Begin typing your search above and press return to search.
समाज

सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट में ट्रिपल तलाक को मुस्लिम संगठन ने दी चुनौती

Prema Negi
5 Aug 2019 10:14 AM GMT
Bulli Bai app controversy:सुल्ली डील्स के बाद अब बुल्ली बाई एप पर लगी फेमस मुस्लिम महिलाओं की बोली, मुस्लिम महिलाओं ने PM मोदी से पूछे सवाल
x

Sulli Deal खे बाद Bulli Bai App पर विवाद

मुस्लिम संगठन समस्त केरल जामियतुल उलेमा ने याचिका दायर कर कहा तीन तलाक कानून को बनाया गया है दंडात्मक, वह भी धार्मिक पहचान के आधार पर किसी खास वर्ग के लिए, अगर इस पर रोक नहीं लगाई गई तो यह समाज में सौहार्द खत्म करेगा और पैदा करेगा ध्रुवीकरण....

जेपी सिंह की रिपोर्ट

क साथ 'तीन तलाक' बोलकर तलाक लेने को दंडनीय अपराध बनाने वाले कानून को उच्चतम न्यायालय और दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है। उच्चतम न्यायालय में केरल स्थित मुस्लिम संगठन ने और दिल्ली हाईकोर्ट में एक वकील ने इस नए कानून के खिलाफ याचिका दायर की है। उनका आरोप है कि द मुस्लिम विमन (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑन मैरिज) ऐक्ट, 2019 मुस्लिम पतियों के मौलिक अधिकारों का हनन है।

याचिकाकर्ता का कहना है कि इस कानून के पीछे का उद्देश्य तीन तलाक का उन्मूलन नहीं है, बल्कि मुस्लिम पतियों को सजा देना है। मुस्लिम पति द्वारा तीन तलाक कहने पर अधिकतम 3 वर्ष कारावास की सजा होगी। धारा 7 के अनुसार अपराध संज्ञेय और गैर-जमानती है। केरल में सुन्नी मुस्लिम विद्वानों और मौलवियों के एक धार्मिक संगठन, समस्त केरल जमीयत उलेमा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है, जिसमें मुस्लिम महिलाओं (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 की संवैधानिकता को चुनौती दी गई है।

मुस्लिम महिलाओं (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम में "तीन तलाक़ 'का अपराधीकरण किया गया है। तीन तलाक की प्रथा को उच्चतम न्यायालय द्वारा शायरा बानो बनाम भारत संघ, (2017) 9 एससीसी मामले में शून्य और अवैध घोषित किया गया था। अधिनियम की धारा 3 में लिखित या इलेक्ट्रॉनिक रूप समेत किसी भी तरीके से ट्रिपल तलाक कहने को अवैध और गैरकानूनी होने की घोषणा की गई है। इसे दंडनीय अपराध भी बनाया गया है, जिसमें तीन साल तक की कैद और जुर्माना हो सकता है।

मस्त केरल जामियतुल उलेमा और दिल्ली के वकील शाहिल अली ने इस कानून के खिलाफ याचिका दायर की है। उनका दावा है कि बिल संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन है और इसे खारिज कर देना चाहिए। लोकसभा और राज्यसभा में कानून के पारित होने के बाद राष्ट्रपति ने इसे मंजूरी दे दी है और उसके अगले ही दिन इस नए बने कानून के खिलाफ याचिका दायर की गई है।

खुद को केरल का सबसे बड़ा मुस्लिम संगठन होने का दावा करने वाली इस इकाई ने अपनी याचिका में कहा है कि कानून को दंडात्मक बनाया गया है, वह भी धार्मिक पहचान के आधार पर किसी खास वर्ग के लिए। अगर इस पर रोक नहीं लगाई गई तो यह समाज में सौहार्द खत्म करेगा और ध्रुवीकरण पैदा करेगा। याचिका के मुताबिक धारा 4 के तहत 3 साल की सजा का प्रावधान है, जब मुस्लिम पति तीन तलाक बोलेगा। धारा 7 के तहत यह संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध बताया गया है।

दिल्ली हाईकोर्ट में शाहिद अली द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि यह पति और पत्नी के बीच समझौता करने की सभी गुंजाइशों को खत्म कर देगा। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार की मंशा संविधान के साथ-साथ उच्चतम न्यायालय के फौरी तलाक को गैरकानूनी घोषित करने के फैसले के प्रति दुर्भावनापूर्ण है।

याचिका में दावा किया गया है कि तीन तलाक को अपराध के दायरे में लाने का दुरुपयोग हो सकता है, क्योंकि कानून में ऐसा कोई तंत्र उपलब्ध नहीं कराया गया है, जिससे आरोपों की सच्चाई का पता चल सके।

Next Story

विविध