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विमर्श

प्रचंड बहुमत की मोदी सरकार के बजट में कहां हैं मजदूर

Prema Negi
20 July 2019 6:53 AM GMT
प्रचंड बहुमत की मोदी सरकार के बजट में कहां हैं मजदूर
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पिछले चुनाव ने मोदी व संघ की उस जादूगरी को मजबूती से स्थापित किया है कि मेहनतकशों को निचोड़ो, पूँजीपतियों के इफरात चंदे से झूठा दुश्मन खड़ा करके राष्ट्रवाद व पाकिस्तान को फतह करने जैसी बयार बहाओ, प्रचण्ड बहुमत से जीत कर सरकार बनाओ और फिर पूँजीपतियों के हित में मज़दूरों को रौंदते हुए अर्थव्यवस्था को सरपट दौड़ा दो.....

मोदी सरकार-2 के बजट में कहाँ खड़ा है मज़दूर? बता रहे हैं वरिष्ठ मजदूर नेता मुकुल

मोदी-2 का पहला पूर्णकालिक बजट घोषित होने के साथ अगले पाँच साल का रोडमैप भी सामने आ गया। लाल कपड़े में बांधकर प्रस्तुत बही खाता में दरअसल क्या है?

मज़दूरों के लिए क्या है बजट में?

बजट में बेखौफ घोषित किया गया कि मजदूर विरोधी श्रम कानूनों में तेजी लाते हुए 44 श्रम कानूनों को चार श्रम संहिताओं में बदलकर जल्द पारित किया जायेगा, जिसके तहत मज़दूरों को रखने-निकालने की खुली छूट के साथ यूनियन बनाने व हक़ के लिए संघर्ष के रास्ते को संकुचित किया जाना है।

मालिकों को रिटर्न दाखिले व पंजीकरण में छूट की घोषणा व विवादों को घटाने के बहाने मजदूर हक़ों पर और हमला इसकी बानगी है।

मज़दूरों की कल्याणकारी योजनाओं पर बजट में कुछ विशेष नहीं है। महिलाओं को भी स्वरोजगार की ओर धकेलने के प्रावधान हुए। असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों व महिलाओं के सुरक्षा के भी कोई प्रावधान नहीं हुए।

बहीखाते में मजदूरों के लिए किसी प्रकार के लाभ का कोई प्रावधान नहीं है, लेकिन ‘प्रधानमंत्री मानधन योजना’ से डेढ़ करोड़ टर्नओवर वाले दुकानदार व खुदरा व्यापारी के लिए पेंशन योजना व छोटे व्यापारियों के लिए 59 मिनट में लोन देने का एक और जुमला है।

पूँजीपतियों की बल्ले-बल्ले

अमीर ज्यादा टैक्स देंगे का सच यह है कि धनपतियों पर बहीखाते से खूब मेहरबानी दिखाई गई है। अमीरों पर सरचार्ज के शोर के बीच 4 हजार करोड़ रुपये तक के कारोबारियों (99.3 फीसदी कम्पनियों) को टैक्स में 5 फीसदी की बड़ी राहत दी गई है। पूँजीपतियों को मिल रही छूट की अवधि 5 साल से बढ़ाकर 10 साल कर दिया गया है। उनके लाभ के लिए सम्पत्ति कर को पूर्ण विलोपित करने की घोषणा हुई।

विदेशी पूँजी व निजीकरण को बढ़ावा

ही खाते द्वारा विदेशी पूँजी की ग़ुलामी के लिए और रास्ते खुले। बीमा क्षेत्र में 100 फीसदी एफडीआई, (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) की पूरी छूट। सिंगल ब्रांड खुदरा व्यापार व मीडिया में भी एफडीआई बढ़ा। सरकारी कंपनियों को बेचकर डेढ़ लाख करोड़ रुपये का विनिवेश, यानी बची सरकारी कंपनियां कौड़ियों के मोल अम्बानी-अडानी जैसों को सौंपने की तैयारी।

यर इण्डिया, बीएसएनएल, रेलवे से लेकर तमाम सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण होगा।

