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जनज्वार एक्सक्लूसिव : 8 साल पहले मोदी ने अडाणी को सौंपा था कच्छ का एकमात्र सरकारी अस्पताल, मरीज बोले हॉस्पिटल नहीं 'कत्लखाना' है
आठ साल पहले अडाणी समूह को तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने सौंपा गया था गुजरात के कच्छ का एकमात्र सरकारी अस्पताल का प्रबंधन, लेकिन स्वास्थ्य सुविधाओं का हाल बेहाल, स्थानीय लोगों ने शुरू किया आंदोलन…
कच्छ से दत्तेश भावसार की ग्राउंड रिपोर्ट
जनज्वार। गुजरात के कच्छ जिले में सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं की बात करें तो यहां की स्थिति बहुत ही चिंताजनक बनी हुई है। दरअसल कच्छ के एकमात्र सरकारी अस्पताल को 8 साल पहले अडाणी समूह को दे दिया गया था। अडाणी समूह को इसलिए दिया गया था कि वह इसका अच्छे तरीके से संचालन करेंगे और जनता को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराएंगे, लेकिन जबसे अडाणी समूह को यह सरकारी अस्पताल दिया गया, तब से स्थानीय लोगों के लिए बुरे दिन शुरू हो गए। लोगों को अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं मिल रही हैं।
मेडिकल कॉलेज अस्पताल के बिना नहीं हो सकता, इसलिए कच्छ का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल अडाणी समूह को दे दिया गया था। इसके खिलाफ आज 23 नवंबर को कच्छ के लोगों ने अस्पताल के खिलाफ बड़ा आंदोलन किया। इस आंदोलन का नेतृत्व रफीक मारा कर रहे हैं। रफीक कहते हैं, 'पिछले दशक में ऐसी कई घटनाएं घटी हैं, जिससे अडाणी समूह द्वारा संचालित अस्पताल संदेह के दायरे में आता है।'
गौरतलब है कि अडानी का अस्पताल इस साल की शुरुआत में तब भी चर्चा में आया था जब यह आंकड़ा सामने आया था कि जीके जनरल हॉस्पिटल में 5 साल के अंदर 1000 बच्चों की मौत हुई है। भुज में संचालित अडानी के जीके जनरल हास्पिटल में एक हजार बच्चों की मौत की जानकारी खुद गुजरात की बीजेपी सरकार ने दी थी।
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कांग्रेस के विधायक संतोकबेन अरेथिया की ओर से प्रश्नकाल में उठाए गए सवाल का लिखित जवाब देते हुए उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल ने बताया कि अडानी फाउंडेशन की ओर से संचालित अस्पताल में पिछले पांच साल के भीतर 1018 बच्चों की मौत हुई है। स्वास्थ्य महकमा संभालने वाले उप मुख्यमंत्री ने मौत के आंकड़े जारी करते हुए कहा कि 2014-15 में 188, 2015-16 में 187, 2016-17 में 208, 2017-18 में 276 और 2018-19 में 159 बच्चों की मौत हुई। हालांकि मौत के पीछे उन्होंने विभिन्न बीमारियों और अन्य चिकित्सा जटिलताओं को जिम्मेदार ठहराया था, मगर सच्चाई यह है कि वहां लोगों को पर्याप्त इलाज मुहैया नहीं हो पाता, जिस कारण मरीजों की मौत होती है।
अडाणी एडमिनिस्ट्रेशन की ओर से डॉ. भादरका ने जनज्वार को बताया, 'हमारे यहां न्यूरोलॉजिस्ट, कार्डियोलॉजिस्ट और एंकोलॉजिस्ट डॉक्टर मिल नहीं रहे। वह सब बड़े शहरों में प्रैक्टिस करना चाहते हैं। इसलिए वो हमारे पास नहीं आ रहे जबकि उन्होंने रफीक की बात का खंडन करते हुए बताया कि 750 बेड चालू हैं।
जब उनसे सवाल किया गया कि सरकारी अस्पताल में सभी सेवाएं और टेस्ट होते हैं, लेकिन अडाणी द्वारा संचालित अस्पताल में सभी सेवाओं का शुल्क क्यों लिया जाता है, इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि हमें सरकार जो मुफ्त में देगी, वो हम मुफ्त में ही दे रहे हैं।
