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विमर्श

मीडिया और सरकार की जुगलबंदी में रोज फूट रहे नये नगमे

Prema Negi
3 Oct 2019 10:15 AM GMT
मीडिया और सरकार की जुगलबंदी में रोज फूट रहे नये नगमे
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भाजपाई नारा तो ये कांग्रेसमुक्‍त भारत का देते हैं, पर जहां मौका मिलता है वहां तमाम कांग्रेसियों को अपने दामन में समेटते जा रहे, चाहें तो राहुल गांधी भी आ जाएं इनके साथ....

कुमार मुकुल

हरि हैं राजनीति पढ़ि आए ...

राजधरम तो यहै 'सूर', जोप्रजा न जाहिं सताए॥ (भ्रमरगीत-सूरदास)

स गीत में सूरदास उधो से कहते हैं कि प्रजा को नहीं सताना ही राजधरम है, पर क्‍या हो जब हरि ही राजनीति पढ़कर आ गये हों। तो वर्तमान निजाम नाम भर को रामराज है बाकी यह उनके नाम पर राजनीतिकों द्वारा खेला जा रहा जुआ है, जिसमें झूठ-सांच की हेराफेरी के सिवा कुछ और नहीं हो रहा।

गर आप सरकार और मीडिया की जुगलबंदी को देखें तो रोज इनको झूठ के नये नये नगमे नये नये सुरों में प्रस्‍तुत करते देख सकते हैं। इनकी पूरी राजनीति बस इसी हवाई आधार पर टिकी है। इनका उत्तरी या दक्षिणी कोई विचार नहीं है मुंह में राम... के सिवा।

पनी इस उस्‍तादी से अपना विपक्ष ये खुद बन जाते हैं और समय आने पर अपने स्‍वनिर्मित विपक्ष को अपने हित में काम में ले आते हैं। कुछ उदाहरण देखें -

—भाजपा-शिवसेना संबंध : पिछले पांच सालों में भाजपा की जितनी तीखी आलोचना शिवसेना ने की है उतनी कांग्रेस भी नहीं कर पायी, पर अब जब चुनाव लड़ने की बारी आयी तो दोनों मौसेरे भाई बन गये। ऐसे में बाकी विपक्ष को कुछ सूझ नहीं रहा कि करे क्‍या।

—कांग्रेसमुक्‍त भारत : नारा तो ये कांग्रेसमुक्‍त भारत का देते हैं, पर जहां मौका मिलता है वहां तमाम कांग्रेसियों को अपने दामन में समेटते जा रहे। मतलब इनके यहां विचारधारा जैसी कोई चीज नहीं बस सत्ता में बने रहने की कसरत है, चाहें तो राहुल गांधी भी आ जाएं इनके साथ।

—गांधी-गोडसे : ये बड़ी खूबी से दोनों को साधे चल रहे। मोदी जी गांधी की मुद्रा अपनाएंगे और प्रज्ञा गांधी के पुतले पर पिस्‍टल दागेंगी, फिर दोनों एक ही दल में पड़े रहेंगे। इनके विचारक भी इसी राह चलते हैं। वे बिना सिर पैर की बात कह देंगे जैसे कि आज गांधी होते तो आरएसएस में होते। भाई गांधी होते तो आपकी आरएसएस होती ही नहीं। गांधी ने अंग्रेजों जैसी ताकतवर रेस से लोहा लिया था आप उनके सामने हैं कहां।

—विदेशों में : वहां भी ये इसी तर्ज पर चल रहे। मोदी अमेरिका में बोल आते हैं कि अबकी बार ट्रंप सरकार और उनके विदेशमंत्री उसे सुधारकर कहते हैं कि ऐसा कुछ मोदी ने नहीं कहा। अगर मोदी ने ऐसा कुछ नहीं कहा तो ऐसा 'उल्‍लू का पट्ठा' मीडिया अपने साथ क्‍यों लेकर चल रहे जो आपकी बात को बिना समझे दुनिया भर में डुगडुगी पीट दे रहा।

—हिंसा-अहिंसा : मोदी जी विदेश में जाकर बोलेंगे कि भारत ने युद्ध नहीं बुद्ध दिया है और देश में इनके मुरीद संभाजी भिड़े तुरत उसे काउंटर करेंगे कि बुद्ध वाली बात गलत की मोदी ने। फिर मोदी की तरफ से संभाजी की बात का कोई जवाब नहीं आएगा।

स तरह के दोमुंहे उदाहरण आप रोज-रोज मीडिया में देख सकते हैं। तो विपक्ष के सामने आज मुख्‍य चुनौती यह है कि वह खुद को असली विपक्ष साबित करे। ऐसा किये बिना उनका उद्धार संभव नहीं। क्‍योंकि अपना विपक्ष अपनी कारगुजारियों से ये अपने साथ लिये चलते हैं और राजनीति की चित और पट दोनों इनके हाथ लग रही।

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