प्रचंड बहुमत से जीत के उन्माद में मोदी सरकार ने 100 दिनों के भीतर जल्दबाजी में बिना सोचे-समझे 'बिगबैंग रिफॉर्म' के नाम पर तबाही लाने वाले फैसले लिए हैं, जिसमें शामिल हैं सार्वजनिक क्षेत्र को खत्म करना, श्रम कानूनों में कटौती, वन विभाग के अधिकारियों को असीमित अधिकार देना, केंद्रीय अनुदान आयोग को समाप्त करना...
अभिषेक आजाद का विश्लेषण
मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल के शुरुआती 100 दिनों में बड़े आर्थिक सुधारों की घोषणा करते हुए चार महत्वपूर्ण फैसले लिए हैं, जिसमें सार्वजनिक क्षेत्र की 46 कंपनियों को बेचना, श्रम कानून, वन कानून और शिक्षा नीति को बदलने का फैसला शामिल है।
सरकार ने वित्त वर्ष 2018-19 में सार्वजनिक कंपनियों को बेचकर 80 हजार करोड़ रुपए कमाने का लक्ष्य रखा है। रेलवे को भी बेचने की तैयारी चल रही है। 2014 से सत्ता में आने के बाद मोदी सरकार एक सोची—समझी रणनीति के तहत सरकारी कंपनियों को औने-पौने दामों पर बेच रही है।
सरकार को हर साल मुनाफे के रूप में एक बड़ी रकम देने वाले सार्जनिक क्षेत्र के उपक्रमों को भी कौड़ियों के भाव बेचा जा रहा है। इस प्रक्रिया को और तेज गति प्रदान करने के लिये नए 'औद्योगिक विकास के भूमि बैंक' बनाने की योजना है। भूमि बैंकों के माध्यम से सरकार सार्वजनिक उपक्रमों की जमीन को विदेशी निवेशकों को सौंप सकती है।
वनवासियों को जमीन से बेदखल करने और वनों के निजीकरण का रास्ता खोलने के लिए नया वन कानून लाने की योजना है, जिसके तहत वन विभाग के अधिकारियों को आर्म्ड फ़ोर्सेज स्पेशल पॉवर एक्ट (अफस्पा) के समान असीमित अधिकार दिए जायेंगे। नई शिक्षा नीति के तहत उच्च शिक्षा के निजीकरण और भगवाकरण को बढ़ावा देने के लिए 'केंद्रीय अनुदान आयोग' को समाप्त करने की योजना है।
एक सोची—समझी साजिश के तहत सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को नष्ट किया जा रहा है। हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड दुनिया की 100 शीर्ष कंपनियों में है, लेकिन सरकार ने राफेल डील में हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड को नज़रंदाज़ करते हुए 2008 में बनी रिलायंस एयरोस्पेस टेक्नोलॉजी को हिस्सेदार बनाया।
राफेल विवाद में जब तत्कालीन रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड के पास राफेल निर्माण की क्षमता नहीं है तो हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड के कर्मचारियों ने कड़ा विरोध जताया। 4G का स्पेक्ट्रम बीएसएनएल के बजाय जिओ को दिया गया, जिसकी वजह से बीएसएनएल घाटे में चला गया और अपने 1,75,000 कर्मचारियों को सैलेरी नहीं दे पा रहा।
बीएसएनएल के कर्मचारियों ने 4G स्पेक्ट्रम की माँग करते हुए सड़कों पर प्रदर्शन भी किया। सार्वजनिक उपक्रमों के कर्मचारी काम की मांग कर रहे हैं, वो काम करना चाहते हैं, किन्तु सरकार उनकी छुट्टी करने पर उतारू है। मोदी जी हर साल 2 करोड़ नई नौकरी देने का वायदा करके सत्ता में आये, लेकिन उन्होंने नौकरी देने की बजाय नौकरियों को ख़त्म किया है।
आज बीएसएनएल के 1,75,000 कर्मचारियों की नौकरी अधर में लटकी हुयी है। शपथ ग्रहण के दिन ही मोदी सरकार ने उत्तरी रेलवे की 26,000 नौकरियां समाप्त करने का फरमान जारी कर दिया है। सरकार की इन्हीं गलत नीतियों की वजह से आज बेरोजगारी 45 साल के अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गयी है और इस तिमाही विकास दर पिछले पाँच सालों में न्यूनतम दर्ज़ की गयी है।
सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम भारतीय अर्थव्यस्था की रीढ़ की हड्डी है। देश की 'आर्थिक स्वायत्तता' इन पर निर्भर है। भारत को दुनिया की चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों ने बहुत बड़ी भूमिका निभायी है। आज़ादी के बाद जनता ने अपने खून पसीने की कमाई से इन कंपनियों को खड़ा किया। जनता एक वक़्त भूखी रही पर इन कंपनियों को खड़ा करने के लिए जमीन, चंदा, श्रम और टैक्स समय से पहले देती रही, तब जाकर ये कम्पनियां खड़ी हुयी।
जनता ने अपनी मेहनत से इन कंपनियों को नवरत्न बनाया है। आज भी इन कंपनियों का लोहा पूरी दुनिया मानती है। सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की बिक्री से देश की आर्थिक स्वायत्तता खतरे में पड़ जायेगी। देश विकास कार्यों के लिए विदेशी पूंजी और विदेशी ऋण पर निर्भर हो जायेगा।
दूसरी बार प्रचंड बहुमत से जीत के उन्माद में मोदी सरकार ने 100 दिनों के भीतर जल्दबाजी में बिना सोचे-समझे 'बिगबैंग रिफॉर्म' के नाम पर तबाही लाने वाले फैसले लिए हैं, जिसमें सार्वजनिक क्षेत्र को खत्म करना, श्रम कानूनों में कटौती, वन विभाग के अधिकारियों को असीमित अधिकार देना, केंद्रीय अनुदान आयोग को समाप्त करना आदि शामिल हैं।
नया वन कानून पुलिस व राजस्व विभाग के अधिकारियों को जनता के दमन-उत्पीड़न का एक नया औजार देता है। केंद्रीय अनुदान आयोग की समाप्ति से उच्च शिक्षा और शोध की गुणवत्ता बुरी तरह प्रभावित होगी। बड़े सुधारों के नाम पर लिए गए ये बड़े फैसले लम्बे अंतराल में देश के लिए अंततः नुकसानदेह साबित होंगे।
मोदी जी सभी मंचों से पिछली सरकारों की आलोचना करते हुए कहते हैं कि पिछली सरकारों ने 70 सालों तक देश को लूटा और देश का विकास नहीं किया। इसी बीच वो स्वतंत्र भारत की सभी उपलब्धियों को सिरे से ख़ारिज कर देते हैं। इस तरह से उन्हें स्वतंत्र भारत की सभी उपलधियों को मिट्टी में मिलाने का मौका मिल जाता है।
स्वतंत्र भारत के पास उपलब्धियों के नाम पर बहुत कुछ ऐसा है, जिसको संजोकर रखने की ज़रूरत है। मौजूदा मोदी सरकार उन सभी उपलब्धियों को हमसे छीन लेना चाहती है। सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम उसी कड़ी का एक हिस्सा हैं। देश की जनता ने 70 सालों में इतना बनाया है कि मौजूदा सरकार के लोगों ने आज से बीस साल पहले 1999 में विनिवेश विभाग बनाकर सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को बेचना शुरू किया, फिर भी अभी पूरी तरह खत्म नहीं कर पाये हैं।
(अभिषेक आज़ाद दिल्ली विश्वविद्यालय के दर्शन विभाग में शोधछात्र हैं, ये उनके निजी विचार हैं।)