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रफीक मारा ने जनज्वार से कहा, 'अडाणी सरकार के चहेते उद्योगपति हैं। उनको जबसे हमारे कच्छ का सरकारी अस्पताल सुपुर्द किया गया, आठ साल हो गए हैं। तबसे दिन-प्रतिदिन अस्पताल की हालत खराब होती जा रही है। यहां तक कि यूरोलॉजिस्ट, कार्डियोलिस्ट तक नहीं है। ट्रॉमा सेंटर की मांग कर-करके हम लोग थक गए हैं। विधायक और सांसद ने दो-दो बार उद्घाटन किया, लेकिन तीन साल बीतने बाद भी अभी तक शुरु नहीं हुआ है।
रफीक मारा आगे कहते हैं, 'हमारी मांग एक ही है कि यहां से अहमदाबाद साढ़े तीन सौ किलोमीटर की दूरी है। छह घंटे एंबुलेंस को पहुंचने में लगते हैं। आज की तारीख में जितने मरीज अहमदाबाद रेफर किए गए हैं उनमें से 60 प्रतिशत वापस नहीं लौटे हैं। हम कच्छ के लोग जो सीमा पर रहते हैं, कोई सुविधा नहीं है, लोगों को इतना दूर जाना पड़ता है, तो क्या यहां अडाणी सिर्फ कमाने के लिए बैठे हैं।
रफीक कहते हैं, 'यहां अडाणी कॉलेज और उद्योग चला रहे हैं। सिर्फ कॉलेज की बात करें तो उन्हें सरकार से 150 करोड़ की ग्रांट मिल रही है। दवा भी सरकार दे रही है फिर भी वह खर्च नहीं करना चाहते हैं। सीआरएस के मुताबिक उनको 25 से तीस करोड़ खर्च करना हैं वो तो नहीं खर्च कर रहे हैं। उनका मकसद सिर्फ और सिर्फ कमाना है और कच्छ के लोगों को धोखा देना है। वह कच्छ के लोगों को मरने के लिए मजबूर कर रहे हैं। मैं तो यह कहता हूं कि ये अडाणी अस्पताल कोई अस्पताल नहीं है, एक कत्लखाना है।
भुज का एक स्थानीय निवासी कहता है, 'जब मैं अपने बीमार बेटे को अमरजेंसी में लेकर गया था तो 45 मिनट तक कोई इलाज नहीं दिया गया। बच्चे की हालत खराब हो रही थी इसलिए मुझे मेरे बेटे को प्राइवेट अस्पताल में ले जाना पड़ा। इस संबंध में कई बार शिकायत दर्ज करवाने के बावजूद अस्पताल प्रशासन ने कोई कार्रवाई नहीं की, बल्कि यूं कहें कि इस तरह सिकायते दर्ज कराने के बाबजूद कोई कार्यवाही आज तक नहीं हुई है, बल्कि यूं कहें कि रोज यह न जाने कितने मरीजों के परिजनों को झेलना पड़ता होगा।'
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रफीक के मुताबिक '1200 करोड़ की जमीन और 500 करोड़ का पूरा तैयार स्ट्रक्चर इसलिए अडाणी को दिया गया था कि वह कच्छ के लोगों की सेवा करें। मैं यही बताना चाहता हूं कि आप लोग जब भी कच्छ के लोगों के बारे में नहीं सोचते हो, केवल अपने बारे में सोचते हो, तो कुदरत भी नाराज होती है। आज लोगों का जो हुजूम था, सभी को कोई न कोई तकलीफ थी। किसी न किसी के घरवालों को तकलीफ थी। हमें अपना सरकारी अस्पताल वापस चाहिए। हमें अ़डाणी का यह अस्पताल नहीं चाहिए।'
वहीं लालजी ठाकोर के अनुसार, इमरजेंसी में मरीजों को लाने के बाद कई घंटों तक मरीजों का इलाज शुरू नहीं होता और इस से तंग आकर मरीजों के परिजनों के पास निजी अस्पतालों में जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं होता और निजी अस्पताल लूट मचाते हैं।
एक बीमार बुजुर्ग के परिजन कहते हैं, सरकारी अस्पताल में वरिष्ठ नागरिकों (Senior Citizens) को सारी दवाइयां और सारी सेवाएं मुफ्त में मिलनी चाहिए, लेकिन वह अपने पिताजी को अस्पताल में लेकर गया तब उनसे भारी शुल्क वसूला गया, जिसका विरोध करने पर उनको मरीज को कहीं ओर ले जाने के लिए कह दिया गया। वह एक सरकारी कचहरी के पास चाय की दुकान चलाते हैं, इसलिए वह अपना नाम गुप्त रखना चाहता है, ताकि उनको अपने धंधे में कोई परेशानी न हो।
यह हाल तब है जब भुज के विधायक डॉ. निमाबेन आचार्य ने एक कार्यक्रम में अडानी की तारीफ करते हुए कहा था कि इतने बड़े अस्पताल का बिजली का बिल भी कोई नहीं भर पाएगा। तब तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री और मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जबरन यह सरकारी अस्पताल अडाणी ग्रुप को चलाने के लिए दिया।