गुजरात की कच्छ यूनिवर्सिटी में 1 साल से नहीं कोई वीसी, तो 10 साल से रजिस्ट्रार का पद पड़ा है खाली
कच्छ यूनिवर्सिटी में 1 साल से नहीं है कुलपति और 10 साल से नहीं हुई है कुलसचिव की नियुक्ति, अब कुलपति की नियुक्ति के लिए बनायी गई सर्च कमेटी को भी शिक्षामंत्री ने कर दिया है भंग
कच्छ से दत्तेश भावसार की रिपोर्ट
जनज्वार। गुजरात के सीमांत कच्छ जिले में सालों से कोई यूनिवर्सिटी नहीं थी तो लंबे संघर्ष के बाद क्रांति गुरु श्यामजी कृष्ण वर्मा कच्छ यूनिवर्सिटी अस्तित्व में आयी। मगर स्थापना के बाद से ही यह यूनिवर्सिटी विवादों में घिरी हुई है। पिछले 1 साल से कच्छ यूनिवर्सिटी में कोई वाइस चांसलर नहीं है, इसलिए सर्च कमेटी की नियुक्ति हुई थी। सर्च कमेटी की तरफ से 3 नामों के सुझाव भेजे गये थे, मगर 1 साल से उन नामों में से किसी का चयन न होने के कारण सर्च कमेटी को ही शिक्षामंत्री द्वारा भंग कर दिया गया है। इस विश्वविद्यालय से 46 कॉलेज संबद्ध हैं और यहां 22000 छात्र शिक्षा ग्रहण करते हैं।
आरोप लग रहे हैं कि गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी अपने चहेते को वीसी के पद पर बिठाना चाहते हैं और शिक्षामंत्री अपने, इसलिए वीसी की नियुक्ति् नहीं हो पायी और सर्च कमेटी भंग कर दी गयी। इसके खिलाफ गुजरात के कांग्रेस प्रवक्ता डॉ मनीष जोशी ने कड़ा रुख अपनाते हुए आंदोलन करने की चेतावनी दी है। कच्छ यूनिवर्सिटी में विद्यार्थियों ने नारेबाजी करते हुए इसके खिलाफ अपना विरोध जताया है।
छात्रों के उग्र होते रवैये और विपक्षी दलों के प्रेशर के बाद गुजरात सरकार ने नई सर्च कमेटी की नियुक्ति के आदेश जारी किए हैं। हालांकि पूरे गुजरातभर में कई यूनिवर्सिटीज में वाइस चांसलर की नियुक्तियां भारी विलंब के बाद हुईं हैं, मगर कई वाइस चांसलरों की नियुक्ति में यूजीसी के कई नियमों की भी अनदेखी की गई है। सामान्य तौर पर वाइस चांसलर को कम से कम 10 साल का प्रोफ़ेसर का अनुभव होना चाहिए, मगर पिछले वाइस चांसलर डॉ सीबी जाडेजा जो कि प्रोफेसर नहीं एसोसिएट प्रोफ़ेसर थे, बावजूद इसके गुजरात के शिक्षामंत्री की जाति से संबंध रखने के कारण उनको वाइस चांसलर बनाने के आरोप लगे। आज की तारीख में भी डॉक्टर सीबी जाडेजा एसोसिएट प्रोफेसर के तौर पर ही अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
गौरतलब बात यह है कि क्रांति गुरु श्यामजी कृष्ण वर्मा यूनिवर्सिटी में पिछले 10 साल से कुल सचिव (रजिस्ट्रार) के पद पर किसी की नियुक्ति नहीं की गयी है, हालांकि तीन बार नियुक्ति की प्रक्रिया का कोरम पूरा हो चुका है, बावजूद इसके किसी भी किसी को भी कुल सचिव नियुक्त नहीं किया गया। पिछले 10 साल से कुलसचिव यानी रजिस्ट्रार की पोस्ट इंचार्ज के हवाले है। किसी विश्वविद्यालय की इतनी महत्वपूर्ण पोस्ट पर परमानेंट कर्मचारी की नियुक्ति न होने के कारण कई महत्वपूर्ण निर्णय और कार्रवाइयों में विलंब होने के भी आरोप लगते रहे हैं।
पिछले वर्ष पीएचडी के एंट्रेंस एग्जाम में 1100 छात्रों ने परीक्षा दी थी, मगर इस साल मात्र 300 विद्यार्थी पीएचडी एंट्रेंस एग्जाम में शामिल हुए। परमानेंट रजिस्ट्रार और वीसी की नियुक्ति न होने का बड़ा खामियाजा यूनिवर्सिटी और छात्रों को भुगतना पड़ रहा है। इस वर्ष सिर्फ 3% विद्यार्थी ही एंट्रेंस परीक्षा पास कर पाए थे। डॉ. गरवा कहते हैं, बड़ी लंबी लड़ाई लड़ने के बाद कच्छ को यूनिवर्सिटी मिली है, मगर प्रशासनिक कार्यों में सत्ता पक्ष का दखल होने के कारण कच्छ यूनिवर्सिटी में विद्यार्थियों को बहुत ही मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।
