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राजनीति

कश्मीर में आतंक का पैगाम लेकर आती हैं रातें

Prema Negi
21 Sep 2019 6:41 AM GMT
कश्मीर में आतंक का पैगाम लेकर आती हैं रातें
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कश्मीर के दर्जनभर गांवों में 50 से ज्यादा साक्षात्कारों में लोगों ने बताया कि 5 अगस्त को भारत सरकार के सुरक्षा घेराबंदी करने के बाद सैनिकों ने उनके घरों पर छापे उन्हें मारा, बिजली के झटके दिए, उनके घरों की महिलाओं/लड़कियों को उठा ले जाने और उनसे शादी करने की धमकी दी, हज़ारों युवाओं को गिरफ्तार किया...

एजाज़ हुसैन की रिपोर्ट

केंद्र सरकार द्वारा कश्मीर से राज्य का दर्जा छीनने के कुछ दिन बाद, भारतीय सैनिक बशीर अहमद दर के दक्षिणी कश्मीर स्थित घर पर 10 अगस्त को टूट पड़े। इस 50 वर्षीय प्लम्बर ने बताया कि अगले 48 घंटों में सैनिकों ने उसे दो बार पीटा।

ह उनसे उनके छोटे भाई के बारे में पूछ रहे थे, जो कि क्षेत्र में भारत की उपस्थिति का विरोध करने वाले बागियों से जुड़ गया था, और कहा कि अगर उससे आत्मसमर्पण नहीं करवाया तो "अंजाम बुरा होगा..."

दर ने बताया कि दूसरी बार यातना दिए जाने पर तीन सैनिकों ने उन्हें तब तक डंडों से पीटा जब तक वह बेहोश न हो गए। जब उन्हें होश आया तो वो अपने घर पर थे। उन्होंने बताया, "खून से लथपथ, घावों से भरे कूल्हों और पीठ में दर्द के कारण मैं बैठ नहीं पा रहा था।"

र बात वहीं ख़त्म नहीं हुई। 14 अगस्त को सैनिक फिर उसके हेफ्फ़ श्रीमाल गाँव में लौटे और उनके घर में चावल और खाने-पीने के अन्य सामान में उर्वरक और केरोसीन डालकर खराब कर दिया।

भारतीय सैनिकों की तरफ से हिंसा और धमकाने की दर की आपबीती असामान्य नहीं है। कश्मीर के दर्जन भर गांवों में 50 से ज्यादा साक्षात्कारों में लोगों ने एसोसिएटेड प्रेस को बताया कि 5 अगस्त को भारत सरकार के सुरक्षा घेराबंदी करने के बाद सैनिकों ने उनके घरों पर छापे मारे हैं। उन्होंने बताया कि सैनिकों ने उन्हें मारा है, बिजली के झटके दिए हैं, कचरा खाने को अथवा गन्दा पानी पीने को मजबूर किया है, उनके खाने के सामान को विषैला बनाकर खराब किया है, उनके पालतू पशुओं को मारा है और उन्हें उनके घरों की महिलाओं/लड़कियों को उठा ले जाने और उनसे शादी करने की धमकी दी है। हज़ारों युवाओं को गिरफ्तार किया गया है।

रोपों के बारे में एपी ने भारतीय सेना की उत्तरी कमान से पूछा जिसका कि मुख्यालय जम्मू कश्मीर में है। श्रीनगर में इसके प्रवक्ता कर्नल राजेश कालिया ने ग्रामीणों के आरोपों को "पूरी तरह से बेबुनियाद और गलत" बताया और दावा किया कि भारतीय सेना मानवाधिकारों का सम्मान करती है।

26 अगस्त 2019 के इस तस्वीर में परिगाम के सोनाउल्लाह सोफी अपने बेटे की कमीज़ उठाकर यातनाओं के निशान दिखा रहे हैं। (फोटो क्रेडिट : ऐजाज़ हुसैन, एपी न्यूज़)

कालिया ने कहा, "जिन क्षेत्रों में एपी ने दौरा किया था, वहां आतंकवादियों की गतिविधियों की रिपोर्टें थीं। कुछ युवाओं पर देशद्रोही और तोड़फोड़ की गतिविधियों में संलिप्त होने का संदेह था और उन्हें क़ानून के मुताबिक़ पुलिस के हवाले किया गया।"

भारत के शीर्ष सुरक्षा अधिकारी, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने कहा, सेना को कश्मीर में ऑपरेशन में शामिल नहीं किया गया है। उन्होंने कहा, "कोई ज़्यादतियां नहीं हुई हैं।"

श्मीर निवासियों और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार समूहों के आरोप हैं कि सालों से भारतीय सुरक्षा बल उन लोगों को अनुचित तरीके से गिरफ्तार करने के साथ यातनाएं देते हैं जो नयी दिल्ली से शासित होने का विरोध करते हैं। क्षेत्र पर भारत और पाकिस्तान दोनों का दावा है।

