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जनज्वार विशेष

क्या प्रधानमंत्री ने आज हत्या, हिंसा और भक्तों की गुंडागर्दी नियंत्रित करने वाला योग भी कराया

Janjwar Team
21 Jun 2018 3:15 AM GMT
क्या प्रधानमंत्री ने आज हत्या, हिंसा और भक्तों की गुंडागर्दी नियंत्रित करने वाला योग भी कराया
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एकाएक मैं सड़क पर निकला तो देखा लोग 500 से लेकर 5000 तक का योगा मैट खरीद रहे हैं, तो मैं पूछ बैठा तो यह क्यों खरीद रहे हैं, तो लोग मुझे ऐसे देखने लगे जैसे मैंने सर्जिकल स्ट्राइक का कोई बड़ा सबूत मांग लिया हो...

सुशील मानव

और दिनों के मुकाबले बाज़ार में आज चहल—पहल कुछ ज्यादा थी। जैसे कोई बड़ा त्यौहार हो, पर ईद बीते तो अभी एक सप्ताह भी नहीं हुआ। होली पर खत्म हुआ हिंदुओं का त्योहार सावन की गुड़िया (नागपंचमी) से ही शुरू होता है। जैन, बौद्ध, सिक्ख, ईसाई, पारसी समेत और किसी धर्म का कोई त्योहार इधर है नहीं, न ही कोई राष्ट्रीय त्योहार है फिर ये इत्ती मगज़मारी क्यों चल रही है ब़ाजार में!

मदर डे, फादर डे जैसे आयातित बाजारवादी त्योहार भी बीत गए। फिर कौन सा त्यौहार है? 500-5000 के प्राइस टैग वाले रंग-रंग के योगा-मैट और योगा ड्रेसों से बाज़ार सजा खड़ा है। नवधनाढ्य मध्यवर्ग जी जान से इसकी खरीददारी में जुटा हुआ है।

धृष्टता करके मैंने एक जन से पूछ ही लिया,-‘भाई जी कल कोई त्योहार-व्यवहार है क्या? ये आज इतनी चहल पहल क्यों है बाज़ार में?’ मैं अभिव्यक्त नहीं कर सकता, उस शख्स ने मुझे भयानक नजरों से यूँ घूरा ज्यों मैंने सर्जिकल स्ट्राइक का सबूत माँग लिया हो।

तभी बगल में खड़ी एक मोहतरमा मुझे लानत मलानत देने लगी, ‘धिक्कार है आप जैसों को।’ मैने मदर-डे की तारीख स्मृतियों में फिर से खंगाली कि कहीं महिला मुझसे सरे-बाजार दूध के कर्ज का हिसाब ने माँगने लगे। खैर ये तो पक्का था कि कल मदर डे नही है, अर्थ डे भी नहीं है। गंगा माँ डे (गंगा दशहरा) भी बीत ही गया है।

मैं दहशत में आ गया कि कहीं मॉब लिचिंग के मद्देनज़र कोई गौ-माता डे तो नहीं लांच हुआ बाजार में। खैर मोहतरमा कुछ नरमदिल निकलीं वर्ना तो आजकल लाल कपड़े पहनना भी राष्ट्रद्रोह हो गया है। उन्होंने हाथ पैर कुछ न उठाया, बस मेरी राष्ट्रीय दृष्टि की मजे मलम्मत ले लेकर बोली, ‘फिर तो राष्ट्रगान भी न जानते होंगे।’

मैंने कहा, ‘जी पूरा याद है, मुँहजबानी, कहिए तो गाकर सुना दूँ। यहाँ मेरे बीस पड़ते ही मोहतरमा बैकफुट पर आ गई। पर तभी दूसरे भाई लोग चढ़ बैठे। ‘कल चौथा अंतराष्ट्रीय योग दिवस है।’ मैं सनाका खा गया तीन कब हुए।

कपड़े से तमीजदार लग रहे लड़कों को मुझ पर रौब आ गया, बोले कम्युनिस्ट हो का बे? मैंने नहीं में सिर हिलाया दूसरा बोला तो क्या मुसलमान हो? मैंने फिर नहीं में सिर हिलाया? लंबे कद वाला लड़का बोला पक्का चमार होगा साला। मैंने फिर नहीं में सिर हिलाया। मैंने कहा कि मैं रिक्शा चलाता हूँ। उसमें से एक ने आपिया चूतिया है कहकर फिरकी ली। मुझसे हाँ-नहीं कुछ न कहते बना।

