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समाज

भारत में 22 फीसदी बच्चियों की मौतों के लिए घर-समाज का उपेक्षित रवैया जिम्मेदार

Prema Negi
14 May 2019 2:02 PM IST
भारत में 22 फीसदी बच्चियों की मौतों के लिए घर-समाज का उपेक्षित रवैया जिम्मेदार
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एक रिपोर्ट के अनुसार हमारे देश में प्रतिवर्ष पांच वर्ष से कम उम्र में 2,40,000 लड़कियों की मृत्यु केवल इसलिए होती है क्योंकि लड़कियां होने के कारण उनके परवरिश में लापरवाही बरती जाती है...

महेंद्र पाण्डेय, वरिष्ठ लेखक

अफ्रीका में एक देश है, टोंगा। टोंगा दुनिया के सबसे पिछड़े देशों में शुमार है। दूसरी तरफ भारत है, जहां की बढ़ती अर्थव्यवस्था के चर्चे दुनिया में हैं। पर हैरान करने वाला तथ्य यह है कि दुनिया में भारत और टोंगा, दो ही ऐसे देश हैं, जहां पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों के सन्दर्भ में लड़कियों की मृत्यु दर लड़कों की तुलना में अधिक है। इसका सीधा सा मतलब है कि पांच वर्ष से कम उम्र में लड़कियों की मौत लड़कों से अधिक होती है। इस विश्लेषण को लन्दन के क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी ने दुनिया के 195 देशों के आंकड़ों के आधार पर किया है।

इंस्टीट्यूट वैक्सीन एक्सेस सेंटर के रिपोर्ट न्यूमोनिया एंड डायरिया प्रोग्रेस रिपोर्ट 2018 के अनुसार विश्व में किसी भी देश के तुलना में न्यूमोनिया एंड डायरिया से बच्चों की मौत के मामले में भारत सबसे आगे है।

दुनिया में न्यूमोनिया एंड डायरिया से जितने बच्चों की मृत्यु होती है, उसमें से 70 प्रतिशत से अधिक मौतें केवल 15 देशों में होतीं हैं और भारत भी उनमें से एक है। शेष 14 देश हैं – नाइजीरिया, पाकिस्तान, कांगो, इथियोपिया, चाड, अंगोला, सोमालिया, इंडोनेशिया, तंज़ानिया, चीन, नाइजर, बांग्लादेश, यूगांडा और कोटे द आइवरी।

न्यूमोनिया एंड डायरिया से बच्चो की मृत्यु के सन्दर्भ में भी लिंग की महत्वपूर्ण भूमिका है। हमारे देश में ऐसी मृत्यु के सन्दर्भ में लडकियां लड़कों की तुलना में बहुत आगे हैं। वर्ष 2016 के दौरान देश में 2.6 करोड़ बच्चे पैदा हुए और लगभग 2.61 लाख बच्चों की मृत्यु हो गयी। हमारे देश में तो टीकाकरण के मामले में भी लड़के और लड़कियों में भेद किया जाता है। औसतन 100 में से 78 बच्चों का पूर्ण टीकाकरण किया जाता है जिसमें से 41 लड़के होते हैं और 37 लड़कियां।

लांसेट मेडिकल जर्नल में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार हमारे देश में प्रतिवर्ष पांच वर्ष से कम उम्र में 240000 लड़कियों की मृत्यु केवल इसलिए होती है क्योंकि लड़कियां होने के कारण उनके परवरिश में लापरवाही बरती जाती है। यह संख्या गर्भ में पल रहे बच्चे के लिंग निर्धारण के बाद की जाने वाली भ्रूण हत्या के अतिरिक्त है। इसका सीधा सा मतलब यह है कि हरेक 10 वर्ष के बाद की जनगणना में 24 लाख लड़कियों की कमी केवल उनके लडकी होने के कारण हो जाती है।

ऑस्ट्रिया के इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ एप्लाइड सिस्टम्स द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में पांच वर्ष से कम उम्र की जितनी लड़कियां मरतीं हैं, उनमें से 22 प्रतिशत मौतें केवल इसलिए होतीं हैं कि वे लड़कियां थीं, इसलिए घर-परिवार और समाज ने उन्हें पूरी तरह से उपेक्षित किया।

जाहिर है पूरी दुनिया में किये गए तमाम अध्ययन यही बताते हैं कि हमारे देश में लड़कियों की उपेक्षा इस हद तक की जाती है कि वे जिन्दा भी नहीं रह पातीं। इन सबके बाद भी समाज का रवैया नहीं बदल रहा है।

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