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हर साल दुनियाभर में काटे जाते हैं यूनाइटेड किंगडम के बराबर क्षेत्रफल के जंगल
प्रतीकात्मक फोटो
हाल में उपग्रह के चित्रों से पता चला है कि मई के महीने में वर्षा वनों के काटने की दर एक हेक्टेयर प्रति मिनट रही है। यानी प्रति मिनट में लगभग एक फुटबाल के मैदान जितना वन काटा जा रहा है...
महेंद्र पाण्डेय की रिपोर्ट
तापमान वृद्धि और जलवायु परिवर्तन से निपटने का सबसे आसान तरीका है जंगलों का क्षेत्र बढ़ाना। वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने में पेड़ बड़े सहायक हैं। मगर आबादी के बढ़ते बोझ और कृषि के क्षेत्र में विस्तार के बाद वन सिकुड़ रहे हैं और नए वन लगाने की जगह ख़त्म हो रही है।
वर्ष 2014 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन अधिवेशन के समय दुनिया के जंगलों को बचाने के लिए न्यू यॉर्क डेक्लेरेशन ऑन फॉरेस्ट्स की घोषणा की गई थी, जिसका उद्देश्य वर्ष 2020 तक दुनिया के जंगलों के कटने की दर को 50 प्रतिशत तक कम करना था और वर्ष 2030 तक जंगलों को कटने को पूरी तरह से प्रतिबंधित करना था।
हाल में ही वैज्ञानिकों के एक अंतरराष्ट्रीय दल की एक रिपोर्ट के अनुसार न्यूयॉर्क वन घोषणा के बाद से जंगलों के कटने की दर में कोई कमी नहीं आयी है, वास्तविकता यह है कि इस दर में पहले से अधिक तेजी आयी है। वर्ष 2014 से 2018 के बीच प्रत्येक वर्ष जितने जंगल काटे गए हैं उनका क्षेत्रफल यूनाइटेड किंगडम के क्षेत्र के बराबर है।
जंगलों को वायुमंडल में मिलने वाली कार्बन डाइऑक्साइड गैस के अवशोषण का सबसे बड़ा माध्यम माना जाता है, पर इन्ही जंगलों के कटने से प्रतिवर्ष जितनी कार्बन डाइऑक्साइड वायुमंडल में मिल रही है उसकी मात्रा लगभग उतनी है जितनी कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन पूरा यूरोप करता है, या फिर दुनिया भर की कारें सम्मिलित तौर पर जितने कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन करती हैं।
सबसे तेजी से वनों के कटने की रफ़्तार पृथ्वी के समशीतोष्ण क्षेत्रों, जैसे लैटिन अमेरिका, अफ्रीका और दक्षिण-पूर्व एशिया में है। इस रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर में प्रतिवर्ष लगभग 2.6 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र के वन काटे जाते हैं। जंगलों को बचाने के लिए किये गए न्यू यॉर्क घोषणा के बाद से जंगलों के काटने की दर में लगभग 43 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी आंकी गयी है।
जुरिच स्थित क्रोथर लैबोरेट्रीज के वैज्ञानिकों ने जीन फ़्रन्कोइस बस्फिन के नेतृत्व में पूरी दुनिया के मानचित्र का अध्ययन करने के बाद आबादी और कृषि के क्षेत्रों को हटाकर बताया है कि पृथ्वी पर 4.4 अरब हेक्टेयर क्षेत्र में आसानी से वन लगाए जा सकते हैं, इनमें से वर्तमान में 2.8 हेक्टेयर क्षेत्र में वन है। इसका सीधा सा मतलब है कि अभी 1.6 अरब हेक्टेयर में वन लगाए जा सकते हैं, जिसमें से 0.9 अरब हेक्टेयर में मानव का दखल नहीं रहेगा।
यह क्षेत्र लगभग अमेरिका के क्षेत्रफल के बराबर है। यदि 1.6 अरब हेक्टेयर में वन लगाए गए तब जब ये बड़े होंगे, इनसे 205 अरब टन कार्बन का अवशोषण होगा, जबकि वर्तमान में कुल कार्बन उत्सर्जन 300 अरब टन है। इसका सीधा सा मतलब यह है कि यदि वनों का क्षेत्र बढ़ता है, तब कुल कार्बन उत्सर्जन में से दो-तिहाई का अवशोषण इनमें हो जाएगा।
19 मई को नेचर में प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार पिछले 35 वर्षों में वन क्षेत्र में 7 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दर्ज की गयी है। यह एक चौंकाने वाला तथ्य है क्योंकि माना जाता है कि वनक्षेत्र लगातार कम होते जा रहे है। पर, इसमें यह भी बताया गया है कि उष्णकटिबंधीय वन सिलसिलेवार तरीके से काटे जा रहे हैं और नए वन ऐसे क्षेत्रों में पनपने लगे लगे हैं जहां बहुत ठण्ड के कारण पहले पेड़ नहीं लगते थे। हिमालय के क्षेत्रों में भी वनों का क्षेत्र पहले से अधिक ऊंचाई पर खिसकने लगा है।
उष्णकटिबंधीय अमेज़न के वर्षा वनों को पृथ्वी का फेफड़ा कहा जाता है और इनमें दुनिया की 10 प्रतिशत से अधिक प्रजातियाँ मिलती हैं। पिछले वर्ष ब्राज़ील में नयी सरकार के गठन के बाद यहाँ वर्षा वनों के काटने की दर में बहुत तेजी आयी है। अमेज़न के वर्षा वनों में लगी भीषण आग लगातार समाचारों में बनी रहती है।
पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष अमेज़न के जंगलों की आग में 88 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई है। नए राष्ट्रपति की सोच भी अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प जैसी है, जो समझते हैं कि पूरी प्रकृति मानव उपभोग के लिए बनी है। हाल में उपग्रह के चित्रों से पता चला है कि मई के महीने में वर्षा वनों के काटने की दर एक हेक्टेयर प्रति मिनट रही है।
यानी प्रति सेकेंड में लगभग एक फुटबाल के मैदान जितना वन काटा जा रहा है। पिछले कुछ वर्षों तक वर्षावनों को सुरक्षित रखने के प्रयासों में तेजी आयी थी, पर अब खेती, पशुपालन और उद्योगों को स्थापित करने के लिए बड़े पैमाने पर ये वन काटे जा रहे हैं और इसे सरकारी संरक्षण प्राप्त है।