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उत्तराखंड में चर्चित आईएफएस संजीव चतुर्वेदी ने लुप्त होतीं 1100 वनस्पतियों को बचाया
दिल्ली के एम्स में मुख्य सतर्कता अधिकारी रहते हुए भी संजीव चतुर्वेदी ने घोटाले के कई मामले खोलकर हड़कंप मचा दिया, एक बार फिर उनकी ऊंचे पदों पर बैठे लोगों से ठनी तो सीवीओ पद से हटना पड़ा...
नवनीत मिश्र की रिपोर्ट
जनज्वार। भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग लड़ने के लिए चर्चित आईएएफएस अफसर संजीव चतुर्वेदी ने पिछले कुछ समय से खामोशी के साथ उत्तराखंड में वो कमाल कर दिखाया, जिसकी किसी ने कल्पना नहीं की थी। देवभूमि उत्तराखंड में भी उन्होंने जहां धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले कश्मीर के श्रीनगर के चर्चित गार्डन को उतार दिया, वहीं लुप्त होतीं साढ़े 11 सौ वनस्पतियों और जड़ी-बूटियों बचाने में सफलता हासिल की है। जिसमें चार सौ से ज्यादा वृक्षों की प्रजातियां हैं।
भारतीय वन सेवा के 2002 बैच के अधिकारी और रैमन मैग्सेसे से सम्मानित संजीव चतुर्वेदी ने वन अनुसंधान के मामले में देश के सामने उत्तराखंड को एक नजीर के तौर पर पेश किया है। बजट और स्टाफ की कमी झेलते हुए भी चतुर्वेदी ने न केवल देवभूमि को फूलों से महकाया, बल्कि उत्तराखंड की गोदी में नए-नए फूलों को खिलाकर ट्यूलिप गार्डन जैसा गिफ्ट भी दिया।
बीते दिनों उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मुनस्यारी में ट्यूलिप गार्डन में खिले फूलों की तस्वीरें ट्वींट कीं थीं तो जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला भी बधाई देने से नहीं चूके थे। श्रीनगर की तरह हिमालय की गोद में भी ट्यूलिप गार्डन खिलाने का श्रेय उत्तराखंड फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट में बतौर मुख्य वन संरक्षक कार्यरत संजीव चतुर्वेदी को ही जाता है।
खास बात है कि मुनस्यारी की तुलना में हल्द्वानी में ट्यूलिप को खिलाना ज्यादा चुनौती भरा रहा। क्योंकि हालैंड की तरह ही मुनस्यारी भी ठंडा स्थान है, लेकिन हल्द्वानी का तापमान यूपी के रामपुर और मुरादाबाद जैसै जिलों के बराबर रहता है। फिर भी लगातार दो साल की कोशिशों के बावजूद संजीव चतुर्वेदीहल्द्वानी में भी हालैंड का ट्यूलिप फूल खिलाने में सफल रहे। संजीव चतुर्वेदी ट्यूलिप से भी आकर्षक रंग रूप के आर्किड फूल की 65 प्रजातियों को संरक्षित कर चुके हैं।
हालांकि, संजीव चतुर्वेदी का मानना है कि भारत में अनगिनत किस्म के फूल हैं, जिनकी विदेशी फूलों से कोई तुलना ही नहीं की जा सकती है। चाहे सुगंध का मामला हो या फिर औषधीय गुणों का, भारतीय फूलों और वनस्पतियों का कोई जवाब नहीं है। ऐसे में ट्यूलिप गार्डन से कहीं ज्यादा वह देश के विभिन्न कोनों में दुर्लभ और गुणकारी वनस्पतियों को संजोने को अपनी टीम की सफलता मानते हैं।
पिछले काफी समय से मिशन मोड में आकर संजीव चतुर्वेदी दुर्लभ और औषधीय वनस्पतियों के संरक्षण में जुटे रहे। जिसका नतीजा है कि आज हल्द्वानी से लेकर कई रेंज में साढ़े 11 वनस्पतियां संरक्षित हुईं हैं। कमाल की बात है कि उत्तराखंड में इसके लिए कभी बजट भी नहीं बढ़ाया गया। 2011-12 में भी करीब तीन करोड़ रुपये थे और आज 2020-21 में ही उतनी ही धनराशि आवंटित होती है। फिर भी वह पहाड़ पर गुलशन खिलाने में जुटे रहे।
