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राजनीति

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को मस्जिद के लिए अयोध्या में 5 एकड़ भूमि नहीं मंजूर

Prema Negi
18 Nov 2019 2:26 AM GMT
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को मस्जिद के लिए अयोध्या में 5 एकड़ भूमि नहीं मंजूर
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ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा दिसंबर 1949 की रात बलपूर्वक रखी गई रामचंद्रजी की मूर्ति और अन्य मूर्तियों का रखा जाना असंवैधानिक था तो इन मूर्तियों को कैसे मान लिया गया देवता...

जनज्वार। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने अयोध्या में मस्जिद बनाने के लिए आवंटित 5 एकड़ भूमि स्वीकार करने से मना कर दिया है। एआईएमपीएलबी के एक बयान में कहा कि मस्जिद मुसलमानों के धार्मिक कार्यों के लिए आवश्यक है। इस तरह की स्थितियों में किसी अन्य जगह पर उसी तरह की मस्जिद का निर्माण करना भी इस्मामिक नियमों के अनुसार स्वीकार्य नहीं है।

बोर्ड ने यह ऐलान भी कर दिया है कि वह उच्चतम न्यायालय के अयोध्या फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका (रिव्यू पिटीशन) दाखिल करेगा। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के मुमताज डिग्री कॉलेज में कार्यकारिणी बैठक में पर्सनल लॉ बोर्ड ने ये निर्णय लिया। बोर्ड की तरफ से कासिम रसूल इलियास ने कहा कि बोर्ड ने तय किया है कि वह उच्चतम न्यायालय के फैसले पर रिव्यू पिटीशन दाखिल करेगा।

बोर्ड ने यह भी कहा कि उसने संविधान के मूलभूत मूल्यों को "सुरक्षित" करने के लिए अयोध्या भूमि पर मालिकाना हक़ के विवाद का मुकदमा लड़ा था। हमें लगता है कि पुनर्स्थापना के लिए 5 एकड़ भूमि देने से जहां राष्ट्रीय मूल्यों को नुकसान पहुंचाने की हद तक मौलिक मूल्यों को नुकसान पहुंचा है, वहां किसी भी तरह से घावों को ठीक नहीं किया जाएगा।

हां तक कि इस निर्देश के प्रभाव से समुदाय, जिसने हमेशा इस मस्जिद की रक्षा करने की कोशिश की, उसके द्वारा किसी भी उकसावे के बिना न्यायिक आदेश से मस्जिद को एक स्थान से दूसरे स्थान पर शिफ्ट करने को कहा गया। बोर्ड ने कहा कि उसे उम्मीद थी कि सरकार अपने सभी धार्मिक ढांचों का संरक्षण सुनिश्चित करेगी, जिन पर अतिक्रमण किया गया था और वे उनके साथ न्याय करेंगे।

र्सनल लॉ बोर्ड की कार्यकारिणी की बैठक अध्यक्ष मौलाना सैय्यद राबे हसनी नदवी की अध्यक्षता में हुई। इसमें मुख्य तौर पर सुप्रीम कोर्ट के अयोध्या फैसले में दिए गए 10 निष्कर्षों मुद्दों पर चर्चा हुई, जिनमें कहा गया कि उच्चतम न्यायालय ने माना है कि 1857 से 1949 तक बाबरी मस्जिद का तीन गुंबद वाला भवन और मस्जिद का अंदरूनी सदन मुसलमानों के कब्जे व प्रयोग में रहा है।

अंतिम नमाज 16 दिसंबर 1949 को पढ़ी गई थी। 22/23 दिसंबर, 1949 की रात बाबरी मस्जिद के बीच वाले गुंबद के नीचे असंवैधानिक रूप से रामचंद्रजी की मूर्ति रख दी गई और बीच वाले गुंबद के नीचे की भूमि का जन्मस्थान के रूप में पूजा किया जाना साबित नहीं है।

रिव्यू पिटीशन में सुप्रीम कोर्ट द्वारा फैसले में कहे गये कि 22/23 दिसंबर 1949 की रात बलपूर्वक रखी गई रामचंद्रजी की मूर्ति और अन्य मूर्तियों का रखा जाना असंवैधानिक था तो इस प्रकार असंवैधानिक रूप से रखी गई मूर्तियों को 'देवता' कैसे मान लिया गया है, जो हिंदू धर्मशास्त्र के अनुसार भी देवता नहीं हो सकती हैं?

