Begin typing your search above and press return to search.
चुनावी पड़ताल 2019

झारखंड में बढ़ेंगी भाजपा की मुश्किलें, महागठबंधन दे रहा सीधे चुनौती

Prema Negi
24 April 2019 1:54 PM IST
झारखंड में बढ़ेंगी भाजपा की मुश्किलें, महागठबंधन दे रहा सीधे चुनौती
x

झारखंड में चतरा को छोड़ सभी सीटों पर महागठबंधन ने भाजपा के विरुद्ध अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं। ये सभी सीटें पहले भाजपा के खाते में थीं, मगर अब इन सीटों पर वापस लौटना भाजपा के लिए काफी मुश्किल लग रहा है...

विशद कुमार की रिपोर्ट

इस बार हजारीबाग से भाजपा ने जयंत सिन्हा को ही दूसरी पारी खेलने के लिए मैदान में उतारा है। वहीं भाकपा ने भुवनेश्वर प्रसाद मेहता को और कांग्रेस ने गोपाल साहू को मैदान में उतारा है। अत: इस त्रिकोणीय संघर्ष में अब ऊंट किस करवट बैठेगा कहना मुश्किल है।

कोडरमा लोकसभा का सीट पर पहली बार 1977 में चुनाव हुआ। पहले चुनाव में जनता पार्टी के टिकट पर रीतलाल वर्मा जीते। 1980 में वह पुन: बीजेपी के टिकट पर जीते। 1984 में कांग्रेस के तिलकधारी सिंह ने यहां से जीत हा​सिल की। 1989 में बीजेपी के रीतलाल वर्मा फिर जीत गए। 1991 में जनता दल के मुमताज अंसारी जीत दर्ज की। 1996 और 1998 के चुनाव में बीजेपी के रीतलाल वर्मा फिर जीतने में कामयाब हुए, जबकि 1999 में कांग्रेस के टिकट पर तिलकधारी सिंह जीत दर्ज की।

2004 में बीजेपी के टिकट पर बाबू लाल मरांडी जीते और 2006 (उपचुनाव) में वे बतौर निर्दलीय प्रत्याशी जीतें फिर 2009 में बाबू लाल मरांडी झारखंड विकास मोर्चा के टिकट पर जीते। 2014 में इस सीट से डॉ. रवींद्र कुमार राय जीते। माले के राज कुमार यादव दूसरे नंबर पर थे। रवींद्र कुमार राय को 3.65 लाख और भाकपा माले के राज कुमार यादव को 2.66 लाख वोट मिले थे। बाबूलाल मरांडी तीसरे नंबर पर सीमट गए थे।

इस बार झाविमो के सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी कोडरमा में महागठबंधन के उम्मीदवार हैं, जबकि भाजपा ने रवींद्र कुमार राय का टिकट काटकर राजद छोड़ भाजपा में शामिल हुई अन्नपूर्णा देवी को दिया है। इससे भूमिहार वोटर नाराज हैं, जिसका फायदा बाबूलाल मरांडी की ओर जा सकता है। यह क्षेत्र जातीय समीकरण में यादव और भूमिहार बहुल है। माले के उम्मीदवार होने के बावजूद राजकुमार यादव को यादव वोट का साथ मिल सकता है, जबकि राजद से भाजपा में आईं अन्नपूर्णा देवी को यादव वोटों की नाराजगी झेलनी पड़ सकती है।

दूसरी तरफ इस तिकोने संघर्ष में फंसे बाबूलाल मरांडी को यादव और भूमिहार वोटरों पर अधिक भरोसा करना पड़ रहा है। सीधे तौर पर देखा जाय तो भाकपा माले के राजकुमार यादव और बाबूलाल मरांडी में सीधी टक्कर है। वहीं पलामू में भाजपा के सांसद बीडी राम को राजद के घूरन राम, भाकपा माले की सुषमा मेहता और निर्दलीय जोरावर राम से टक्कर मिल रही है। यहां पर अगड़ी जाति के वोटरों और दलित वोटरों को साथ में रखना भाजपा के लिए अग्निपरीक्षा की तरह है। बीडी राम आईपीएस रहे हैं। वे झारखंड के डीजीपी रह चुके हैं। वैसे पलामू भाकपा माले की संघर्षशील जमीन रही है।

पलामू से 1999 में भाजपा से बृजमोहन राम, 2004 में राजद मनोज कुमार, 2009 में जेएमएम से कामेश्वर बैठा और 2014 में बीडी राम भाजपा से सांसद रहे हैं। 2014 के चुनाव में दूसरे नंबर पर राजद के मनोज कुमार रहे और तीसरे नंबर पर झाविमो के घुरन राम रहे, वहीं इस बार घुरन राम राजद के उम्मीदवार है। इस बहुकोणीय मुकाबले में माले भारी पड़ सकता है। वहीं कमोबेश ऐसी ही स्थिति चतरा में है, जहां भाजपा के सुनील सिंह को कांग्रेस के मनोज यादव, राजद के सुभाष यादव और निर्दलीय नागेश्वर गंझू से टक्कर मिल रही है।

जमशेदपुर, चाईबासा, गिरिडीह, धनबाद, दुमका, गोड्डा को छोड़कर झारखंड के लगभग सभी लोकसभा सीटों पर त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति बनी हुई है। चौथे चरण और पांचवें चरण में नामांकन पत्रों की जांच के बाद राज्य की आधी सीटों पर अब तस्वीर साफ हो रही है।