एक ने कहा छोड़ लेबर क्लास का है, योगा ऐसे वैसों के लिए थोड़े ही है। पता नहीं दुकानवाले को मुझपर दया उमड़ आई या कि अपनी दुकान के सामने बवाल होने और पुलिस थाना कचहरी के चक्कर में फँसने का भय, जाने किस गरज से सहानुभूति दिखाते हुए बोला अरे भाई जाने दो गँवार आदमी है वो, काहे उसको मुँह लगाते हो। और फिर वो सब मेरे गँवारपने पर हँसते, थूकते, पादते खंखारते आगे निकल लिए। दुकानवाले के करम से मैं आउटरेज का शिकार होते होते बचा।

तभी अब तक पीछे रह गई एक मैडम मुझ दीन-हीन-गरीब पर अपना ज्ञान कुंड धकेलते हुए कहने लगी योगा करने से तन मन और आत्मा स्वस्थ होती है। खिसियाकर मैंने पूछ ही लिया- योग से समाज और देश भी स्वस्थ होता है क्या? माने जब से योग दिवस आया है देश में तबसे ज्यादा लोग मारे गए हैं मॉब लिचिंग तथा सांप्रदायिक व जातीय हिंसा में। योग से मन स्वस्थ्य होगा तो क्या अब नफरत, हिंसा और हत्या की राजनीति करने वाले अपनी विचारधारा बदल लेंगे।

ग़र योग से आत्मा स्वस्थ्य होती है तो क्या अब तक कि करवाए गए हत्याओं और दंगों के लिए माफी माँगकर वो तमाम हत्याओं का प्रायश्चित करेंगे? क्या वे अखलाख और रोहित वेमुला से माफी माँगेंगे। मुझे दीन हीन जानकर अनुगृहीत करने वाली मैडम मेरी उद्दंडता पर मुझे खा लेने वाली नजरों से घूरते हुए कार में बैठी और निकल लीं। मुझे अपनी गलती का एहसास बार बार हो रहा कि क्यों मैं आज आत्महत्या पर आमादा हूँ।

अगले रोज देर से सोकर उठा। गली मोहल्ले के हर टीवी रेडियो अखबार में योग ही योग छाया हुआ देखता जा रहा हूँ। मंतरी से लेकर संतरी और प्रधानसेवक तक। टाटा से लेकर वेदांता तक, खिलाड़ी से लेकर बॉलीवुड के हीरो हीरोइन तक सबके सब योग पेल रहे थे।

मैं नहीं समझ पा रहा कि मेरे देश को ये नई बीमारी कैसे लग गई। मैं सोच रहा कि कैसे लोगो को योग बेचकर बाजार के सबसे बड़े ब्रांड बने लालू-मुलायम के समाजवाद का विरोधी एक यादव खिचड़ी दाढ़ी और भगवा लँगोटी में देश की अर्थव्यवस्था को कपालभांति करवा रहा है। लाला रामदेव को गोल गोल पेट घुमाते देखा तो भूख से मरे चिंतामन मल्हार और संतोषिया आकर मेरी आँखों के सामने खड़े हो गए। प्रधानसेवक को शवासन करते देखा तो विरासत में ऋण छोड़ गए किसान पिता की लाश याद आ गई।

अडानी अंबानी को अनुलोम-विलोम करते देखा तो दिल्ली के मैनहोल में दम घुटने से मरे बाल्मीकि भाइयों के परिवार की चीखें कान फाड़ने लगीं। भरे पेट की ये नौटंकी मुझसे अब और नहीं देखी जा रही थी। दरअसल जिस योग को राष्ट्रीय गौरव बताकर लोग लहालोट हो रहे हैं वो कुछ और नहीं खाये-पीये-अघाये वर्ग का वर्गीय शगल भर है।

क्या हमारे प्रधानसेवक हत्या, हिंसा और भक्तों की गुंडागर्दी नियंत्रित करने वाला योग भी कराएंगे, जिससे देश के हालात असल मायनों में सुधरेंगे।

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