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राजनीति

पीएनबी घोटाले में एसआईटी जांच से क्यों डर रही मोदी सरकार

Janjwar Team
22 Feb 2018 10:04 AM GMT
पीएनबी घोटाले में एसआईटी जांच से क्यों डर रही मोदी सरकार
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कल केंद्र सरकार ने पीएनबी घोटाला मामले में एसआईटी जांच से क्यों किया मना, क्या डर है मोदी सरकार को

एसआईटी जांच से ऐसा क्या होगा कि इतने महत्वपूर्ण मामले में सरकार कर रही एसआईटी जांच की मनाही, क्या यह जांच मोदी के 2019 में दुबारा प्रधानमंत्री बनने के सपने पर लगा सकती है ग्रहण, जानिए पूरी वजह टू द प्वाइंट

जनज्वार, दिल्ली। कल मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पीएनबी घोटाले की जांच एसआईटी से कराने की दाखिल याचिका का विरोध किया और कहा कि इसकी कोई जरूरत नहीं। पर सरकार यही जवाब सवाल पैदा करता है कि आखिर मोदी की सरकार किस डर से इस जांच को मना कर ही है।

सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने एसआईटी जांच की याचिका का विरोध किया। अटॉर्नी ने कहा कि पीएनबी घोटाले की पहले से सीबीआई और अन्य एजेंसिया जांच कर रही हैं, अलग से एसआईटी जांच का कोई तुक नहीं है। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, केवाई चंद्रचूड़ और एम खानविलकर कर रहे थे।

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली खंडपीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है। कल पहली सुनवाई थी। मगर सुनवाई के तरीके पर सवाल उठाते हुए याचिकाकर्ता वकील विनीत ढांगा ने कहा कि बगैर नोटिस जारी किए आप केंद्र सरकार की बात कैसे सुन सकते हैं, पहले याचिका पर केंद्र को नोटिस तो जारी करें? चाचिकाकर्ता वकील ने अदालत से पूछा कि स्वतंत्र एसआईटी जांच कराने की याचिका स्वीकार करने में समस्या क्या है?

अगर सुनवाई के तरीके की बात करें तो पहले याचिकाओं के मामले में संबंधित पक्ष को नोटिस जारी होता है, फिर उसका जवाब दिया जाता है। पर नोटिस जारी होने से पहले ही अटॉर्नी जनरल ने विरोध शुरू कर दिया। इधर मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने सरकार को किसी तरह का अंतरिम आदेश या नोटिस देने से मना कर दिया। हालांकि अगली सुनवाई की तारीख 16 को दी है।

इन हालातों के मद्देनजर देखें तो कोर्ट और सरकार के रवैए से अभी ये तो नहीं लगता कि सर्वोच्च अदालत याचिकाकर्ता के अपील पर बहुत गौर करेगी, लेकिन जनज्वार आपको बता रहा है कि असल में डर क्या है जिसकी वजह से केंद्र सरकार एसआईटी का विरोध कर रही है और सीबीआई जांच के पक्ष में है...

1. सीबीआई की सर्वोच्च केंद्र सरकार होती है, लोकप्रिय शब्दावली में उसे सरकार के घर की मुर्गी कहते हैं लेकिन एसआईटी की जांच सीधे सुप्रीम कोर्ट अपनी देखरेख में करा सकती है या किसी अन्य को अपने सुपरविजन में दे सकती है।

2. सीबीआई की कमान चूंकि केंद्र के हाथ में होती है इसलिए वह अपने हिसाब से एक्शन को प्रभावित कर सकते हैं या करते हैं, लेकिन एसआईटी का सुपरविजन चूंकि सीधे सरकार के हाथ में नहीं होता इसलिए उसका इसमें बहुत बस नहीं चलता।

3. सरकार चाहे तो सीबीआई को कोई टाइम फ्रेम न दे और जांच को टालती रहे, क्योंकि सीबीबाई सरकार के प्रति जवाबदेह होती है। मगर एसआईटी में जांचकर्ता अधिकारियों को टाइमफ्रेम में काम करना पड़ता है, उन्हें हर सुनवाई पर अदालत में जांच की प्रगति रिपोर्ट देना होता है।

4. टाइमफ्रेम में काम होने से, सुप्रीम कोर्ट का सुपरविजन होने से जज बार—बार अधिकारियों के कामकाज को देखते हैं, सख्ती बरतते हैं और डांटते हैं। फिर उसकी न्यूज मीडिया में आती है और उससे देश लगातार अपडेट रहता है कि क्या हो रहा है। पर सीबीआई में यह सब नहीं होता, सरकार को वह अंदरूनी रपटें देते रहते हैं और जांच का सिलसिला अंतहीन जारी रहता है।

5. सीबीआई के जांच करने पर परिणामों को और सबसे बड़ी बात जांच की दिशा और अपराध की गंभीरता को केंद्र सरकार अपनी सुविधा मुताबिक फिक्स कर सकती है, लेकिन एसआईटी जांच में यह एक मुश्किल काम है।

यही वजह है कि कल जैसे ही केंद्र सरकार की ओर से पेश होने वाले अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने याचिका देखी वैसे ही विरोध शुरू कर दिया और कहने लगे कि पहले से ही सीबीआई जांच चल रही है, फिर क्या जरूरत एसआईटी जांच की।

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