जनज्वार। हिंदी के ख्यात आलोचक और साहित्यकार नामवर सिंह का दिल्ली स्थित एम्स अस्पताल में इलाज के दौरान कल 19 फरवरी की देर रात लगभग 12 बजे निधन हो गया। 93 वर्षीय नामवर सिंह पिछले दिनों बाथरूम में गिर गए थे, जिसके बाद उनकी हालत गंभीर बनी हुई थी। उन्हें तब एम्स के ट्रॉमा सेंटर में भर्ती कराया गया था। हालांकि इसके बाद डॉक्टरों ने कहा था कि वे खतरे से बाहर हैं और उनकी हालत स्थिर बनी हुई है।
नामवर सिंह का जन्म जुलाई 1926 को यूपी के चंदौली जिले के जीयनपुर गांव में हुआ था। वे हिंदी साहित्य के ख्यात रचनाकार हजारी प्रसाद द्विवेदी के शिष्य थे। हिंदी साहित्य जगत के शीर्ष समालोचकों में शुमार नामवर पिछले माह जनवरी में अपने घर में अचानक गिर गए थे। तब से उनकी हालत गत जनवरी गंभीर बनी हुई थी।
नामवर सिंह ने बीएचयू से हिंदी साहित्य में एमए और पीएचडी किया। कई सालों तक बीएचयू में पढ़ाने के बाद उन्होंने सागर और जोधपुर विश्वविद्यालय में पढ़ाया और फिर दिल्ली के जेएनयू आ गए। जेएनयू से ही वह रिटायर हुए।
हिंदी के वरिष्ठ कवि—लेखक मदन कश्यप नामवर जी के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए लिखते हैं, 'नामवर जी का जाना हिंदी समाज और साहित्य की यह कितनी बड़ी क्षति है,उसे समझने में अभी बहुत वक़्त लगेगा। मेरे लिए यह निजी क्षति ही बहुत बड़ी है। कुछ देर में उन्हें एम्स से शिवालिक अपार्टमेंट स्थित उनके आवास पर ले जाया जाएगा। अंत्येष्टि शाम 4 बजे लोदी रोड पर की जाएगी।'
वरिष्ठ पत्रकार शेष नारायण सिंह उन्हें याद करते हुए लिखते हैं, पिछले 45 साल से दिल्ली ही नामवर सिंह का घर था और वहीं अंतिम सांस ली। उनके जाने से मुझे निजी तौर पर बहुत कष्ट है। 1976 से 1989 के बीच जो लोग उनके साथ शाम को जेएनयू के कैम्पस में घूमते घामते थे उनमें कभी कभी मैं भी शामिल होता था, इसलिए बहुत सी निजी स्मृतियाँ हैं। उनसे बातचीत के आधार पर बहुत कुछ सीखा है, जिसका आज भी बहुत ही अधिकार पूर्वक इस्तेमाल करता हूँ। एक शिक्षक अपने छात्रों को किस तरह प्रभावित करता है इस बात को समझने के लिए पिछले साठ वर्षों के उनके छात्रों के संस्मरणों का संकलन किया जा सकता है। 1955 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में नौकरी शुरू की और जीवन भर शिक्षक रहे। हिंदी के विद्वानों की कई पीढ़ियों को उन्होंने साहित्य, भाषा और आलोचना को समझने की तमीज सिखाई और आज चले गए।
वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश लिखते हैं, 'विख्यात आलोचक नामवर सिंह से कई मुद्दों पर छात्र-जीवन में हमारी असहमतियां भी रहीं, जिनकी चर्चा कुछ साल पहले मैने 'समयांतर' पत्रिका में प्रकाशित अपने एक लेख: 'जनेवि: एक अयोग्य छात्र के नोट्स' में विस्तार से की! छात्र-जीवन में उनसे अपने असहज रिश्तों के बावजूद वह बाद के दिनों में जब कभी मिले, उनके सम्मान में मेरा सिर हमेशा झुक जाता।'
हिमाचल के साहित्यकार सैन्नी अशेष लिखते हैं, 'हिंदी जगत के विख्यात समीक्षक-लेखक पिछली रात गुज़र गए। मैं नवयुवा था तो इनकी पत्रिका 'आलोचना' नियमित मंगाता था। फिर विश्वविद्यालय में अध्ययन के दौरान अपने शोध का विषय भी 'हिंदी आलोचना : विद्रोह के स्वर' चुना। आलोचना के स्वरूपों को समझने में मुझे नामवर जी से मुझे बहुत मदद मिली।'