कच्छ यूनिवर्सिटी के बारे में दूसरे सीनेट मेंबर दीपक डांगर बताते हैं, कच्छ यूनिवर्सिटी बिना दूल्हे की बारात जैसी है। कई सालों से कच्छ यूनिवर्सिटी को वाइस चांसलर नहीं मिल रहा है और सर्च कमिटी की नियुक्ति के बाद भी पिछले 1 साल से वाइस चांसलर की नियुक्ति ना होना बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। कच्छ यूनिवर्सिटी में कई पदों पर प्रोफेसरों की नियुक्तियां भी नहीं हुई है। कई महत्वपूर्ण स्थान रिक्त पड़े हैं, जिससे हायर एजुकेशन की चाहत रख यूनिवर्सिटी में कदम रखने वाले छात्रों को अन्य विश्वविद्यालयों की तरफ रुख करना पड़ रहा है। अगर इसी तरह से कच्छ यूनिवर्सिटी का मैनेजमेंट चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब कच्छ यूनिवर्सिटी पर ताला जड़ने का आदेश पारित हो जायेगा।
दीपक डांगर आगे कहते हैं, गुजरात हाईकोर्ट ने सेनेट मेंबर के चुनाव का आदेश दिया था, बावजूद इसके राजनीतिक खींचातानी के कारण कच्छ यूनिवर्सिटी में विद्यार्थियों को प्रतिनिधित्व नहीं मिल रहा है। यूनिवर्सिटी में 35 के करीब सेनेट मेंबरों की जगह रिक्त है। पिछले 2 साल से सेनेट मेंबर की मीटिंग भी नहीं बुलाई गई है और प्राध्यापकों को भी कोई प्रतिनिधित्व नहीं मिल रहा है, जबकि यूनिवर्सिटी का बजट सेनेट की मीटिंग में पास होता है।
यह वही कच्छ यूनिवर्सिटी है, जहां पर ABVP यानी अखिल भारतीय विद्याथी परिषद के छात्रों ने एक प्रोफेसर के मुंह पर कालिख पोत के उसे पूरी यूनिवर्सिटी में घुमाया था। तब से ही यहां के प्राध्यापकों में एक डर का माहौल बना हुआ है। हालांकि उस कृत्य में शामिल सारे विद्यार्थियों को एग्जीक्यूटिव काउंसिल ने सस्पेंड करने का प्रस्ताव पारित किया था, इसके बावजूद ABVP से जुड़े होने के कारण इन विद्यार्थियों पर तत्कालीन वाइस चांसलर डॉ सीबी जाडेजा ने कोई भी कार्यवाही नहीं की।
गौर करने वाली बात यह भी है कि प्रोफ़ेसर के मुंह पर कालिख पोतने वाले विद्यार्थियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज होने के बाद भी पुलिस ने भी कोई कार्यवाही नहीं की, जबकि उनमें से एक विद्यार्थी भगोड़ा घोषित होने के बावजूद उसी यूनिवर्सिटी के अंतर्गत आने वाले कॉलेज में शिक्षा प्राप्त करता रहा और सीसीटीवी कैमरे की निगरानी में परीक्षाएं भी देता रहा। सत्ता पक्ष के संरक्षण में ऐसी कई घटनाएं गुजरात में आम हो चुकी हैं।
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पूर्व सीनेट मेंबर डॉ रमेश गरवा बताते हैं कि गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी और गुजरात के शिक्षा मंत्री भूपेंद्रसिंह चूड़ासामा के बीच अपने चहेतों को वाइस चांसलर बनाने की होड़ लगी हुई है, इसलिए कच्छ यूनिवर्सिटी को पिछले 1 साल से कोई वाइस चांसलर नहीं मिल पाया। दोनों ही गुजरात सरकार में महत्वपूर्ण पदों पर होने के कारण अपने चहेतों को कच्छ यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर की कुर्सी पर बिठाना चाहते हैं, लेकिन इसका खामियाजा कच्छ यूनिवर्सिटी और छात्र भुगत रहे हैं। हालांकि एक माह पहले गुजरात के शिक्षा मंत्री ने आश्वासन दिया था कि कुछ ही दिनों में आपको नया वॉइस चांसलर मिल जाएगा, परंतु गुजरात के शिक्षामंत्री भूपेंद्र सिंह चूड़ासामा अपने वादे पर कायम नहीं रह पाए और कल 24 जनवरी को वाइस चांसलर की नियुक्ति की सर्च कमेटी को भंग कर दिया गया।