मुख्य वन संरक्षक पद पर तैनात संजीव चतुर्वेदी की सहायता के लिए उत्तराखंड में कुल दो डीएफओ, दो एसडीओ स्तर के अधिकारियों के पद खाली हैं। कुल आठ रेंज अधिकारियों के पद भी आधे खाली हैं, जिससे कुमायूं, गढ़वाल, पिथौरागढ़, रानीखेत, नैनीताल, हल्द्वानी आदि इलाकों में मौजूद नर्सरीज की निगरानी में भारी दिक्कतें भी झेलनी पड़ती हैं। फिर भी संजीव चतुवेर्दी हार नहीं माने। संजीव चतुर्वेदी पर वनस्पतियों और फूलों को सहेजने की धुन ऐसी सवार रही कि हल्द्वानी स्थित मुख्यालय से वह 12-12 घंटे जोखिम भरा सफर कर उत्तराखंड के कोने-कोने में वनस्पतियों का सर्वे करने में जुटे रहे।
संजीव चतुर्वेदी की कोशिशों से आज हल्द्वानी में तमाम प्रकार की वनस्पतियां हैं। 28 तरह की जंगली लताओं का भी उन्होने संरक्षण किया है। खास बात है कि उत्तराखंड की बायोडायवर्सिटी को दर्शाने वालीं 150 वनस्पतियों का उन्होंने टीम के साथ मिलकर डाक्यूमेंटेशन भी किया है। लोगों को वनस्पतियों के संरक्षण के बारे में प्रेरित करने के लिए संजीव चतुर्वेदी ने साहित्य का भी सहारा लिया है।
संजीव चतुर्वेदी ने आईएएनएस से कहा, "ब्रह्मकमल जैसे फूलों को हम खिलाने में सफल रहे हैं। बायोडायवर्सिटी कंजर्वेशन से लेकर तमाम तरह के प्रोजेक्ट सफलतापूर्वक उत्तराखंड में चल रहे हैं। वनस्पतियों ही नहीं, बल्कि हमने कई तरह की काई को भी संरक्षित किया है। जिन पौधों के बारे में कवियों ने चर्चा की है, उनकी कविताओं की होर्डिंग भी वाटिकाओं में लगाई गई है, ताकि लोग वनस्पतियों और पौधों को संरक्षित करने की दिशा में प्रेरित हों।"
संजीव चतुर्वेदी ने उत्तराखंड में 80 से अधिक दुर्लभ जड़ी-बूटियों को संरक्षित करने में सफलता पाई है। खास बात है कि उत्तराखंड वन अनुसंधान केंद्र के सभी आठ रेंज में इन वनस्पतियों को संजोया गया है। लालकुआं और भुजियाघाट में कुल 96 तरह के एरोमैटिक प्लांट(खुशबूदार) की व्यवस्था की है। कालिका रेंज में घासों की 52 तरह की प्रजातियां हैं। इसी तरह औषधीय गुणों की खान तुलसी की डेढ़ दर्जन प्रजातियों का लालकुआं और देहरादून रेंज में संरक्षण चल रहा है। जैव विविधता के क्षेत्र में कुल 14 प्रोजेक्ट को संजीव चतुर्वेदी ने धरातल पर उतारा है, जिसमें हल्द्वानी और पिथौरागढ़ रेंज में ट्यूलिप गार्डन का प्रोजेक्ट पूरा हुआ है।
खास बात है कि हल्द्वानी में बुद्ध वाटिका बनाई है, जिसमें गौतम बुद्ध के जीवन से जुड़े 13 तरह के पेड़-पौधे हैं। संजीव चतुर्वेदी ने हल्द्वानी में भारत वाटिका भी तैयार की है, जिसमें देश के सभी राज्यों के प्रमुख पेड़-पौधे हैं। संजीव चतुर्वेदी ने ओक, रिंगल, वाइल्ड क्लाइंबर्स आदि वनस्पतियों को संरक्षित करने में उन्होंने सफलता हासिल की है।
बता दें कि 1995 में मोतीलाल नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, इलाहाबाद से बीटेक करने वाले संजीव चतुर्वेदी बाद में 2002 में भारतीय वन सेवा में चुने गए। उन्हें शुरूआत में हरियाणा काडर मिला। हरियाणा में तैनाती के दौरान 2009 में उन्होंने वन घोटाले का खुलासा किया तो तत्कालीन सरकार की नाराजगी झेलनी पड़ी। आखिरकार राज्य सरकार के रवैये से तंग आकर उन्होंने केंद्र में प्रतिनियुक्ति मांग ली थी। फिर वह दिल्ली चले आए।
2015 में दिल्ली के एम्स में मुख्य सतर्कता अधिकारी (सीवीओ) रहते हुए भी उन्होंने घोटाले के कई मामले खोलकर हड़कंप मचा दिया। एक बार फिर उनकी ऊंचे पदों पर बैठे लोगों से ठनी तो सीवीओ पद से हटना पड़ा। इस बीच संजीव को 2015 में उत्तराखंड काडर अलाट कर दिया गया। तब से संजीव चतुर्वेदी उत्तराखंड में वन अनुसंधान क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य कर रहे हैं।