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नहीं था मां का आधार कार्ड तो लोकनायक अस्पताल ने 22 दिन के बच्चे का नहीं किया इलाज

Prema Negi
2 Nov 2019 5:28 AM GMT
नहीं था मां का आधार कार्ड तो लोकनायक अस्पताल ने 22 दिन के बच्चे का नहीं किया इलाज
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नवजात की मां कहती है, मेरे पास बच्चे का बर्थ ​सर्टिफिकेट भी है, जिसमें मेरे नाम की स्पेलिंग में थोड़ा डिफरेंस है। उसमें गलती से अमान खान लिख दिया गया है, जिसे हॉस्पिटल वाले मानने को तैयार नहीं हुए...

जनज्वार, दिल्ली। अस्पतालों द्वारा लगातार मरीजों को प्रताड़ित किये जाने के मामले मीडिया की सुर्खियां बन रहे हैं। कहीं डॉक्टरों की लापरवाही के कारण किसी मरीज की जान पर बन आती है तो कहीं गलत तरीके से सर्जरी कर दी जाती है। ये किस्से प्राइवेट अस्पतालों के नहीं बल्कि प्रतिष्ठित सरकारी अस्पतालों के हैं, जहां के बारे में दावा किया जाता है कि वहां देश के ख्यात चिकित्सक नियुक्त हैं।

हले से ही कई मामलों को लेकर सुर्खियों में रहे दिल्ली के लोकनायक अस्पताल प्रबंधन में फिर एक अजीबोगरीब मामला सामने आया है। यहां आधार कार्ड न होने के चलते 22 दिन के बच्चे का एमआरआई करने से मना कर दिया गया।

वजात की मां अनम खान कहती हैं, बच्चे के जन्म के बाद से ही उसके गुदा के ऊपरी हिस्से से कहीं लगातार पानी सा रिस रहा है, डॉक्टरों ने बताया था कि उसकी गुदा के ऊपरी हिस्से में कहीं हड्डी में छेद है, जिसके कारण पानी रिस रहा है। इसीलिए हम लोग उसे लेकर लोकनायक अस्पताल गये थे। मेरे पास बच्चे का बर्थ ​सर्टिफिकेट भी है, जिसमें मेरे नाम की स्पेलिंग में थोड़ा डिफरेंस है। उसमें गलती से अमान खान लिख दिया गया है, जिसे हॉस्पिटल वाले मानने को तैयार नहीं हुए। मगर वहां पर हमें बोल दिया गया कि बच्चे का इलाज तभी कराया जायेगा, जब आप यह प्रूफ देंगे कि आप दोनों पति—पत्नी हैं और यह आप दोनों का बच्चा। उस वक्त मेरे पति का ही सिर्फ आधार कार्ड था, मेरे पास नहीं था तो उन लोगों ने एमआरआई देने से मना कर दिया।'

वजात बच्चे को गोद में लिये उसकी मां कहती है, अस्पताल वालों को हमारे दिल्ली के नागरिकता का प्रूफ चाहिए, क्योंकि हम यूपी के रहने वाले हैं।

शिक्षा-स्वास्थ्य के मसले पर दिल्ली में बहुत ही प्रभावकारी काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता और सुप्रीम कोर्ट में वकील अशोक अग्रवाल इस मसले पर कहते हैं, 'अस्पतालों खासकर सरकारी अस्पतालों का यह रुख अमानवीयता की हाइट है। बजाय मरीज को इलाज देने के अस्पताल कागजी खानापूर्ति पहले करवा लेते हैं, चाहे तब तक मरीज की जान ही क्यों न चली जाये। होना यह चाहिए था कि पहले मरीज को भर्ती कर उसे इलाज मुहैया कराया जाता और कागजी कार्रवाई करते रहते। इस तरह की घटनायें डॉक्टरी पेशे को शर्मसार करने वाली भी हैं, जिन्हें मरीज की जान से ज्यादा कागजी खानापूर्ति की पड़ी रहती है।'

शोक अग्रवाल कहते हैं कि 'हमने अपने प्रयासों से उन्हें एक और अस्पताल में भेजा है, उम्मीद की जानी चाहिए कि वहां नवजात को समुचित इलाज मुहैया हो जाये।'

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