कुलपति और कुलसचिव की नियुक्ति न होने का सबसे बड़ा खामियाजा कच्छ यूनिवर्सिटी के विद्यार्थी भुगत रहे हैं। कई विद्यार्थी परीक्षाओं में पास होने के बावजूद उनको फेल किया जा रहा था, जिनकी शिकायतें होने पर कई पेपर जांचने वाले प्रोफेसरों को मेमो दिया जा चुका है। छात्रों के साथ पेपर जांचने में कोताही बरतने वाले एक भी प्राध्यापक के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं हुई है, क्योंकि सारे महत्वपूर्ण पद इंचार्ज के भरोसे चल रहे हैं। इंचार्ज कोई भी कड़े कदम उठाने से बचते हैं, जिसका खामियाजा कच्छ यूनिवर्सिटी के विद्यार्थियों को भुगतना पड़ता है।
इस मुद्दे को लेकर कच्छ जिले के सांसद विनोद भाई चावड़ा से बात की गयी तो उन्होंने कोई भी प्रतिक्रिया नहीं दी और बाद में प्रतिक्रिया दूंगा, कहकर पूरे मामले को टाल दिया।
इसी मामले में भुज के विधायक डॉक्टर नीमा बहन आचार्य से संपर्क किया गया, मगर वह भी व्यस्तता का बहाना देकर पूरे मामले से बचती हुई दिखाई दीं।
वहीं इस पूरे मामले पर गुजरात प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता और गुजरात यूनिवर्सिटी के पूर्व सीनेट मेंबर डॉक्टर मनीष दोषी कहते हैं, किसी भी यूनिवर्सिटी में विद्यार्थियों की सबसे ज्यादा अहमियत होनी चाहिए, उनकी शिक्षा की तरफ ध्यान दिया जाना चाहिए, मगर शिक्षण संस्थान पॉलिटिक्स के केंद्र बन चुके हैं। विद्यार्थियों की समस्याओं का तुरंत समाधान होना चाहिए, जिसके लिए कुलपति और कुलसचिव का होना बहुत जरूरी है।
मनीष दोषी आगे कहते हैं, गुजरात की कई यूनिवर्सिटी में कुलपति की नियुक्तियों में यूजीसी के कई नियमों का उल्लंघन किया गया है। गुजरात के हजारों योग्य प्रोफेसरों के मुकाबले जाति—धर्म, रिश्ते—नातेदारी के आधार पर कुलपति चुने गये हैं। कच्छ यूनिवर्सिटी के कुलपति के लिए भी नेतागण अपने चहेतों को बैठाने की जुगाड़ में लगे हैं।
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मनीष कहते हैं, मुख्यमंत्री और शिक्षामंत्री अपने चहेतों को वीसी की कुर्सी पर बिठाने के बजाय योग्य व्यक्ति को इस पद पर बिठायेंगे तो कच्छ यूनिवर्सिटी का विकास होगा और यूनिवर्सिटी के विकास में ही गुजरात का विकास छुपा हुआ है। शैक्षणिक संस्थानों में शासन—प्रशासन का दखल नहीं होना चाहिए। वाइस चांसलर की नियुक्ति के लिए नाम फाइनल होने के बाद भी अगर वाइस चांसलर की नियुक्ति नहीं होती है तो सत्ता पक्ष को सोचना चाहिए कि वह छात्रों के भविष्य से किस तरह खिलवाड़ कर रहे हैं।
मनीष दोषी कहते हैं, दिल्ली के जेएनयू में पढ़ रहे विद्यार्थियों का जो बौद्धिक विकास हो रहा है वैसा ही बौद्धिक विकास कच्छ यूनिवर्सिटी के विद्यार्थियों का भी होना चाहिए, जिसके लिए उन विद्यार्थियों को सारी सुविधाएं मुहैया करवाना सरकार की जिम्मेदारी है। गुजरात सरकार हाईकोर्ट के आदेशों की भी खुलेआम अवहेलना कर रही है। कच्छ यूनिवर्सिटी में विद्यार्थियों को प्रतिनिधित्व देने यानी छात्रसंघ चुनाव कराने का आदेश गुजरात हाईकोर्ट दे चुका है, लेकिन उसका पालन नहीं हो रहा जो बहुत गंभीर बात है।