलाओं की बराबरी के मामले में आइसलैंड है नंबर 1, नॉर्वे और स्वीडन को पछाड़ा
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कई ऐसे देश हैं जहां महिलाओं की सरकार में अधिक संख्या है, वहां बच्चों की देखभाल के लिए उदार नीतियां हैं। स्वीडन में जहां कैबिनेट के आधे पदों और संसद की लगभग सभी सीटों में महिलाएं हैं, वहां गर्भवती माताओं के लिए 35 सप्ताह के अवकाश की गारंटी दी गई है....

जनज्वार। 1920 में अमेरिका ने महिलाओं को मतदान का संवैधानिक अधिकार दिया। इस एक सदी में महिलाओं को अभी भी समानता के लिए निराशाजनक बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है। 8 मार्च को फिर अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस आने वाला है। इसस पहले 'द इकोनॉमिस्ट' ने अपने ग्लास-सीलिंग इंडेक्स को अपडेट किया है।

स ग्लास सीलिंग इंडेक्स में कार्यस्थल (वर्कप्लेस) में महिलाओं के लिए समानता को लेकर दस इंडिकेटर्स के साथ 29 देशों को रैंक किया गया। जिन दस इंडिकेटर्स के साथ यह स्टडी की गई है उसमें शैक्षिक प्राप्ति, श्रम-बल भागीदारी, वेतन, बाल देखभाल लागत, मातृत्व और पितृत्व अधिकार, बिजनेस-स्कूल एप्लिकेशन और नौकरियों में वरिष्ठ पदों पर प्रतिनिधित्व (मैनेजमेंट के पदों पर, कंपनी बोर्डों और संसद में) को शामिल किया गया।

स साल नॉर्वे और स्वीडन दोनों को पछाड़कर आइसलैंड द इकनोमिस्ट की रैंकिंग में सबसे ऊपर है। अपने पड़ोसी नॉर्डिक की तरह आइसलैंड विशेष रूप से महिलाओं को क्लासरुम में मदद (आधे से अधिक महिलाएं यूनिवर्सिटी की डिग्री हासिल करते हैं) और कॉर्पोरेट बोर्डों ( 40% अनिवार्य कोटा की बदौलत महिलाएं देश की बोर्ड सीटों में लगभग आधा हिस्सा रखती हैं, यह अनिवार्य कोटा साल 2013 में लागू हुआ था) तक पहुंच की गारंटी देता है।

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इसलैंड में महिलाओं को जीएमएटी (Graduate Management Admission Test) में भी 50 प्रतिशत आरक्षण मिलता है। जीएमएटी बिजनेस स्कूल के लिए प्रवेश परीक्षा है। कई महिलाएं बिजनेस के क्षेत्र में अपना करियर बनाती हैं।आइसलैंड में 41.5% महिलाएं मैनेजमेंट के पदों पर हैं। इस मामले में केवल पौलेंड की रैंक आइसलैंड से ठीक हैं। पौलेंड में 42.5 प्रतिशत महिलाएं मैनेजमेंट के पदों को संभालती हैं।

style="color: #00ccff;">'द इकोनॉमिस्ट' की रैंकिंग में सबसे नीचे दक्षिण कोरिया है, जिसमें जापान भी बहुत ऊपर नहीं है। यह लगातार आठवां साल है जब दक्षिण कोरिया का आखिरी स्थान पर है। दक्षिण कोरियाई महिलाओं का सिर्फ 59% कामकाजी है जो कि

आर्थिक सहयोग तथा विकास संगठन के औसत से 65% कम है। आर्थिक सहयोग तथा विकास संगठन मुख्य रूप से अमीर देशों का एक क्लब है।

क्षिण कोरिया में जो महिलाएं काम करती हैं वो पुरुषों की तुलना में प्रतिवर्ष औसतन 35 प्रतिशत कम कमाती हैं। यह पुरुषों और महिलाओं के वेतन के बीच बड़ा अंतर है। इस बीच महिलाएं कॉर्पोरेट में सीढ़ी चढ़ने के लिए संघर्ष कर रहीं है। दक्षिण कोरिया में 7 मैनेजमेंट के पदों में एक और बोर्ड की 30 सीटों में एक पर महिलाएं हैं।

न निराशाजनक आंकड़ों की क्या व्याख्या है? महिलाएं दक्षिण कोरिया की पुरुष-प्रधान संसद (महिलाएं नेशनल असेंबली का केवल 17% हिस्सा बनाती हैं) में एक भूमिका निभा सकती हैं। स्टडी से पता चलता है कि महिला सांसद उन कानूनों को पारित करने की अधिक संभावना है जो कार्यस्थल (वर्कप्लेस) में महिलाओं को लाभान्वित (जैसे- मैटरनिटी-पैटरनिटी लीव) करते हैं।

ई ऐसे देश हैं जहां महिलाओं की सरकार में अधिक संख्या है, वहां बच्चों की देखभाल के लिए उदार नीतियां हैं। स्वीडन में जहां कैबिनेट के आधे पदों और संसद की लगभग सभी सीटों में महिलाएं हैं, वहां गर्भवती माताओं के लिए 35 सप्ताह के अवकाश की गारंटी दी गई है। फ़िनलैंड में अभी महिला ही प्रधानमंत्री हैं और यहां की संसद ने लिंगभेद को खत्म करते हुए माता-पिता दोनों को 30 सप्ताह के अवकाश की गारंटी दी है। स्पेन की सरकार में महिलाओं की जबरदस्त मौजूदगी है। जहां सरकार अगले साल से माता-पिता को 32 सप्ताह के अवकाश की व्यवस्था कर रही है।

देशों की संसद पुरुष प्रधान हैं वहां माता-पिता के लिए अवकाश मामूली बात हो जाती है। ब्रिटेन की संसद में केवल एक तिहाई महिलाएं हैं। ब्रिटेन में माता-पिता दोनों को 12 सप्ताह का अवकाश दिया जाता है। जो आर्थिक सहयोग तथा विकास संगठन के औसत से एक तिहाई कम है।

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मेरिका में जहां हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स (अमेरिकी संसद का निचला सदन) में एक चौथाई से भी कम सांसद महिलाएं हैं, वहां कोई भी अनिवार्य रूप से माता-पिता के लिए अवकाश की सुविधा नहीं है। अमेरिका और ब्रिटेन दोनों देशों में आंशिक रूप से राज्य से कमजोर समर्थन के कारण बच्चों की देखभाल की लागत आर्थिक सहयोग तथा विकास संगठन के औसत से दोगुनी है। इस वर्ष के अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की थीम 'आई एम जेनरेशन इक्वलिटी' है। लेकिन जैसा कि हमारा सूचकांक बताता है कि अभी भी एक लंबा सफर तय करना है।

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