रेलवे ट्रैक, रेल इंजन, कोच व वैगन निर्माण कार्य तथा यात्री माल सेवाएं पीपीपी मोड (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) में निजी हाथों में जाएंगी। इससे रेलवे निगमीकरण से निजीकरण की दिशा में तेजी से आगे बढ़ेगा और सर्वाधिक रोजगार देने वाले रेलवे में स्थाई रोजगार खत्म होगा। ‘वन नेशन, वन ग्रीड’ के तहत बिजली के निजीकरण की प्रक्रिया और तेज होगी।

पूँजीपतियों की लूट का जरिया बने सरकारी बैंकों को 70 हजार करोड़ रुपये दिया जाएगा। यही नहीं पूँजीपतियों की अंधी लूट से सार्वजनिक बैंकों को होने वाले घाटे का 10 फीसदी 6 माह तक सरकार उठायेगी। कुल मिलाकर पूँजीपतियों को लूटने में और मदद।

भारतीय पासपोर्ट वाले एनआरआई को आधार कार्ड की सुविधा (जबकि देश मे रहने वाले कई ग़रीब नागरिकों को एनआरसी के तहत देश से भगाने की तैयारी)। बाहरी निवेशकों के लिए केवाईसी आसान होगा।

कल्याणकारी मद घटा, गृह मंत्रालय का बढ़ा

बजट में बेरोजगारी कम करने, कल्याणकारी योजनाओं, स्वास्थ्य, शिक्षा में मेहनतकशों के लाभ की कोई योजना नहीं है।मनरेगा के बजट में 1084 करोड़ रूपए की कटौती, भूमि सुधार के बजट में 90 करोड़ ग्रामीण विकास कार्यक्रम का बजट आधा हुआ, गरीबों की एलपीजी योजना में 500 करोड़ की कटौती़, हर घर को बिजली की ग्राम ज्योति योजना में 1000 करोड़ की कमी, जलापूर्ति और स्वच्छता के बजट में भारी कमी हुई है।

प्रधानमंत्री आवास योजना में 600 करोड़ घटा, महिलाओं, बालिकाओं व बच्चों के पोषण और अन्य जनहितकारी मदों में कटौती, महिलाओं के संरक्षण व सशक्तीकरण बजट में 36 करोड़ की कमी, अनुसूचित जाति के बजट को घटाकर 5445 करोड़ किया गया, आदिवासियों के बजट में आंशिक वृद्धि, अल्पसंख्यकों के विकास के लिए आवंटित बजट 2017 की तुलना में आधा हुआ, विकलांग, विधवा महिलाओं जैसे अन्य वंचित समूहों के विकास के बजट में करीब 400 करोड़ की कटौती की गयी है।

कॉरपोरेट हित में शिक्षा के रिसर्च प्रोजेक्ट में आवंटन बढ़ा है, लेकिन बुनियादी शिक्षा (जहाँ ग़रीबों के बच्चे पढ़ते हैं) का मद घटकर कुल बजट में हिस्सेदारी 3 फीसदी और स्वस्थ्य में 2.2 फीसदी हो गयी। तकनीकी शिक्षा के बजट में 1000 करोड़ की कटौती हुई है। दूसरी ओर गृह मंत्रालय का बजट बढ़कर 1,19,025 करोड़ रुपये, सीबीआई का 781 करोड़ रुपये व रक्षा बजट 3,18,931 करोड़ रुपये हो गया।

‘रोजगार माँगो नहीं, दो’

बहीखाते में रोजगार का मुद्दा तिरोहित हो गया। बहुराष्ट्रीय बन रही स्टार्टअप कंपनियों का जुमला उछालते हुए कहा गया कि ‘रोजगार माँगो नहीं, दो’, जिसके फंड के बहीखाता की जाँच नहीं होगी। (वित्तीय मनमानेपन की छूट)।