रांची, पलामू, चतरा, कोडरमा, हजारीबाग, खूंटी, लोहरदगा में अब भाजपा और महागठबंधन के उम्मीदवारों के बीच कड़ा मुकाबला दिख रहा है। चतरा को छोड़ सभी सीटों पर महागठबंधन ने भाजपा के विरुद्ध अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं। ये सभी सीटें पहले से भाजपा के खाते में थी। अब भाजपा के लिए इन सीटों पर वापस लौटना काफी मुश्किल लग रहा है। वहीं चतरा, कोडरमा, लोहरदगा और पलामू में महागठबंधन के उम्मीदवार भाजपा को कड़ी टक्कर दे रहे हैं।

रांची में भाजपा सांसद रामटहल चौधरी के निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनावी मैदान में उतरने से मामला दिलचस्प हो गया है। यहां भाजपा ने रामटहल चौधरी का टिकट काटकर रांची के व्यवसायी संजय सेठ को दिया है, जिसकी प्रतिक्रिया स्वरूप रामटहल चौधरी बागी उम्मीदवार के तौर पर निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनावी मैदान में उतर गए हैं। इसके चलते भाजपा प्रत्याशी के रूप में संजय सेठ की मुश्किलें बढ़ गईं।

इन्हें भाजपा के पारंपरिक वोटरों में सेंधमारी का डर सता रहा है। वहीं कांग्रेस प्रत्याशी सुबोध कांत सहाय, जो 2014 में दूसरे स्थान पर थे।,अब वे अपनी जीत के प्रति काफी आश्वस्त लग रहे हैं। समर्थकों का मानना है कि भाजपा से वोटरों की नाराजगी उनके लिए मददगार साबित हो सकती है।

खूंटी में भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा के लिए कांग्रेस उम्मीदवार कालीचरण मुंडा चुनौती बनते जा रहे हैं। खूंटी भाजपा की पारंपरिक सीट रही है। कड़िया मुंडा यहां से लगातार सांसद रहे हैं, जिनका टिकट इस बार काटकर अर्जुन मुंडा को दिया गया है। वैसे पत्थलगड़ी और पांचवीं अनुसूची को लेकर यहां के वोटरों में राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास से काफी नाराजगी है।

वहीं इस मामले पर अर्जुन मुंडा की चुप्पी से भी उनमें भाजपा के प्रति नाकारात्मक सोच विकसित हुई है, जिसकी आगामी चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका होगी। दूसरी तरफ झारखंड पार्टी के अजय टोपनो और झारखंड सेंगेल पार्टी की ब्लादीमीन केरकेट्टा से चुनौती मिलती नजर आ रही है। भाजपा के लिए यहां पर अपने सरना वोटरों को बरकरार रखने की कठिनाईयां भी सामने आ रही हैं। कांग्रेस उम्मीदवार कालीचरण मुंडा पिछले चुनाव में दूसरे नंबर पर थे, और इस बार भाजपा को सीधी टक्कर देने की स्थिति में हैं।

लोहरदगा में कांग्रेस की तरफ से सुखदेव भगत को टिकट दिये जाने से मामला पेंचीदा हो गया है। सुखदेव भगत को अपनी ही पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का साथ नहीं मिल रहा है। वहीं विधानसभा सदस्य चमरा लिंडा का भी साथ उन्हें नहीं मिल रहा है। यहां पर सुखदेव की टक्कर भाजपा के सांसद और केंद्रीय मंत्री सुदर्शन भगत से है। परंतु झारखंड पार्टी के देवकुमार धान और बसपा के श्रवण कुमार पन्ना से भाजपा और कांग्रेस के वोट बैंक में सेंधमारी की संभावना बढ़ गई है।

हजारीबाग लोकसभा क्षेत्र के इतिहास पर नजर डालें तो 1951 में हजारीबाग लोकसभा सीट से कांग्रेस के नागेश्वर प्रसाद सिन्हा ने जीत दर्ज की थी। उन्होंने छोटानागपुर संथाल परगना जनता पार्टी (राजा पार्टी) के तारा किशोर प्रसाद को हराया था। 51 के बाद कांग्रेस का खाता 68 में जाकर खुला, जब बाहर से आए उद्योगपति मोहन सिंह ओबराय कांग्रेस के टिकट से जीतकर संसद पहुंचे।

1971 में पुन: कांग्रेस से दामोदर पांडेय ने चुनाव जीता। उसके बाद से कांग्रेस हजारीबाग लोकसभा सीट को अपने कब्जे में नहीं ले पायी। भाजपा का खाता 1989 में खुला तो सही परंतु 91 के मध्यावधि चुनाव में यह सीट सीपीआई के भुवनेश्वर प्रसाद मेहता के खाते में चली गई।

उसके बाद 96 में बीजेपी के महावीर लाल विश्वकर्मा, 98 और 99 में बीजेपी के यशवंत सिन्हा तथा 2004 में भुवनेश्वर प्रसाद मेहता ने जीत दर्ज की। 2009 में फिर से यशवंत ने यह सीट जीत ली। 2014 में भाजपा ने यशवंत सिन्हा का टिकट काटकर उनके बेटे जयंत सिन्हा को दे दिया और जयंत मोदी लहर की पीठ पर बैठकर संसद ही नहीं पहुंचे, बल्कि केंद्रीय नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री भी बनाए गए।

Next Story