मोदी का पत्र है "जुमलों का पिटारा", पत्र से गायब हैं बेरोजगारी और विकराल आर्थिक संकट की बातें
मोदीराज : पांच सालों में ऋण बट्टे खाते में डालने में हुई है बेतहाशा वृद्धि (फोटो : सोशल मीडिया)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल का पहला साल पूरा करने के साथ ही छह साल का भी सफर पूरा कर लिया है। इन वर्षों में अच्छे दिन के सपने से शुरु हुआ सफर आज आत्मनिर्भर भारत के नए वादे तक पहुंच गया है...
जनज्वार। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल का पहला साल पूरा करने के साथ ही छह साल का भी सफर पूरा कर लिया है। इन वर्षों में अच्छे दिन के सपने से शुरु हुआ सफर आज आत्मनिर्भर भारत के नए वादे तक पहुंच गया है। इस मौके पर अपने काम-काज का लेखा-जोखा पेश करने के लिए प्रधानमंत्री ने 130 करोड़ देशवासियों के नाम बड़े विस्तार से एक चिट्ठी भी लिखी है। चिट्ठी में सरकार की उपलब्धियों और कोविड-19 संकट पर चर्चा है। लेकिन बेरोजगारी और डूबती अर्थव्यवस्था पर देशवासियों से सीधे बात करने से परहेज दिखता है।
प्रधानमंत्री की इस दूरी पर सवाल उठाते हुए सीएसडीएस के डायरेक्टर संजय कुमार कहते हैं, “आम तौर पर रिपोर्ट कार्ड में उपलब्धियों के साथ-साथ चुनौतियों का भी जिक्र होना चाहिए। ऐसे में प्रधानमंत्री को बेरोजगारी, आर्थिक स्थिति पर बातें करनी चाहिए थी। लेकिन शायद वह यह सोचते हैं कि जब सरकार ने 20 लाख करोड़ पैकेज के रूप में बीमारी की दवा दे दी है, तो ऐसे में उसका बार-बार जिक्र करने की क्या जरुरत है। लेकिन फिर भी मेरा मानना है कि उन्हें इन चुनौतियों का जिक्र कर और उससे निकलने का रोडमैप पेश कर लोगों की परेशानी कम करने की कोशिश करनी चाहिए थी।”
5 ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी पर बात नहीं
प्रधानमंत्री ने दूसरे कार्यकाल शुरू करने के बाद 15 अगस्त को लाल किले से संबोधित करते हुए , 2024 तक 5 लाख करोड़ डॉलर की इकोनॉमी बनने का लक्ष्य तय किया था। लेकिन उपलब्धियों की चिट्ठी में इसका कोई जिक्र नहीं है। जबकि पिछले एक साल से सरकार के सभी मंत्री और ब्यूरोक्रेट्स लगातार इसी की बात करते रहे हैं।
बेरोजगारी की चर्चा नहीं
पहले से ही रिकार्ड बेरोजगारी का सामना कर रहे देश के सामने कोविड-19 ने एक चुनौती खड़ी कर दी है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी प्राइवेट लिमिटेड (सीएमआइइ) के अनुसार अकेले अप्रैल महीने में 11.4 करोड़ लोगों ने अपनी नौकरियां गंवा दी है। इसमें सबसे ज्यादा मार श्रमिकों पर पड़ी है। करीब 9.1 करोड़ श्रमिकों को अपने रोजगार से हाथ धोना पड़ा है। इसी तरह 1.8 करोड़ छोटे बिजनेसमैन और 1.78 करोड़ वेतनभोगी लोगों की नौकरियां गई हैं। इतने बड़े पैमाने पर बढ़ चुकी बेरोजगारी का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चिट्ठी में सीधा कोई जिक्र नहीं है। ऐसा नहीं है कि बढ़ती बेरोजगारी का प्रधानमंत्री मोदी को अहसास नहीं है, क्योंकि उन्होंने खुद 14 अप्रैल को देश के नाम संबोधन में करोबारियों से अपील की थी, कि कोविड संकट की वजह से किसी को नौकरी से कंपनियां नहीं निकाले । हालांकि प्रधानमंत्री की अपील को कंपनियों ने अनदेखा कर दिया है।
गंभीर आर्थिक संकट का भी जिक्र नहीं
प्रधानमंत्री द्वारा चिट्ठी लिखने से एक दिन पहले ही अर्थव्यवस्था की भयावह तस्वीर पेश करने वाले आंकड़े सामने आए हैं। जनवरी-मार्च तिमाही में भारत की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) विकास दर सिर्फ 3.1 फीसदी दर्ज हुई है। यह 2008-09 के आर्थिक संकट के बाद सबसे कम विकास दर है। यानी पिछले 11 साल में सबसे कम विकास दर रही है। समझने वाली बात यह है कि इन आंकड़ों में लॉकडाउन के केवल 7 दिन ही शामिल है। ऐसे में अगले आंकड़े कहीं ज्यादा गंभीर स्थिति बयां करेंगे। खुद भारतीय रिजर्व बैंक ने निगेटिव ग्रोथ रेट की आशंका जताई है। लेकिन प्रधानमंत्री की चिट्ठी में इस स्थिति से भी दूरी बनाई गई है।