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आंदोलन

काला पानी की सजा बनकर रह गयी है यूपी के मजदूरों की जिंदगी गुजरात में

Prema Negi
9 May 2020 3:09 PM GMT
काला पानी की सजा बनकर रह गयी है यूपी के मजदूरों की जिंदगी गुजरात में
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आजमगढ़ के राजापुर सिकरौर के सिकंदर बिंद जीआईडीसी अंकलेश्वर, भरुच में 60 मजदूरों के साथ फंसे हैं। एक कमरे में सात-सात लोग रह रहे हैं, खाने को भोजन तक नहीं मिल पा रहा, इसलिए ये मजदूर किसी भी हाल में अपने घर पहुंचना चाहते हैं...

लखनऊ जनज्वार। कोरोना के चलते हुए लॉकडाउन के बीच मजदूरों की दुर्दशा की खबरें पूरे देशभर से आ रही हैं। बेरोजगार और भूखे मजदूर हजारों की संख्या में सैकड़ों किलोमीटर पैदल घर पहुंचने को मजबूर हैं। राज्य और केंद्र सरकारें दोनों उन्हें उनके घर पहुंचाने का वादा कर रही हैं, मगर यह सिर्फ लॉलीपॉप साबित हो रहा है। या फिर जहां तक उन्हें छोड़ा जा रहा है, वहां से उनके गांवों तक पहुंचना भी एक बड़ी चुनौती है।

जिन मजदूरों को ट्रेन या बसों के जरिये उनके घरों तक छोड़ा भी गया है, उसमें भी कई तरह के घपले नजर आये। सरकार की तरफ से कहा गया कि उन्हें मुफ्त में घर तक पहुंचाया जायेगा या जा रहा है, जबकि मजदूर बतौर सबूत ​अपने टिकट दिखाये, जिसमें उनसे किराये से कई ज्यादा रकम वसूली गयी है। बाकी जो मजदूर रोटी-रोटी को मोहताज हैं वो भूखे-प्यासे पैदल ही अपने घरों की तरफ निकल पड़े हैं, कई की रास्ते में इस दौरान मौत हो गयी है तो कई अन्य तरह की दुर्घटनाओं के शिकार हुए।

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से में सामाजिक-राजनीतिक संगठन रिहाई मंच ने गुजरात के मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर आजमगढ़ के मजदूरों की घर वापसी सुनिश्चित करने की मांग करते हुए पूर्वांचल के विभिन्न जिलों के लिए विशेष गाड़ियां चलाने और यात्रा को निःशुल्क यात्रा किए जाने की मांग की है।

रिहाई मंच अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि मजदूर इस बात से काफी चिंतित हैं कि अगर उन्हें लखनऊ, वाराणसी, गोरखपुर या अन्य किसी जगह छोड़ा गया तो उन्हें फिर वहां से घर जाने में समस्या होगी। सरकार से संवाद के विभिन्न माध्यम जैसे ट्वीटर, डिजिटल गुजरात पोर्टल और नोडल आफिसर सक्रिय नहीं हैं।

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गौरतलब है कि पूर्वांचल के लोग बड़ी संख्या में गुजरात में मजदूरी करते हैं। आजादी के बाद से गुजरात के विकास में उत्तर प्रदेश के मजदूरों का अहम योगदान रहा है और आज इस वैश्विक संकट के समय में उनकी सहायता करना गुजरात सरकार का कर्तव्य है। इसका निर्वहन करते हुए आजमगढ़ के मजदूरों और पूर्वांचल के विभिन्न जनपदों के लिए विशेष ट्रेनों की व्यवस्था की जाए। पहले से आर्थिक तंगी झेल रहे इन मजदूरों से किराया न लेकर इस विषय में उत्तर प्रदेश सरकार और भारतीय रेल से संवाद कर निःशुल्क यात्रा सुनिश्चित की जाए।

गुजरात सरकार से रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने अपने पत्र में मांग की है कि उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के बहुत से निवासी गुजरात में लॉकडाउन के कारण फंसे हुए हैं। कंपनियों की बंदी और राशन की अनुपलब्धता के चलते वो घर वापसी को विवश हैं। अब जब वे घर वापस आना भी चाहते हैं, तो भी सरकार किराया लेने के बाद भी उन्हें घर तक नहीं छुड़वा रही। गुजरात में यूपी के मजदूरों की जिंदगी कुल मिलाकर कालापानी की सजा बनकर रह गयी है।