लेकिन पिछले पांच सप्ताह से, जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हिन्दू राष्ट्रवादी सरकार ने क्षेत्र का विशेष दर्जा छीन लिया और कर्फ्यू तथा संचारबंदी लगा दी, गुस्सा और डर बढ़ रहा है। हालांकि श्रीनगर में कुछ पाबंदियां बाद में हटाई गयी हैं और छात्रों को स्कूल वापसी के लिए व दुकानदारों को दुकानें खोलने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है, मिलिटेंसी, बगावत तथा असहमति को दबाने के लिए चलाये जा रहे हिंसा और डराने-धमकाने के अभियान की ग्रामीण शिकायत कर रहे हैं।

गभग 200 लोगों से हुई बातचीत के अनुसार कश्मीर में नई दिल्ली की कार्रवाई के साथ ही अगस्त की शुरुआत में रातों के छापे और यह प्रताड़ना शुरू हुई। दर्जे में परिवर्तन से वह दशकों पुराने संविधानिक प्रावधान समाप्त हो गए जो जम्मू और कश्मीर को कुछ राजनीतिक स्वायत्तता और ज़मीन पर उत्तराधिकार देते थे। इस कदम ने क्षेत्र से राज्य का दर्जा छीन कर इसे दो केंद्र शासित क्षेत्रों में भी बदल दिया। इन कारवाईयों को देश के सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गयी है।

रिगाम गाँव में बेकरी चलाने वाले सोनाउल्लाह सोफी का परिवार सोया हुआ था, जब सेना के जवानों ने उनके घर पर छापा मारा। सोफी ने बताया कि सैनिक उनके दो बेटों को बन्दूक के कुंदों, ज़ंजीरों और डंडों से पीटते हुए सड़क पर ले गए।

सोफी ने कहा, "लाचार होकर मैं अपने बेटों की चीखें सुनता रहा, जब सैनिकों ने उन्हें बीच सड़क पर पीटना शुरू किया।"

7 अगस्त की घटना के बारे में बताते हुए सोफी के 20 वर्षीय बेटे मुज़फ्फर अहमद ने कहा कि तुरंत बाद सैनिक 10 और युवकों को गाँव के चबूतरे पर लाये और उनसे भारत विरोधी प्रदर्शनकारियों के नाम पूछने लगे।

कश्मीर के दक्षिण करीमाबाद गांव में इस परिवार के एक युवा लड़के को रात के छापों में उठा लिया गया और अब उसे आगरा जेल में डाल दिया गया है (फोटो क्रेडिट-ऐजाज़ हुसैन, एपी न्यूज़)

हमद ने अपनी जली हुई, घावों से भरी पीठ दिखाने के लिए अपनी कमीज़ उठाते हुए कहा, "उन्होंने तीन घंटे तक हमारी पीठ और टांगों पर मारा। उन्होंने हमें बिजली के झटके दिए। जब हम रो रहे थे और उनसे छोड़ देने की अपील की तो वह और बेरहमी से हमें पीटने लगे। उन्होंने हमें मिट्टी खाने और नाले से पानी पीने को मजबूर किया।"

पुलिस अधिकारियों और एपी के दस्तावेज़ों की समीक्षा के अनुसार कारवाई शुरू होने के बाद से कम से कम 3000 लोग, जिनमें अधिकांश युवा हैं, गिरफ्तार किये गए हैं। दस्तावेज़ों के अनुसार उनमें से 120 पर पब्लिक सेफ्टी एक्ट लगाया गया है, जो दो साल तक बिना मुक़दमे के जेल में रखने की अनुमति देता है।

ज़ारों अन्य को पुलिस कोठरियों में हिरासत में लिया गया है, यह जांच करने के लिए कि उनमें प्रदर्शनों में शामिल होने की सम्भावना तो नहीं है। कुछ को रिहा किया गया है और कुछ दिनों बाद आकर रिपोर्ट करने को कहा गया है। कुछ को दिन में रखा जाता है और रात को घर जाने दिया जाता है पर अभिभावकों को इस हिदायत के साथ कि अगले दिन उन्हें वापस लेकर आयें।

बेकरी वाले अहमद ने बताया, सैनिक सुबह चले गए उन्हें दर्द से छटपटाता छोड़कर। वह और उनके भाई के साथ कम से कम आठ और को एक एम्बुलेंस में डालकर श्रीनगर के अस्पताल ले जाया गया।

श्मीर को लेकर विवाद 40 के दशक से रहा है, जब भारत और पाकिस्तान को अंग्रेज़ी शासन से मुक्ति मिली थी। कश्मीर को लेकर दोनों देशों ने तीन युद्ध लड़े हैं और दोनों क्षेत्र के एक-एक क्षेत्र को प्रशासित करते हैं।