जीरो बजट खेती नहीं कॉरपोरेटीकरण

ड़े सब्जबाग के बीच कृषि क्षेत्र में दरअसल कॉरपोरेटीकरण की दिशा में तेजी से क़दम बढ़ाने की घोषणा हुई है। 27.86 लाख करोड़ के बजट में कृषि के लिए 1.30 लाख करोड़ का प्रावधान है, जिसमें से 75 हजार करोड़ किसान सम्मान निधि, 14 हजार करोड़ फसल बीमा योजना और 18000 करोड़ अल्पकालीन ऋण के मद में ब्याज सब्सिडी है।

सल बीमा का पैसा देशी विदेशी बीमा कम्पनियों को और ब्याज सब्सिडी का पैसा बैंकों में जायेगा। बजट में जैविक खेती के लिए महज 2 करोड़ रुपए दिए हैं। परम्परागत कृषि विकास योजना में भी 35 करोड़ की कटौती की गयी है। ज़ीरो बजट की खेती और कृषि उद्योग क्षेत्र में 75 हजार उद्यमियों का कौशल विकास महज एक जुमला है और किसानों की मूल समस्याओं से भरमाना है।

खेती के लिए मात्र 23 करोड़ है, जिसमें से ज्यादातर इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए है। इन्फ्रास्ट्रक्चर व कॉरपोरेट खेती के तहत किसानों व अदिवासियों की जमीनों को छीनने और रियल स्टेट, औद्योगिक गलियारे, व्यापारिक गलियारे, रेल गलियारे, सड़क मार्ग, जल मार्ग और पोर्ट निर्माण के लिए है।

महंगाई का सबब

विदेशों से आयातित तमाम सामानों को सस्ता किया गया है, जबकि आम जनजीवन के लिए जरूरी चीजों- पेट्रोलियम पदार्थ, ऑटो पार्ट्स, बिजली के प्लग, सॉकेट, स्विच आदि, महंगे होंगे। पेट्रोल-डीजल महंगा होने का भी सीधा असर सामानों की महंगाई पर पड़ेगा। रेल किराया बढ़ने के संकेत मिल चुके हैं।

डीजल पेट्रोल में दो रुपए का सरचार्ज बढ़ा, बजट पेश होते ही डीजल-पेट्रोल तत्काल ढ़ाई रुपये महंगा हो गया। आयातित पुस्तकों पर 5 फीसदी आयात शुल्क लगा, ताकि पढ़ने को और निरुत्साहित किया जाए।

‘मिनिमम गर्वमेंट-मैक्सिमम गर्वनेंस’

जट घोषणा और मीडिया में खूब प्रचारित हुआ कि अमीरों से लेकर ग़रीबों को दिया जायेगा, परन्तु सच इसके विपरीत है। पूरा बजट ही अमीरजादों को समर्पित है। बल्कि प्रचंड बहुमत की इस सरकार का बजट मोदी-1 की सरकार से भी तेज गति से पूँजीपतियों को लाभ पहुँचाने वाला बजट है।

‘मिनिमम गर्वमेंट-मैक्सिमम गर्वनेंस’ की यह राह सरकारी विभागों को बड़ी संख्या में खत्म करेंगी, विनिवेशीकरण व निजीकरण सरकारी नौकरियों को घटायेगी। इसकी सबसे बुरी मार ठेके पर काम कर रहे मजदूरों पर पड़ेगी, जिसकी बीएसएनएल आदि में शुरुआत भी हो चुकी है।

रअसल पिछले चुनाव ने मोदी व संघ की उस जादूगरी को मजबूती से स्थापित किया है कि मेहनतकशों को निचोड़ो, पूँजीपतियों के इफरात चंदे से झूठा दुश्मन खड़ा करके राष्ट्रवाद व पाकिस्तान को फतह करने जैसी बयार बहाओ, प्रचण्ड बहुमत से जीत कर सरकार बनाओ और फिर पूँजीपतियों के हित में मज़दूरों को रौंदते हुए अर्थव्यवस्था को सरपट दौड़ा दो। वर्तमान बजट उसी की बानगी है।

(पहले संघर्षरत मेहनतकश पत्रिका में प्रकाशित)

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