ब बाबरी मस्जिद में 1857 से 1949 तक मुसलमानों का कब्जा और नमाज पढ़ा जाना साबित माना गया है तो मस्जिद की जमीन को वाद संख्या 5 के वादी संख्या 1 को किस आधार पर दे दिया गया? तथा संविधान की अनुच्छेद 142 का प्रयोग करते समय माननीय न्यायमूर्ति ने इस बात पर विचार नहीं किया कि वक्फ एक्ट 1995 की धारा 104-ए और 51 (1) के अंतर्गत मस्जिद की जमीन को एक्सचेंज या ट्रांसफर पूर्णतया बाधित किया गया है, तो कानून के विरुद्ध और उपरोक्त वैधानिक रोक/पाबंदी को अनुच्छेद 142 के तहत मस्जिद की जमीन के बदले में दूसरी जमीन कैसे दी जा सकती है? जबकि स्वयं माननीय उच्चतम न्यायालय ने अपने दूसरे निर्णयों में स्पष्ट कर रखा है कि अनुच्छेद 142 के अधिकार का प्रयोग करने की माननीय न्यायमूर्तियों के लिए कोई सीमा निश्चित नहीं है, को आधार बनाया जायेगा।

बोर्ड की कार्यकारिणी ने इन तथ्यों पर विचार करने और उच्चतम न्यायालय के फैसले में उपरोक्त तथा अन्य स्पष्ट त्रुटियां होने के कारण पुनर्विचार याचिका दायर करने का निर्णय लिया है। बोर्ड के अनुसार, इस याचिका में इस तथ्य का भी उल्लेख किया जाएगा कि मस्जिद की जमीन के बदले मुसलमान कोई अन्य भूमि स्वीकार नहीं कर सकते हैं।मुसलमान किसी दूसरे स्थान पर अपना अधिकार लेने के लिए उच्चतम न्यायालय नहीं गए थे।

बैठक के बाद जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने भी कहा है कि हम फैसले के खिलाफ रिव्यू पिटीशन दायर करेंगे। साथ ही उन्होंने कहा कि हमें मालूम है रिव्यू पिटीशन का हाल क्या होना है, लेकिन फिर भी हमारा यह हक है।अरशद मदनी ने कहा कि हम न मस्जिद को दे सकते हैं और न ही उसकी जगह कोई जमीन ले सकते हैं। मुकदमे में हमें हमारा हक नहीं दिया गया। मामले में जमीयत उलेमा-ए-हिन्द रिव्यू पिटीशन दाखिल करेगी।

स बीच ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की बैठक पर बाबरी मस्जिद मामले में पक्षकार रहे इकबाल अंसारी ने कहा है कि इस मसले को यहीं पर खत्म कर दिया जाए।उन्होंने कहा कि फैसला आ गया, फैसले को हमने मान भी लिया और अब हम आगे अब नहीं जाना चाहते। हम हिंदुस्तान के मुसलमान हैं और हिंदुस्तान का संविधान भी मानते हैं। इकबाल अंसारी ने कहा कि हिंदुस्तान का अहम फैसला था। हम अब इस मामले को आगे नहीं बढ़ाएंगे। हम चाहते हैं कि इस मसले को यहीं पर खत्म कर दिया जाए।

च्चतम न्यायालय के 5 जजों की संविधान पीठ ने अयोध्या मामले में 9 नवंबर को रामलला विराजमान के पक्ष में फैसला सुनाया था। साथ ही सुन्नी वक्फ बोर्ड को अयोध्या में ही अलग से पांच एकड़ जमीन देने का आदेश दिया था। उच्चतम न्यायालय ने सुन्नी वक्फ बोर्ड को पांच एकड़ अलग से जमीन देने का फैसला अनुच्छेद 142 के तहत मिले अधिकार का इस्तेमाल करते हुए दिया था। इसके अलावा उच्चतम न्यायालय ने अयोध्या मामले के पक्षकार निर्मोही अखाड़ा और शिया वक्फ बोर्ड का दावा खारिज कर दिया था।

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