Begin typing your search above and press return to search.
समाज

कोई बताए इस पहाड़ में मानव कैसे रहे

Janjwar Team
13 Jun 2018 8:03 AM IST
कोई बताए इस पहाड़ में मानव कैसे रहे
x

गांव के पास ही एक गधेरे में दीवानी राम के बच्चे का अधखाया शव मिला। इस गांव में तीन महीने पहले भी तीन साल के करन को गुलदार उठा ले गया था, मगर वन विभाग के अपने नियम हैं जब तक गुलदार एक से अधिक लोगों को मार न डाले तब तक उसे आदमखोर घोषित नहीं किया जाता...

चंद्रशेखर जोशी, वरिष्ठ पत्रकार

दीवानी राम का परिवार और जानवर इसी छत के नीचे रहते हैं। 11 जून की रात गुलदार उनके सात साल के बेटे को आंगन से उठा ले गया।

दीवानी राम का गांव उत्तराखंड के बागेश्वर जिले में गरुड़ के पास है। इस गांव के एक छोर में हरिजन बस्ती रहती है। दीवानी राम 80 फीसदी विकलांग हैं। घर में पत्नी और दो बेटे रहते थे। रात सात साल के छोटे बेटे दीपक को आंगन से गुलदार उठा ले गया। जब शोर सुना तो गांव वाले भी पहुंच गए। गुलदार का पीछा किया पर वह जंगल में भाग निकला।

कुछ समय बाद वन विभाग के कर्मचारी, पुलिस भी पहुंची, लेकिन बच्चा नहीं मिला। सुबह गांव के पास ही एक गधेरे में बच्चे का अधखाया शव मिला। इस गांव में तीन महीने पहले भी तीन साल के करन को गुलदार उठा ले गया था।

वन विभाग के अपने नियम हैं। जब तक गुलदार एक से अधिक लोगों को मार न डाले तब तक उसे आदमखोर घोषित नहीं किया जाता। गांव वालों ने विरोध किया तो करन की मौत के बाद कुछ दिन गांव के आसपास पिंजरे लगा दिए गए। गुलदार नहीं फंसा तो पिंजरे उठा लिए। अब यहां का कोई भी आदमी घरों से बाहर निकलने की हिम्मत नहीं जुटा रहा है।

दीवानी राम के घर में तीन जानवर हैं। इस कमरे में एक बिजली का बल्ब टंगा है। यह बल्ब कुछ दिनों पहले गांव के ही किसी व्यक्ति ने उन्हें दिया था। परिवार छोटा है पर गुजारा करना संभव नहीं। घर में राशन नहीं, दलित समुदाय के पास पहाड़ों में खेत हैं ही नहीं। कुछ लोगों के खेतों में अनाज बोते हैं, पर वह उगता नहीं।

इन गांवों से पलायन रोकने के लिए सरकार ने पलायन आयोग गठित कर दिया है। करोड़ों रुपए खर्च कर सर्वे हो रहे हैं। दिल्ली से बता तो ये भी रहे हैं कि करोड़ों गरीबों के लिए घर बन रहे हैं, लेकिन यहां हर गांव नरक बन कर उजड़ रहा है। शहरों में रहने वाले लोग गांव छोड़ने वालों को कोसते हैं। बेसहारा लोगों को जंगली जानवरों के बीच में जबरन बैठे रहने की नसीहतें देने वालों की कमी नहीं है।

ये तफरीह करने की जगह नहीं है, ये पहाड़ अब रोता है।

Next Story

विविध