शुरू में केंद्र सरकार ने अपने हिस्से के कश्मीर में लगभग शंतिपूर्ण भारत विरोधी प्रदर्शनों का सामना किया। लेकिन बाद में राजनीतिक भूलों की श्रृंखला, तोड़े गए वादों और असहमति को कुचलने के लिए क्रैकडाउन ने संघर्ष को तेज़ किया और 1989 में इसने पूरी तरह से भारतीय नियंत्रण के खिलाफ सशस्त्र बगावत का रूप अख्तियार कर लिया और एक सयुंक्त कश्मीर, या तो पाकिस्तान के तहत या फिर दोनों से स्वतंत्र की मांग होने लगी। तब से संघर्ष, जिसे भारत पाकिस्तान की तरफ से छेड़े गए छद्म युद्ध की तरह देखता है, में करीब 70,000 लोग मारे जा चुके हैं, क्षेत्र दुनिया के सर्वाधिक सैन्यीकृत क्षेत्रों में से एक माना जाता है और सैनिकों, अर्धसैनिक बलों की निगरानी में है। अधिकांश कश्मीरी भारतीय सैन्य उपस्थिति का विरोध करते हैं और बागियों का समर्थन करते हैं।

र अब, कश्मीर में नयी पीढ़ी ने उग्रवाद को फिर से उभारा है और नई दिल्ली के शासन को बंदूकों व सोशल मीडिया के ज़रिये चुनौती दी है। फरवरी में एक कश्मीरी आत्मघाती ने विस्फोटकों से भरी वैन एक भारतीय अर्धसैनिक काफिले में घुसा दी जिसमें 40 से अधिक सैनिक मारे गया और दो दर्जन के करीब घायल हो गए। उस समय मोदी ने कहा था कि सरकारी सेनाओं को उग्रवादियों से निबटने के लिए "पूरी आज़ादी" दी गयी है।

सालों से, मानवाधिकार समूह भारतीय सैनिकों पर आबादी को शारीरिक व यौन उत्पीड़न और गैर-न्यायोचित गिरफ्तारियों से नियंत्रित करने के आरोप लगाते रहे हैं। भारतीय अधिकारी इसे झुठलाते हैं और आरोपों को पृथकतावादी दुष्प्रचार बताते हैं।

1989 से अधिकार समूहों की तरफ से लगाए जा रहे उत्पीडन के आरोपों में बलात्कार, जबरन सोडोमी (पुरुषों का बलात्कार), चेहरे पर पानी की तेज़ धार छोड़ना, अंगों पर बिजली के झटके देना, जलाना और नींद से वंचित करना शामिल है।

संयुक्त राष्ट्र ने कश्मीर में बलात्कार, टॉर्चर और न्यायेत्तर मौतों के आरोपों की पिछले साल स्वतंत्र अंतरराष्ट्रीय जांच की मांग की थी, भारत ने रिपोर्ट को "गलत" कहकर खारिज कर दिया।

मानवाधिकार वकील परवेज़ इमरोज़ ने कहा कि सुरक्षा बलों के चल रहे अभियान में प्रताड़ना की ताज़ा ख़बरें 'व्यथित करने वाली' हैं।

कश्मीर के दक्षिण करीमाबाद गांव में वृद्ध आदमी मोहम्मद अब्दुल्लाह के पोते को उठा लिया गया और अब अब उसे आगरा जेल में डाल दिया गया है। साथ में उनकी बेटी और परिवार के अन्य सदस्य। (फोटो क्रेडिट : ऐजाज़ हुसैन, एपी न्यूज़)

सेब के बागों वाले गावों में शामों को, खासकर सूरज ढलने के बाद, जब सैनिक आते हैं, डर और आक्रोश स्पष्ट महसूस होता है।

60 वर्षीय अब्दुल घनी दर ने बताया कि अगस्त के शुरू होने से लेकर अब तक सैनिक उनके मर्हंग गाँव स्थित घर में सात बार छापे मार चुके हैं और उनके आने से पहले वह अपनी बेटियों को कहीं और भेज देते हैं।

आंसुओं से भरी आँखों से दर कहते हैं, "वह कहते हैं कि वह मेरे बेटे को देखने आये हैं, पर मुझे पता है कि वह मेरी बेटी के लिए आ रहे हैं।"

तीन अन्य गाँवों के लोगों ने कहा कि सैनिकों ने उन्हें परिवारों की लड़कियां शादी के लिए ले जाने की धमकी दी।

रिहल के निवासी नज़ीर अहमद भट कहते हैं, "वह हमारे घर और चूल्हे किसी विजयी सेना की तरह रौंद रहे हैं और इस तरह व्यवहार कर रहे हैं जैसे उनका हमारी जिंदगियों, संपत्ति और इज्ज़त पर अधिकार है।"

गस्त की शुरुआत में रफीक अहमद के घर पर सैनिक उस समय आये थे जब वह घर पर नहीं थे।

न्होंने बताया, "सैनिकों ने मेरी पत्नी को घर की तलाशी लेते समय उनके साथ रहने को कहा, जब उन्होंने इनकार किया तो उन्हें बन्दूक के कुंदे और डंडों से पीटा गया। लोन ने बताया कि उनकी पत्नी को पीटने के साथ ही सैनिकों ने उनके मुर्गे को मार डाला।

(एसोसिएटेड प्रेस के लिए ऐजाज़ हुसैन और एमिली शमल की यह रिपोर्ट 14 सितम्बर 2019 को 'एपी न्यूज़' पर छपी थी। इसका अनुवाद कश्मीर खबर ने किया है।)

मूल रिपोर्ट : Kashmiris allege night terror by Indian troops in crackdown

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