मुनाफे की अंधी हवस में कंपनियां मजदूरों को एक यंत्र की तरह इस्तेमाल करती हैं। वह लगातार उन्हें 12 घंटे से ज्यादा काम लेती हैं। यदि इस दौरान उनसे छोटी सी भी गलती हो जाए तो उन्हें कंपनी से बाहर निकाल सकती हैं....
रामनिवास कुश की रिपोर्ट
मारूति सुजुकी इंडिया लिमिटेड के मानेसर प्लांट में मजदूरों का उत्पीड़न व शोषण थमने का नाम नहीं ले रहा है। कंपनी प्रबंधन के उत्पीड़न से तंग आकर एक ट्रेनी इंजीनियर ने कटर से अपनी गर्दन काट ली, जिसकी हालत अभी नाजुक बनी हुई है।
मारूति के मानेसर प्लांट में 5 अक्टूबर को एक ट्रेनी जूनियर इंजीनियर ने प्रबंधन के उत्पीड़न से परेशान होकर आत्महत्या करने की कोशिश की। कौशल नाम का यह युवक लुधियाना से संबंध रखता है और 1 वर्ष के इंजीनियरिंग ट्रेनिंग के लिए मारुति मानेसर प्लांट में प्रशिक्षण ले रहा है। लेकिन इसको प्रबंधन अपनी मर्जी के मुताबिक सी शिफ्ट में लगातार कार्य करवाता रहा है और अकस्मात आंख लग जाने के कारण इस युवक को बहुत ज्यादा परेशान किया गया।
कौशल पर मानसिक दबाव बनाया गया। 5 अक्टूबर को कौशल के DPM ने इस घटना के कारण इसे खूब डांटा और जनरल शिफ्ट तक रुकने के लिए बोला। जब कौशल ने कहा कि वो रात से ही ड्यूटी पर है और यदि जनरल शिफ्ट तक रुकेगा तो उस दिन जनरल शिफ्ट ही करेगा, लेकिन इसके बाद इसके डीपीएम ने इसे बहुत बुरी तरह से परेशान किया और डांटा जिस कारण यह उसे बर्दाश्त न कर पाया और उच्च प्रबंधन को ईमेल करके उसने अपनी जान लेने की कोशिश की।
कौशल ने कटर से अपना गला काट लिया। उसका इलाज अभी रॉकलैंड हॉस्पिटल जो कि मानेसर में स्थित है, में चल रहा है। हॉस्पिटल में जहां कौशल का इलाज चल रहा है सख्त पहरा है, मारूति मैनेजमेंट किसी को उनसे मुलाकात नहीं करने दे रही।
क्योंकि यह मामला मारुति की साख या इज्जत से जुड़ा है, इसलिए कहीं पर भी किसी मीडिया में इसकी कोई खबर नहीं है। अगर कभी किसी मजदूर की लापरवाही से कुछ हो जाता है तो पूरे देश में पूंजीवादी मीडिया चिल्ला चिल्लाकर उसको बदनाम कर देता है।
इस घटना से स्पष्ट हो गया है कि किस तरीके से 2011 से पहले मारुति प्रबंधन मजदूरों को परेशान करता रहा है, मुनाफे की अंधी हवस में कंपनियां मजदूरों को एक यंत्र की तरह इस्तेमाल करती हैं। वह लगातार उन्हें 12 घंटे से ज्यादा काम लेती हैं। यदि इस दौरान उनसे छोटी सी भी गलती हो जाए तो उन्हें कंपनी से बाहर निकाल सकती हैं।
लगातार काम के दबाव के कारण किसी मजदूर की आंख लग जाए या नींद आ जाए तो वह अपने हाथ—पांव और जान तक गंवा देता है। लगातार कारखानों में ऐसी घटनाएं घटती रहती हैं। क्योंकि वह मजदूर और गरीब है इसलिए उनकी जान की कोई कीमत नहीं है। इसीलिए समाज में उनकी मौत पर किसी तरह का शोक भी व्यक्त नहीं किया जाता।
मानेसर प्लांट में ही 2011 में तीन बड़ी हड़तालों के बावजूद जहां मजदूर अपनी यूनियन बनाने में सफल हुए थे, वहीं मैनेजमेंट ने 18 जुलाई 2012 की बड़ी घटना को अंजाम दिया। उसके बाद से ही 150 मजदूरों को जेल में डाल दिया गया था, जिनमें से आज भी 13 मजदूर आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे हैं।
इतनी सारी घटनाओं के बावजूद आज भी मारुति मानेसर प्लांट में मजदूरों का उत्पीड़न जारी है। यह बात और है कि यूनियन बनने के बाद यूनियन के सदस्यों व ठेका मजदूरों पर मैनेजमेंट उस तरीके से उत्पीड़न नहीं कर पा रही है, लेकिन हाल ही में 5 अक्टूबर की घटना ने यह सिद्ध कर दिया कि जिस तरीके से वर्ष 2011 से पहले ही मारुति कामगारों का उत्पीड़न व शोषण करती थी, वह आज भी किसी न किसी रूप में निरंतर जारी है।