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निजामाबाद के सकूरपुर गांव के मजदूर इंदल यादव सूरत में अपने 54 साथियों के साथ सचिन जीआईडीसी शिवनगर में फंसे हैं। इंदल कहते हैं, वे तीन बार अपनी घर वापसी के लिए फार्म भर चुके हैं और उसे ग्राम पंचायत, सरपंच और जनप्रतिनिधि को सौंप चुके हैं। फिर उन्होंने 6 मई को सरदार चौक जाकर फार्म भरा जिसमें केवल 27 लोगों का नाम भरा जा सकता था। साथ ही आधार कार्ड की फोटोकापी भी लगा दी। अन्य 27 साथी दूसरे ग्रुप में फार्म भरेंगे।

न्हें प्रशासन की तरफ से बताया गया कि 750 रुपए प्रतिव्यक्ति जमा करने होंगे और एक-दो दिन में उन्हें मैसेज आ जाएगा। गाड़ी वाराणसी तक जाएगी। आजमगढ़ जिलाधिकारी के पास भी दो बार फोन से शिकायत दर्ज की गई। स्थानीय विधायक से भी बात हुई, लेकिन कोई समाधान नहीं निकला। 8 मई को सुबह 10 बजकर 15 मिनट पर इंदल यादव के पास फोन आया कि उन लोगों का फार्म रिजेक्ट हो गया क्योंकि उस पर तहसील और ग्राम का कॉलम नहीं था। बहरहाल, दूसरा फार्म भरा और प्रतिव्यक्ति 750 रुपए के हिसाब से बीस हजार दो सौ पचास रुपए जमा किए। दो दिन इंतजार करने को कहा है कि फोन द्वारा सूचित करेंगे।

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सूरत के ही गुरु कृपा नगर बड़ौत गांव जीआईडीसी पाण्डेसरा में फंसे आजमगढ़ के जमालपुर के सूर्य प्रकाश मौर्या के साथ 40 लोग हैं। उन्होंने भी आनलाइन फार्म भरा था, लेकिन अब तक नहीं पता कि उसका क्या हुआ। 6 मई को फिर 20-20 लोगों के दो फार्म भरे। इसकी कोई रसीद नहीं दी गई। कहा गया कि आजमगढ़ के लिए गाड़ी की सूचना एक-दो दिन में मोबाइल से दे दी जाएगी। प्रति व्यक्ति किराया 800 रुपए लगेगा।

जमगढ़ के ही राजापुर सिकरौर के सिकंदर बिंद जीआईडीसी अंकलेश्वर, भरुच में 60 मजदूरों के साथ फंसे हैं। एक कमरे में सात-सात लोग रह रहे हैं।

स संबंध में जब आजमगढ़ जिलाधिकारी से संपर्क किया गया तो इनसे आधार कार्ड, पता और फोन नंबर पूछकर स्थानीय थाने से संपर्क करने को कहा गया। अंकलेश्वर थाने गए जहां भीड़ बहुत थी तो ईमेल आईडी नोट कराया। दूसरे दिन पंचायत भवन जाकर 6 मई को रजिस्ट्रेशन करवाया, जहां कहा गया कि दो दिन में स्लिप आएगी। लोकल स्टेशन अंकलेश्वर है, पर सूरत से भेजा जाएगा, किराया 600 रुपए लगेगा। अंकलेश्वर से बस का 100 रुपए और 100 रुपए मेडिकल चेकअप का लगेगा। दूसरे दिन बताया कि अंकलेश्वर से सीधे गाड़ी लखनऊ जाएगी।

जमगढ़ के जीयनपुर के असदउल्लाह नवसारी में नौकरी की तलाश में गए थे और लॉकडाउन में फंसे हुए हैं। ट्वीटर पर डीएम आजमगढ़, सीएमओ गुजरात, सीएमओ यूपी, नवसारी के सांसद सी आर पाटिल, मुख्यमंत्री विजय रुपानी से शिकायत की गयी।

यूपी सरकार द्वारा नियुक्त किए गए नोडल आफिसर को भी फोन किया। डिजिटल गुजरात पोर्टल साइट पर 4 मई को ट्रेन या बस से सफर के लिए आग्रह किया गया, जिसका कन्फर्मेशन भी आया। फिर कोई सूचना नहीं मिली। नवसारी से कैसे सूरत जाएंगे उनको कुछ पता नहीं और वे आजमगढ़ ही जाना चाहते हैं। कहते हैं कि कहीं वाराणसी या अन्य जगह छोड़ दिया तो कैसे फिर घर जाएंगे।

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