हथियारों के सबसे बड़े खरीददार भारत की रक्षा तैयारियों पर क्यों उठा रहा इंटरनेशनल मीडिया सवाल
रक्षा मामलों के संसदीय समिति के सदस्य कहते हैं हमारे देश के पास हथियारों की बहुत कमी है, जबकि दूसरी तरफ भारत दुनिया में हथियारों का सबसे बड़ा खरीददार भी है, फिर हथियार जा कहाँ रहे हैं...
महेंद्र पाण्डेय, वरिष्ठ लेखक
जैसा सबको पता था, पुलवामा हमले को सरकार ने खूब भुनाया और इसे वोट बैंक में परिवर्तित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उस समय जितने सवाल उठाये गए थे, उनमें से किसी का जवाब नहीं मिला। जम्मू-कश्मीर में रोज उग्रवादी अपने काम कर रहे हैं। विंग कमांडर अभिनन्दन वापस आ गए और वाहवाही में पूरा देश सराबोर हो गया। इसके बाद पुलवामा, उरी और रोज होते आतंकवादी हमलों को पूरी तरह से भुला दिया गया। इस बीच लोग यह भी भूल गए कि एक मिग विमान, जिसमे अभिनन्दन गए थे, उसे पाकिस्तानी वायु सेना ने मार गिराया।
मिग के मार गिराने को भारतीय सेना की तैयारियों के सन्दर्भ में देखने पर, इतना तो स्पष्ट है कि यह सेना की तैयारी नहीं बल्कि जल्दबाजी और अधकचरी तैयारी है। यहाँ यह ध्यान भी रखना आवश्यक है कि लगभग पांच दशकों के बाद भारतीय वायु सेना को ऐसी कारवाही करनी पड़ी थी। वैसे भी रक्षा मामलों में सरकारें कितनी तैयार हैं, वह इससे भी स्पष्ट होता है कि राफेल मामलों से जुड़ी फाइलें गायब हो जाती हैं और सरकार निश्चिंत बैठी रहती है।
जब सरकार से राफेल के सन्दर्भ में कोई जानकारी माँगी जाती है तब रटा रटाया जवाब आता है, यह गोपनीय है। अब यही गोपनीय जानकारियाँ गायब हो गयी हैं। हालांकि बाद में कहा गया कि गोपनीय रिपोर्ट की कॉपी लीक कराई गई है। हो सकता है कि इन्हें जान—बूझकर गायब किया गया हो, जिससे इस पर सवाल उठाने वालों को आसानी से घेरा जा सके।
फाइलें गायब होना एक बात है, उस घटना को तो देश ने लगभग भुला दिया है जिसमें भारतीय सेना के अनेक सैनिक विमान सहित अंडमान से गायब हो गए और अनेक वर्षों बाद आज तक उनका सुराग नहीं मिला है। फिर भी हम किसी से परिस्थिति से सामना करने को तैयार रहते हैं और दुश्मनों को मुहतोड़ जवाब देने को तैयार रहते हैं – ऐसा जनता को विश्वास दिलाया जाता है।
कुछ दिनों पहले ब्रिटिश अखबार इंडिपेंडेंट में प्रकाशित एक खबर के अनुसार भारत की सेना जर्जर अवस्था में है और यदि पूरी तरह से युद्ध का सामना करना पड़े तो केवल 10 दिनों के युद्ध का हथियार और उपकरण हमारे पास हैं। इसमें से भी 68 प्रतिशत हथियार बहुत पुराने हैं। यह सभी आंकड़े अखबार के अनुसार सरकारी सूत्रों से लिए गए हैं।
सांसद गौरव गोगोई जो रक्षा मामलों के संसदीय समिति के सदस्य भी हैं, के अनुसार हमारी सेना का बजट बहुत कम है और इस कारण आधुनिक हथियारों की बहुत कमी है। बजट की कमी के कारण थल, जल और वायु सेना एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा करती हैं और एक दूसरे का साथ नहीं देतीं। गोगोई के अनुसार, आज के दौर में जब आधुनिक सेनायें आधुनिक हथियारों से लैस हो रहीं हैं, हमें भी ऐसा ही करना होगा।
इन सबके बीच एक अजीब तथ्य यह भी है कि भारत दुनिया में हथियारों का सबसे बड़ा खरीददार भी है, फिर हथियार जा कहाँ रहे हैं? पिछले एक दशक के दौरान ही अमेरिका से हथियार खरीद का बजट लगभग शून्य से 15 अरब डॉलर तक पहुँच गया है।
इंडिपेंडेंट के अनुसार वर्ष 2018 के लिए भारत का रक्षा बजट 45 अरब डॉलर है, जबकि चीन अपनी रक्षा के लिए 175 अरब डॉलर खर्च कर रहा है। इस 45 अरब डॉलर में से एक बड़ा भाग 12 लाख सेना जवानों के तनख्वाह और पेंशन पर खर्च हो जाता है। इसके बाद महज 14 अरब डॉलर ही हथियारों और उपकरणों के लिए बचता है।
स्पष्ट है कि भाषणों में जो कुछ हम सुनते हैं और नेता जो जनता को विश्वास दिलाते हैं, वास्तविक परिस्थितियाँ शायद इसके ठीक विपरीत हैं।